Saturday, January 20, 2018

सरस्वती पूजा का महत्व

सरस्वती पूजा का महत्व

हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बसंत पंचमी का पर्व देवी सरस्वती को समर्पित है। क्योंकि इस दिन ही उनका जन्म हुआ था। पौराणिक मान्यता के अनुसार देवी सरस्वती को ब्रह्मा जी की मानस पुत्री कहा गया है। वहीं एक अन्य मत के अनुसार उन्हें ब्रह्मा जी की स्त्री भी कहा जाता है। माता सरस्वती को विद्या की देवी कहते हैं। इनके आशीर्वाद से ज्ञान, विवेक, संगीत और कला में निपुणता मिलती है। इसलिए बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजा का विशेष विधान है। इस दिन प्रातःकाल से लेकर अपराह्न काल के बीच सरस्वती पूजा की जाती है। इस दौरान विधि विधान से देवी सरस्वती की पूजा-अर्चना की जानी चाहिए।

पढ़ें देवी सरस्वती की वंदना के मंत्र: सरस्वती स्त्रोत

पूजा विधि

बसंत पंचमी पर देवी सरस्वती के पूजन की विधि इस प्रकार है: 

सर्वप्रथम सरस्वती पूजा के लिए एक कलश की स्थापना करें।पूजा की शुरुआत भगवान गणेश की वंदना से करें और फिर शिव जी का ध्यान करें।इसके बाद देवी सरस्वती की पूजा-अर्चना शुरू करें। सबसे पहले उनकी मूर्ति को स्नान कराएं और फिर उन्हें सफेद वस्त्र पहनाएँ।देवी सरस्वती को कुमकुम, गुलाल, पीले फूल और माला चढ़ाएँ। इसके अलावा ऋतु के अनुसार उन्हें फल अर्पित करें।अंत में देवी सरस्वती की आरती के बाद उनसे ज्ञान और विवेक प्रदान करने की कामना करें। 

सरस्वती पूजा के ज्योतिषीय लाभ

बसंत पंचमी के अवसर पर सरस्वती पूजन के कई ज्योतिषीय लाभ हैं। कहते हैं कि जो मनुष्य बसंत पंचमी पर मॉं सरस्वती की आराधना करता है, उसे चंद्र, बृहस्पति, बुध और शुक्र के बुरे प्रभाव से मुक्ति मिलती है। साथ ही वे लोग जिन पर चंद्रमा, बृहस्पति, बुध और शुक्र की महादशा व अंतर्दशा चल रही है उन्हें भी सरस्वती पूजन से लाभ मिलता है। वे व्यक्ति जो ज्ञान और शांति का कामना करते हैं उन्हें सरस्वती स्त्रोत का पाठ अवश्य करना चाहिए। वे छात्र जिन्हें पढ़ाई में बाधा का सामना करना पड़ रहा है उन्हें देवी सरस्वती की पूजा अवश्य करनी चाहिए।

बसंत पंचमी का महत्व

बसंत पंचमी का प्रकृति से गहरा संबंध है। क्योंकि इसी दिन से बसंत ऋतु की शुरुआत होती है। बसंत ऋतु के आगमन से शरद ऋतु धीरे-धीरे क्षीण होने लगती है। इस दौरान खेतों में चारों और सरसों के पीले फूल धरती की सुंदरता को बढ़ाते हैं। बसंत पंचमी के अवसर पर सरस्वती पूजा के अलावा देवी रति और कामदेव की भी पूजा की जाती है। यह पूजन विशेष रूप से वैवाहिक जोड़ों यानि दंपत्तियों के लिए विशेष लाभकारी है। इसके प्रभाव से उनके जीवन में आपसी प्रेम और सद्भाव बना रहता है। वहीं बसंत पंचमी के दिन व्यवसायी गण माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। इसके अलावा बसंत पंचमी के दिन कई स्थानों पर पतंगबाजी होती है। इस दौरान समूचा आसमान रंग-बिरंगी पतंगों से सराबोर हो जाता है।

Monday, January 1, 2018

कालगणना और इसके मात्रक :* *(Chronology and its Units)*

*कालगणना और इसके मात्रक :*
*(Chronology and its Units)*

6 प्राण (Breath) = 1 पल (विनाडी) = 24 Seconds
60 पल (विनाडी) = 1 नाडी (= घटी = घड़ी) = 24 Minutes
2 घटी = 1 मुहूर्त्त = 1 क्षण = 48 Minutes
60 नाडी (घटी) = 30 मुहुर्त्त = 1 अहोरात्र = 24 Hours
7 अहोरात्र = 1 सप्ताह (Week)
2 सप्ताह = 1 पक्ष (fortnight)
2 पक्ष = 1 मास (Month)
2 मास = 1 ऋतु (Season)
3 ऋतु = 1 अयन
2 अयन = 1 सम्वत् = 1 वर्ष (Year)

360 वर्ष = 1 दिव्य वर्ष

सतयुग = 4800 दिव्य-वर्ष = 17,28,000 वर्ष 
त्रेता = 3600 दिव्य-वर्ष = 12,96,000 वर्ष 
द्वापर = 2400 दिव्य-वर्ष = 8,64,000 वर्ष
कलियुग = 1200 दिव्य-वर्ष = 4,32,000 वर्ष

चतुर्युग = महायुग = दिव्ययुग = देवयुग = (सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग)

1 चतुर्युग = 43,20,000 वर्ष
71 चतुर्युग = 1 मन्वन्तर = 30,67,20,000 वर्ष

1 सन्धिकाल = 3 चतुर्युग = 1,29,60,000 वर्ष

14 मन्वन्तर + 2 सन्धिकाल = 1000 चतुर्युग
1000 चतुर्युग = 1 सृष्टि = 1 कल्प = 1 ब्राह्म-दिन = 4 अरब 32 करोड़ वर्ष
1000 चतुर्युग = 1 प्रलय = 1 विकल्प = 1 ब्राह्म-रात्रि = 4 अरब 32 करोड़ वर्ष

2000 चतुर्युग = 1 ब्राह्म-अहोरात्र = 8 अरब 64 करोड़ वर्ष
30 ब्राह्म-अहोरात्र =  1 ब्राह्म-मास
12 ब्राह्म-मास = 1 ब्राह्म-वर्ष
100 ब्राह्म-वर्ष = 1 परा = 1 महाकल्प

मुक्ति की अवधि 1 पराकाल की होती है. [मुण्डक-उपनिषद् 3.2.6]

अभी 'श्वेत वराह' नामक प्रथम ब्राह्म-दिन के 7वें 'वैवस्वत' नामक मन्वन्तर के 28वें चतुर्युग का कलियुग चल रहा है. विक्रम सम्वत् 2073 (ईसाई वर्ष 2016) में हमारे वैदिक सम्वत् निम्नलिखित चल रहे हैं:

कल्प सम्वत् = 1,97,38,13,117 वर्ष
मानव सम्वत् = 1,96,08,53,117 वर्ष
वेद सम्वत् = 1,96,08,53,112 वर्ष
कलियुग सम्वत् = 5117 वर्ष

यूरोपीय ज्योतिषी Bailley के अनुसार, अभी कलियुग सम्वत् 5118 चल रहा है.

14 मन्वंतरों के नाम:
1. स्वायम्भुव 2. स्वारोचिष 3. औत्तमेय 4. तामस 5. रैवत 6. चाक्षुष 7. वैवस्वत 8. सावर्णि 9. दक्षसावर्णि 10. ब्रह्मसावर्णि 11. धर्मसावर्णि 12. रूद्रसावर्णि 13. देवसावर्णि (रौप्यसावर्णि) 14. इन्द्रसावर्णि (मौत्यसावर्णि)

30 कल्पों (ब्राहम-दिनों) के नाम:
1. श्वेतवाराह  2. नीललोहित  3. वामदेव  4. रथन्तर  5. रौरव  6. प्राण  7. बृहत्  8. कन्दर्प   9. सद्यः  10. ईशान  11. तमः  12. सारस्वत  13. उदान  14. गारुड  15. कौर्म  16.  नरसिंह  17. समान  18. आग्नेय  19. सोम  20. मानव  21. पुमान्  22. वैकुण्ठ  23. लक्ष्मी  24. सावित्री  25. घोर  26. वाराह  27. वैराज  28. गौरी  29. माहेश्वर  30. पितृ

दिन के 15 मुहूर्त्त:
सूर्योदय से प्रथम मुहूर्त्त का प्रारम्भ होता है.
1.  रुद्र  2.  अहि  3.  मित्र  4.  पितॄ  5.  वसु  6.  वाराह  7.  विश्वेदेवा  8.  विधि  9.  सतमुखी  10.  पुरुहूत  11.  वाहिनी  12.  नक्तनकरा  13.  वरुण  14.  अर्यमन्  15.  भग 

रात्रि के 15 मुहूर्त्त:
1.  गिरीश  2.  अजपाद  3.  अहिर्बुध्न्य  4.  पुष्य  5.  अश्विनी  6.  यम  7.  अग्नि  8.  विधातृ  9.  कण्ड  10.  अदिति  11.  जीव/अमृत  12.  विष्णु  13.  द्युमद्गद्युति  14.  ब्रह्म  15.  समुद्रम् 

14 लोकों (भुवनों) के नाम:
1. भू:  2. भुवः  3. स्वः  4. मह:  5. जनः  6. तपः  7. सत्य  8. अतल  9. वितल  10. सुतल  11. तलातल  12. महातल  13. रसातल  14. पाताल

भूलोक के 7 भाग हैं, जिन्हें महाद्वीप (सप्तद्वीपा वसुमती) Continent कहते हैं:
1. जम्बूद्वीप (Asia) 2. प्लक्ष  3. शाल्मलि  4. कुश  5. क्रौन्च  6. शाक  7. पुष्कर

जम्बूद्वीप के भीतर 9 खण्ड हैं:
1. भारतवर्ष  2. इलावृत्तवर्ष  3. रम्यकवर्ष  4. हिरण्यवर्ष  5. कुरुवर्ष  6. हरिवर्ष  7. किन्नरवर्ष  8. भद्राश्ववर्ष  9. केतुमालवर्ष

आर्यावर्त्त = वर्त्तमान भारत + पाकिस्तान + बांग्लादेश
+ अफगानिस्तान (गान्धार) + म्यान्मार (ब्रह्मा) + भूटान + तिब्बत (त्रिविष्टप) + नेपाल + श्रीलंका + थाईलैंड (श्याम) + मलेशिया (मलय) + वियतनाम + इंडोनेशिया।

सभी युग सत्ययुग द्वापर त्रेता कलयुग में मानव की आयु और सभी जानकारी

|  *जानियें, चार-युग और उनकी विशेषताएं* |

*'युग'* शब्द का अर्थ होता है एक निर्धारित संख्या के वर्षों की काल-अवधि। जैसे  सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, कलियुग आदि ।
यहाँ हम चारों युगों का वर्णन करेंगें। युग वर्णन से तात्पर्य है कि उस युग में किस प्रकार से व्यक्ति का जीवन, आयु, ऊँचाई, एवं उनमें होने वाले अवतारों के बारे में विस्तार से परिचय देना। प्रत्येक युग के वर्ष प्रमाण और उनकी विस्तृत जानकारी कुछ इस तरह है -

*सत्ययुग* – यह प्रथम युग है इस युग की विशेषताएं इस प्रकार है -
इस युग की पूर्ण आयु अर्थात् कालावधि – 17,28,000 वर्ष होती है ।
इस युग में मनुष्य की आयु – 1,00,000 वर्ष होती है ।
मनुष्य की लम्बाई – 32 फिट (लगभग) [21 हाथ]
सत्ययुग का तीर्थ – पुष्कर है ।
इस युग में पाप की मात्र – 0 विश्वा अर्थात् (0%) होती है ।
इस युग में पुण्य की मात्रा – 20 विश्वा अर्थात् (100%) होती है ।
इस युग के अवतार – मत्स्य, कूर्म, वाराह, नृसिंह (सभी अमानवीय अवतार हुए) है ।
अवतार होने का कारण – शंखासुर का वध एंव वेदों का उद्धार, पृथ्वी का भार हरण, हरिण्याक्ष दैत्य का वध, हिरण्यकश्यपु का वध एवं प्रह्लाद को सुख देने के लिए।
इस युग की मुद्रा – रत्नमय है ।
इस युग के पात्र – स्वर्ण के है ।
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*त्रेतायुग* – यह द्वितीय युग है इस युग की विशेषताएं इस प्रकार है –
इस युग की पूर्ण आयु अर्थात् कालावधि – 12,96,000 वर्ष होती है ।
इस युग में मनुष्य की आयु – 10,000 वर्ष होती है ।
मनुष्य की लम्बाई – 21 फिट (लगभग) [ 14 हाथ ]
त्रेतायुग का तीर्थ – नैमिषारण्य है ।
इस युग में पाप की मात्रा – 5 विश्वा अर्थात् (25%) होती है ।
इस युग में पुण्य की मात्रा – 15 विश्वा अर्थात् (75%) होती है ।
इस युग के अवतार – वामन, परशुराम, राम (राजा दशरथ के घर)
अवतार होने के कारण – बलि का उद्धार कर पाताल भेजा, मदान्ध क्षत्रियों का संहार, रावण-वध एवं देवों को बन्धनमुक्त करने के लिए ।
इस युग की मुद्रा – स्वर्ण है ।
इस युग के पात्र – चाँदी के है ।
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*द्वापरयुग* - यह तृतीय युग है इस युग की विशेषताएं इस प्रकार है –
इस युग की पूर्ण आयु अर्थात् कालावधि – 8.64,000 वर्ष होती है ।
इस युग में मनुष्य की आयु - 1,000 होती है ।
मनुष्य लम्बाई – 11 फिट (लगभग) [ 7 हाथ ]
द्वापरयुग का तीर्थ – कुरुक्षेत्र है ।
इस युग में पाप की मात्रा – 10 विश्वा अर्थात् (50%) होती है ।
इस युग में पुण्य की मात्रा – 10 विश्वा अर्थात् (50%) होती है ।
इस युग के अवतार – कृष्ण, (देवकी के गर्भ से एंव नंद के घर पालन-पोषण), बुद्ध (राजा के घर)।
अवतार होने के कारण – कंसादि दुष्टो का संहार एंव गोपों की भलाई, दैत्यो को मोहित करने के लिए ।
इस युग की मुद्रा – चाँदी है ।
इस युग के पात्र – ताम्र के हैं ।
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*कलियुग* - यह चतुर्थ युग है इस युग की विशेषताएं इस प्रकार है –
इस युग की पूर्ण आयु अर्थात् कालावधि – 4,32,000 वर्ष होती है ।
इस युग में मनुष्य की आयु – 100 वर्ष होती है ।
मनुष्य की लम्बाई – 5.5 फिट (लगभग) [3.5 हाथ]
कलियुग का तीर्थ – गंगा है ।
इस युग में पाप की मात्रा – 15 विश्वा अर्थात् (75%) होती है ।
इस युग में पुण्य की मात्रा – 5 विश्वा अर्थात् (25%) होती है ।
इस युग के अवतार – कल्कि (ब्राह्मण विष्णु यश के घर) ।
अवतार होने के कारण – मनुष्य जाति के उद्धार अधर्मियों का विनाश एंव धर्म कि रक्षा के लिए।
इस युग की मुद्रा – लोहा है।
इस युग के पात्र – मिट्टी के है।

Bharat mein Sanskrit Gurukul kaafi mahatvapurn

Bharat mein Sanskrit Gurukul kaafi mahatvapurn hain, kyunki yeh paramparik Sanskrit shikshan aur Hindu dharmik sanskriti ko sambhalne aur a...