Wednesday, July 4, 2018

शुक्र का गोचर

शुक्र का गोचर

जानें सभी 12 राशियों में शुक्र के गोचर का ज्योतिषीय प्रभाव, साथ ही पढ़ें नौकरी, व्यापार, शिक्षा धन, प्रेम, विवाह और पारिवारिक जीवन पर क्या होता है इसका असर?

शुक्र के गोचर की अवधि लगभग 23 दिन की होती है यानि यह एक राशि में 23 दिनों तक स्थित रहता है और फिर दूसरी राशि में गोचर करता है। गोचर का शुक्र विभिन्न भावों में अलग-अलग फल प्रदान करता है और व्यक्ति के भौतिक और वैवाहिक जीवन को प्रभावित करता है।

वैदिक ज्योतिष में शुक्र का महत्व

हिन्दू वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति की तरह शुक्र की गिनती भी शुभ ग्रहों में की जाती है। शुक्र को कला, प्रेम, सौंदर्य, वैवाहिक, वाहन समेत अन्य भौतिक सुखों का कारक माना गया है इसलिए कुंडलीमें इसकी शुभ स्थिति होने से व्यक्ति को समस्त सांसारिक सुख प्राप्त होते हैं। वहीं शुक्र के कमजोर होने से वैवाहिक जीवन में तनाव, सांसारिक सुखों में कमी, आर्थिक स्थिति में गिरावट और किडनी रोग समेत कई परेशानियां आती हैं। शुक्र ग्रह को वृषभ और तुला राशि का स्वामित्व प्राप्त है। वहीं मीन राशि में शुक्र उच्च का होता है और कन्या राशि में यह नीच भाव स्थिति होता है। शनि, बुध और राहु-केतु शुक्र के मित्र ग्रह हैं। वहीं बृहस्पति के साथ शुक्र शत्रुता का भाव रखता है।

शुक्र के गोचर का फल

गोचर का शुक्र समस्त 12 भावों में भिन्न-भिन्न फल प्रदान करता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, पंचम, अष्टम, नवम, एकादश और द्वादश भाव में शुक्र गोचर के समय शुभ फल प्रदान करता है लेकिन षष्टम, सप्तम और दशम भाव में इसके फल निराश करने वाले होते हैं। आइये जानते हैं विभिन्न भावों में शुक्र के गोचर का फल-

प्रथम भाव में शुक्र का गोचर: जन्मकालीन राशि से प्रथम भाव में शुक्र का गोचर शुभ फल देने वाला होता है। इस समय में भौतिक और वैवाहिक सुखों की प्राप्ति होती है। मन में प्रेम, सौंदर्य, संगीत और सजने-संवरने की इच्छा अधिक होती है। सामाजिक जीवन में मेल-मिलाप होने से नये संपर्क बनते हैं।

द्वितीय भाव में शुक्र का गोचर: यहां स्थित गोचर का शुक्र धन, संतान, स्त्री के प्रति आकर्षण और पारिवारिक जीवन आदि मामलों के लिए शुभ माना जाता है। इसके अलावा मन में विलासिता पूर्ण जीवन की जीने इच्छा अधिक होती है। प्रेम संबंध और मजबूत होते हैं।

तृतीय भाव में शुक्र का गोचर: इस भाव में शुक्र का गोचर होने से धन, सम्मान, समृद्धि और नये स्थान की प्राप्ति होती है, साथ ही शत्रुओं का नाश होता है। विचारों का आदान-प्रदान और विमर्श करने की इच्छा बढ़ती है। भाई-बहन से मुलाकात होने की संभावना भी बनती है।

चतुर्थ भाव में शुक्र का गोचर: जब गोचर का शुक्र चतुर्थ भाव में स्थित होता है तो मित्रों से लाभ और सहयोग मिलता है। घर-परिवार की ओर झुकाव अधिक रहता है। वहीं निजी जीवन में संतुलन बनाने का प्रयास करना पड़ता है। संबंध खराब होने की स्थिति में सुधार के लिए प्रयास करने पड़ते हैं।

पंचम भाव में शुक्र का गोचर: इस भाव में गोचर का शुक्र भाइयों से लाभ प्राप्त करवाता है। आपके व्यक्तित्व का आकर्षण बढ़ता है और रोमांस की वृद्धि होती है। कला और संगीत के प्रति विशेष रूचि देखने को मिलती है। इसके अतिरिक्त वाणी और स्वभाव में विनम्रता व सौम्यता आती है।

षष्टम भाव में शुक्र का गोचर: यहां स्थित गोचर का शुक्र अच्छे और बुरे दोनों तरह के परिणाम देता है। इस समय में शत्रुओं से चुनौती मिलती है, भाई और मामा पक्ष से सहायता प्राप्त होती है। प्रेम प्रसंग से जुड़े मामलों में प्रियतम की तलाश खत्म होती है। कार्यस्थल पर साथी कर्मचारियों से संपर्क बेहतर होते हैं।

सप्तम भाव में शुक्र का गोचर: जब शुक्र का गोचर सप्तम भाव से होता है तो महिला पक्ष से भय और हानि की आशंका रहती है। यहां स्थित शुक्र कामुकता में वृद्धि करता है। इस समय में व्यक्ति शांति और सुकून भरा जीवन व्यतीत करना अधिक पसंद करता है। इस भाव में शुक्र के प्रभाव से शत्रुओं का नाश होता है।

अष्टम भाव में शुक्र का गोचर: शुक्र ग्रह गोचर के समय जब अष्टम भाव में स्थित होता है तो जातक को घर प्राप्त होता है। मादक पेय पदार्थ और सुंदर स्त्री मिलती है। इस समय में धन लाभ की संभावना बनती है और जीवनसाथी की मदद से भी धन लाभ के योग बनते हैं। इस अवधि में बनने वाले प्रेम संबंध स्थाई होते हैं।

नवम भाव में शुक्र का गोचर: शुक्र ग्रह जब नवम भाव से गोचर करता है तो जातक परोपकारी, हंसमुख और धनवान होता है और उसे सुंदर वस्त्रों की प्राप्ति होती है। इस समय में विदेश यात्रा की इच्छा होती है। रोजमर्रा की जिंदगी खुशी नहीं मिलती है। इस दौरान किसी अन्य धर्म या समुदाय के व्यक्ति से प्रेम संबंध बनने की संभावना रहती है।

दशम भाव में शुक्र का गोचर: इस भाव में शुक्र का गोचर अच्छा नहीं माना गया है। यहां स्थित शुक्र के प्रभाव से भाग्य साथ नहीं देता है और विवाद होते हैं। मानसिक अशांति और शारीरिक क्षमता पर भी असर पड़ता है। खर्च अधिक होने से कर्ज लेने की नौबत आती है। इसके अतिरिक्त शत्रुओं से भी भय बना रहता है।

एकादश भाव में शुक्र का गोचर: इस भाव में शुक्र का गोचर आर्थिक स्थिरता प्रदान करता है और कर्ज से मुक्ति दिलाता है। यहां स्थित शुक्र के प्रभाव से जीवन में मधुरता आती है तथा व्यक्ति की लोकप्रियता में वृद्धि होती है। जातक का मन वाहन, आभूषण, और स्वादिष्ट व्यंजन जैसी भौतिक सुविधाओं को अर्जित करने में अधिक होता है। इस अवधि में शुक्र की कृपा से घर की प्राप्ति भी होती है।

द्वादश भाव में शुक्र का गोचर: बारहवें भाव में शुक्र के गोचर का मिश्रित फल देखने को मिलता है। इस समय में कुछ दिनों तक आपकी आर्थिक स्थिति बेहतर रहती है लेकिन इसके बाद अचानक धन हानि और खर्चों में बढ़ोत्तरी होने लगती है। घर में चोरी होने का भय बना रहता है। जीवनसाथी के साथ दाम्पत्य जीवन में आनंदमय रहता है।

हर व्यक्ति के मन में सांसारिक सुखों की इच्छा प्रबल रूप से होती है और वह घर, वाहन, वस्त्र, स्त्री और अन्य भौतिक वस्तुओं की कामना करता है। चूंकि शुक्र को इन सभी वस्तुओं का कारक कहा गया है इसलिए शुक्र की कृपा से इनकी प्राप्ति होती है। यदि कुंडली में शुक्र पीड़ित या कमजोर है तो जीवन में भौतिक सुखों की कमी आती है। ऐसी स्थिति में शुक्र ग्रह की शांति के उपायअवश्य करना चाहिए, ताकि शुक्र के शुभ प्रभाव से जीवन में खुशहाली आए।

शिव को इसलिए प्रिय है क्या है सावन की मान्यता सावन का महीना भगवान शिव को सबसे प्रिय होता है

सावन का महीना भगवान शिव को सबसे प्रिय होता है अतः यह माह भोलेनाथ को समर्पित होता है। लोग सावन में भगवान शिव की आराधना करते हैं, उन्हें प्रसन्न करने के लिए व्रत उपवास करते है। भगवान शंकर की कृपा से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। वैसे तो शिव शंकर की पूजा के लिए सोमवार का दिन पुराणों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। लेकिन सावन के महीने में आने वाले सोमवार का अधिक महत्व होता है और सावन के इस पावन महीने का तो विशेष महत्व होता है। आइए जानते हैं क्यों इस माह का इतना महत्व होता है और क्यों सावन का महीना भगवान शिव को इतना प्रिय होता है।

क्या है सावन की मान्यता

मान्यताओं के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि सावन के प्रारंभ से ही भगवान विष्णु अपनी सारी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाते हैं। श्री विष्णु सृष्टि के पालनकर्ता अपने दिव्य भवन पाताल लोक में विश्राम करने के लिए निकल जाते हैं और अपना सारा कार्यभार महादेव को सौंप देते है। इस माह में भगवान शिव माता पार्वती के साथ पृथ्वी लोक पर आते हैं और यहां आकर पृथ्वी वासियों के दुःख-दर्द को सुनते हैं व उनकी मनोकामना पूरी करते हैं। इसलिए खास होता है सावन का महीना और इस महीने में सभी की मनोकामनाएं जल्द पूरी होती है।

शिव को इसलिए प्रिय है सावन का महीना

महादेव को सावन का महीना सबसे प्रिय होता है। कहा जाता है की इस माह में जो लोग सच्चे मन से भोलेनाथ की पूजा अर्चना करते हैं उनकी सभी मनोकामनाएं जरुर पूरी होती है। लेकिन सवाल यह है की क्यों भगवान शिव इस माह सबकी मनोकामनाएं जल्दी सुन लेते है तो ऐसा इसलिए क्योंकि सावन मास में सबसे अधिक वर्षा होने के आसार रहते हैं, जो शिव के गर्म शरीर को ठंडक प्रदान करता है। भगवान शंकर ने स्वयं सनतकुमारों को सावन महीने की महिमा बताई है कि मेरे तीनों नेत्रों में सूर्य दाहिने, बाएं चन्द्र और अग्नि मध्य नेत्र है। हिन्दू कैलेण्डर में महीनों के नाम नक्षत्रों के आधार पर रखे गए हैं। उसी तरह श्रावण महीना श्रवण नक्षत्र के आधार पर रखा गया है और श्रवण नक्षत्र का स्वामी चन्द्र होता है। चन्द्र भगवान भोलेनाथ के मस्तक पर विराजमान है। तो जब भी सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करता है, तब सावन महीना प्रारंभ होता है। सूर्य गर्म है एवं चन्द्र ठण्डक प्रदान करता है, इसलिए सूर्य के कर्क राशि में आने मौसम में ठंडक होती है और साथ ही तेज बारिश होती है। भोलेनाथ इस माह में ठण्डक मिलती है इसलिए शिव को सावन के महीने से इतना लगाव रहता है।

पौराणिक कहावतों के जानें शिव को क्यों प्रिय है सावन

पुराणों और धर्मग्रंथों के अनुसार सावन के माह में ही माता पार्वती ने शिव की घोर तपस्या की थी और शिव जी ने उन्हें दर्शन दिए थे। भोलेनाथ की महिमा अपरंपार है इस महीने में भोले बाबा की पूजा का अत्याधिक महत्व है। जब से माता पार्वती को दर्शन मिले तब से भक्तों का विश्वास है कि इस महीने में शिव की पूजा पाठ करने से वे जल्दी प्रसन्न होते हैं।

सावन से इसलिए शुरु किया जाता है 16 सोमवार व्रत

एक बार सावन के महीने में अनेक ऋषि क्षिप्रा नदी में स्नान कर उज्जैन के महाकाल शिव की अर्चना करने हेतु एकत्र हुए। वह अभिमानी वेश्या भी अपने कुत्सित विचारों से ऋषियों को धर्मभ्रष्ट करने चल पड़ी। किंतु वहां पहुंचने पर ऋषियों के तपबल के प्रभाव से उसके शरीर की सुगंध लुप्त हो गई। वह आश्चर्यचकित होकर अपने शरीर को देखने लगी। उसे लगा, उसका सौंदर्य भी नष्ट हो गया। उसकी बुद्धि परिवर्तित हो गई। उसका मन विषयों से हट गया और भक्ति मार्ग पर बढ़ने लगा। उसने अपने पापों के प्रायश्चित हेतु ऋषियों से उपाय पूछा, वे बोले- ‘तुमने सोलह श्रृंगारों के बल पर अनेक लोगों का धर्मभ्रष्ट किया, इस पाप से बचने के लिए तुम सोलह सोमवार व्रत करो और काशी में निवास करके भगवान शिव का पूजन करो।’ वेश्या ने ऐसा ही किया और अपने पापों का प्रायश्चित कर शिवलोक पहुंची। ऐसा माना जाता है कि सोलह सोमवार के व्रत से कन्याओं को सुंदर पति मिलते हैं तथा पुरुषों को सुंदर पत्नियां मिलती हैं।

हर पूजा में जरूरी है कर्पूर, बड़ी से बड़ी परेशानियों को करता है दूर,

कर्पूर, बड़ी से बड़ी परेशानियों को करता है दूर, पढ़ें 11 अचूक प्रयोग

कर्पूर या कपूर मोम की तरह उड़नशील दिव्य वानस्पतिक द्रव्य है। इसे अक्सर आरती के बाद या आरती करते वक्त जलाया जाता है जिससे वातावरण में सुगंध फैल जाती है और मन एवं मस्तिष्क को शांति मिलती है। कपूर को संस्कृत में कर्पूर, फारसी में काफूर और अंग्रेजी में कैंफर कहते हैं।

वास्तु एवं ज्योतिष शास्त्र में भी इसके महत्व और उपयोग के बारे में बताया गया है। कर्पूर के कई औषधि के रूप में भी कई फायदे हैं। हम आपको बताएंगे कि कर्पूर या कपूर से आप कैसे संकट मुक्त होकर मालामाल बन सकते हैं और कैसे आप घर को भी बाधा मुक्त रख सकते हैं।

पहला उपाय
पुण्य प्राप्ति हेतु : कर्पूर जलाने की परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है। शास्त्रों के अनुसार देवी-देवताओं के समक्ष कर्पूर जलाने से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। अत: प्रतिदिन सुबह और शाम घर में संध्यावंदन के समय कर्पूर (कपूर) जरूर जलाएं।

दूसरा उपाय
पितृदोष और कालसर्पदोष से मुक्ति हेतु : कर्पूर जलाने से देवदोष व पितृदोष का शमन होता है। अक्सर लोग शिकायत करते हैं कि हमें शायद पितृदोष है या काल सर्पदोष है। दरअसल, यह राहु और केतु का प्रभाव मात्र है। इसको दूर करने के लिए घर के वास्तु को ठीक करें।

यदि ऐसा नहीं कर सकते हैं तो प्रतिदिन सुबह, शाम और रात्रि को तीन बार घी में भिगोया हुआ कर्पूर जलाएं। घर के शौचालय और बाथरूप में कर्पूर की 2-2 टिकियां रख दें। बस इतना उपाय ही काफी है।

तीसरा उपाय
आकस्मिक दुर्घटना से बचाव : आकस्मिक दुर्घटना का कारण राहु, केतु और शनि होते हैं। इसके अलावा हमारी तंद्रा और क्रोध भी दुर्घटना का कारण बनते हैं। इसके लिए रात्रि में हनुमान चालीसा का पाठ करने के बाद कर्पूर जलाएं।

हालांकि प्रतिदिन सुबह और शाम जिस घर में कर्पूर जलता रहता है उस घर में किसी भी प्रकार की आकस्मिक घटना और दुर्घटना नहीं होती। रात्रि में सोने से पूर्व कर्पूर जलाकर सोना तो और भी लाभदायक है।

चौथा उपाय
सकारात्मक उर्जा और शां‍ति के लिए : घर में यदि सकारात्मक उर्जा और शांति का निर्माण करना है तो प्रतिदिन सुबह और शाम कर्पूर को घी में भिगोकर जलाएं और संपूर्ण घर में उसकी खुशबू फैलाएं। ऐसा करने से घर की नकारात्मक उर्जा नष्ट हो जाएगी। दु:स्वप्न नहीं आएंगे और घर में अमन शांति बनी रहेगी है।

वैज्ञानिक शोधों से यह भी ज्ञात हुआ है कि इसकी सुगंध से जीवाणु, विषाणु आदि बीमारी फैलाने वाले जीव नष्ट हो जाते हैं जिससे वातावरण शुद्ध हो जाता है तथा बीमारी होने का भय भी नहीं रहता।

पांचवां उपाय
अचानक धन प्राप्ति का उपाय:- गुलाब के फूल में कपूर का टुकड़ा रखें। शाम के समय फूल में एक कपूर जला दें और फूल को देवी दुर्गा को चढ़ा दें। इससे आपको अचानक धन मिल सकता है।

यह कार्य आप कभी भी शुरू करके कम से कम 43 दिन तक करेंगे तो लाभ मिलेगा। यह कार्य नवरात्रि के दौरान करेंगे तो और भी ज्यादा असरकारक होगा।

छठा उपाय
वास्तु दोष मिटाने के लिए : यदि घर के किसी स्थान पर वास्तु दोष निर्मित हो रहा है तो वहां एक कर्पूर की 2 टिकियां रख दें। जब वह टिकियां गलकर समाप्त हो जाए तब दूसरी दो टिकिया रख दें। इस तरह बदलते रहेंगे तो वास्तुदोष निर्मित नहीं होगा।

सातवां उपाय
भाग्य चमकाने के लिए : पानी में कर्पूर के तेल की कुछ बूंदों को डालकर नहाएं। यह आपको तरोताजा तो रखेगा ही आपके भाग्य को भी चमकाएगा। यदि इस में कुछ बूंदें चमेली के तेल की भी डाल लेंगे तो इससे राहु, केतु और शनि का दोष नहीं रहेगा, लेकिन ऐसे सिर्फ शनिवार को ही करें।

आठवां उपाय
पति-पत्नी के बीच तनाव को दूर करने हेतु : रात को सोते समय पत्नी अपने पति के तकिये में सिंदूर की एक पुड़िया और पति अपनी पत्नी के तकिये में कपूर की 2 टिकियां रख दें। प्रातः होते ही सिंदूर की पुड़िया घर से बाहर कही उचित स्थान पर फेंक दें तथा कपूर को निकाल कर शयन कक्ष में जला दें।

यदि ऐसा नहीं करना चाहते हैं तो प्रतिदिन शयनकक्ष में कर्पूर जलाएं और कर्पूर की 2 टिकियां शयनकक्ष के किसी कोने में रख दें। जब वह टिकियां गलकर समाप्त हो जाए तो दूसरी रख दें।

नौंवा उपाय
धनवान बनने के लिए : रात्रि काल के समय रसोई समेटने के बाद चांदी की कटोरी में लौंग तथा कपूर जला दिया करें। यह कार्य नित्य प्रतिदिन करेंगे तो धन-धान्य से आपका घर भरा रहेगा। धन की कभी कमी नहीं होगी।

दसवां उपाय
विवाह हेतु : विवाह में आ रही बाधा को दूर करना चाहते हैं तो यह उपाय बहुत ही कारगर है। 36 लौंग और 6 कपूर के टुकड़े लें, इसमें हल्दी और चावल मिलाकर इससे मां दुर्गा को आहुति दें।

ग्यारहवां उपाय
मनचाही भूमि या भवन पाने के लिए : सबसे पहले उस स्थान की थोड़ी-सी मिट्टी लाकर एक कांच की शीशी में उसे डालें। उसमें गंगा जल और कपूर डालकर उसे पूजा में जौ के ढेर पर स्थापित कर दें। नवरात्र भर उस शीशी के आगे नवार्ण मन्त्र 'ऐं हीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे' का 5 माला जप करें और जौ में रोज गंगा जल डालें। नवमी के दिन थोड़े से अंकुरित जौ निकाल लें और ले जाकर मनचाही जगह पर डाल दें। कांच की शीशी को छोड़कर शेष सामग्री को नदी में डाल दें। देवी की कृपा हुई तो आपको मनचाहा घर मिल जाएगा। प्रयोग

कर्पूर या कपूर मोम की तरह उड़नशील दिव्य वानस्पतिक द्रव्य है। इसे अक्सर आरती के बाद या आरती करते वक्त जलाया जाता है जिससे वातावरण में सुगंध फैल जाती है और मन एवं मस्तिष्क को शांति मिलती है। कपूर को संस्कृत में कर्पूर, फारसी में काफूर और अंग्रेजी में कैंफर कहते हैं।

वास्तु एवं ज्योतिष शास्त्र में भी इसके महत्व और उपयोग के बारे में बताया गया है। कर्पूर के कई औषधि के रूप में भी कई फायदे हैं। हम आपको बताएंगे कि कर्पूर या कपूर से आप कैसे संकट मुक्त होकर मालामाल बन सकते हैं और कैसे आप घर को भी बाधा मुक्त रख सकते हैं।

पहला उपाय
पुण्य प्राप्ति हेतु : कर्पूर जलाने की परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है। शास्त्रों के अनुसार देवी-देवताओं के समक्ष कर्पूर जलाने से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। अत: प्रतिदिन सुबह और शाम घर में संध्यावंदन के समय कर्पूर (कपूर) जरूर जलाएं।

दूसरा उपाय
पितृदोष और कालसर्पदोष से मुक्ति हेतु : कर्पूर जलाने से देवदोष व पितृदोष का शमन होता है। अक्सर लोग शिकायत करते हैं कि हमें शायद पितृदोष है या काल सर्पदोष है। दरअसल, यह राहु और केतु का प्रभाव मात्र है। इसको दूर करने के लिए घर के वास्तु को ठीक करें।

यदि ऐसा नहीं कर सकते हैं तो प्रतिदिन सुबह, शाम और रात्रि को तीन बार घी में भिगोया हुआ कर्पूर जलाएं। घर के शौचालय और बाथरूप में कर्पूर की 2-2 टिकियां रख दें। बस इतना उपाय ही काफी है।

तीसरा उपाय
आकस्मिक दुर्घटना से बचाव : आकस्मिक दुर्घटना का कारण राहु, केतु और शनि होते हैं। इसके अलावा हमारी तंद्रा और क्रोध भी दुर्घटना का कारण बनते हैं। इसके लिए रात्रि में हनुमान चालीसा का पाठ करने के बाद कर्पूर जलाएं।

हालांकि प्रतिदिन सुबह और शाम जिस घर में कर्पूर जलता रहता है उस घर में किसी भी प्रकार की आकस्मिक घटना और दुर्घटना नहीं होती। रात्रि में सोने से पूर्व कर्पूर जलाकर सोना तो और भी लाभदायक है।

चौथा उपाय
सकारात्मक उर्जा और शां‍ति के लिए : घर में यदि सकारात्मक उर्जा और शांति का निर्माण करना है तो प्रतिदिन सुबह और शाम कर्पूर को घी में भिगोकर जलाएं और संपूर्ण घर में उसकी खुशबू फैलाएं। ऐसा करने से घर की नकारात्मक उर्जा नष्ट हो जाएगी। दु:स्वप्न नहीं आएंगे और घर में अमन शांति बनी रहेगी है।

वैज्ञानिक शोधों से यह भी ज्ञात हुआ है कि इसकी सुगंध से जीवाणु, विषाणु आदि बीमारी फैलाने वाले जीव नष्ट हो जाते हैं जिससे वातावरण शुद्ध हो जाता है तथा बीमारी होने का भय भी नहीं रहता।

पांचवां उपाय
अचानक धन प्राप्ति का उपाय:- गुलाब के फूल में कपूर का टुकड़ा रखें। शाम के समय फूल में एक कपूर जला दें और फूल को देवी दुर्गा को चढ़ा दें। इससे आपको अचानक धन मिल सकता है।

यह कार्य आप कभी भी शुरू करके कम से कम 43 दिन तक करेंगे तो लाभ मिलेगा। यह कार्य नवरात्रि के दौरान करेंगे तो और भी ज्यादा असरकारक होगा।

छठा उपाय
वास्तु दोष मिटाने के लिए : यदि घर के किसी स्थान पर वास्तु दोष निर्मित हो रहा है तो वहां एक कर्पूर की 2 टिकियां रख दें। जब वह टिकियां गलकर समाप्त हो जाए तब दूसरी दो टिकिया रख दें। इस तरह बदलते रहेंगे तो वास्तुदोष निर्मित नहीं होगा।

सातवां उपाय
भाग्य चमकाने के लिए : पानी में कर्पूर के तेल की कुछ बूंदों को डालकर नहाएं। यह आपको तरोताजा तो रखेगा ही आपके भाग्य को भी चमकाएगा। यदि इस में कुछ बूंदें चमेली के तेल की भी डाल लेंगे तो इससे राहु, केतु और शनि का दोष नहीं रहेगा, लेकिन ऐसे सिर्फ शनिवार को ही करें।

आठवां उपाय
पति-पत्नी के बीच तनाव को दूर करने हेतु : रात को सोते समय पत्नी अपने पति के तकिये में सिंदूर की एक पुड़िया और पति अपनी पत्नी के तकिये में कपूर की 2 टिकियां रख दें। प्रातः होते ही सिंदूर की पुड़िया घर से बाहर कही उचित स्थान पर फेंक दें तथा कपूर को निकाल कर शयन कक्ष में जला दें।

यदि ऐसा नहीं करना चाहते हैं तो प्रतिदिन शयनकक्ष में कर्पूर जलाएं और कर्पूर की 2 टिकियां शयनकक्ष के किसी कोने में रख दें। जब वह टिकियां गलकर समाप्त हो जाए तो दूसरी रख दें।

नौंवा उपाय
धनवान बनने के लिए : रात्रि काल के समय रसोई समेटने के बाद चांदी की कटोरी में लौंग तथा कपूर जला दिया करें। यह कार्य नित्य प्रतिदिन करेंगे तो धन-धान्य से आपका घर भरा रहेगा। धन की कभी कमी नहीं होगी।

दसवां उपाय
विवाह हेतु : विवाह में आ रही बाधा को दूर करना चाहते हैं तो यह उपाय बहुत ही कारगर है। 36 लौंग और 6 कपूर के टुकड़े लें, इसमें हल्दी और चावल मिलाकर इससे मां दुर्गा को आहुति दें।

ग्यारहवां उपाय
मनचाही भूमि या भवन पाने के लिए : सबसे पहले उस स्थान की थोड़ी-सी मिट्टी लाकर एक कांच की शीशी में उसे डालें। उसमें गंगा जल और कपूर डालकर उसे पूजा में जौ के ढेर पर स्थापित कर दें। नवरात्र भर उस शीशी के आगे नवार्ण मन्त्र 'ऐं हीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे' का 5 माला जप करें और जौ में रोज गंगा जल डालें। नवमी के दिन थोड़े से अंकुरित जौ निकाल लें और ले जाकर मनचाही जगह पर डाल दें। कांच की शीशी को छोड़कर शेष सामग्री को नदी में डाल दें। देवी की कृपा हुई तो आपको मनचाहा घर मिल जाएगा।

इन हिंदी कहावतों के स्थान पर संस्कृत की सूक्ति बोलें।

 इन हिंदी कहावतों के स्थान पर संस्कृत की सूक्ति बोलें। 1. अपनी डफली अपना राग - मुण्डे मुण्डे मतिर्भिन्ना । 2. का बरखा जब कृषि सुखाने - पयो ग...