Thursday, June 12, 2025

Bharat mein Sanskrit Gurukul kaafi mahatvapurn

Bharat mein Sanskrit Gurukul kaafi mahatvapurn hain, kyunki yeh paramparik Sanskrit shikshan aur Hindu dharmik sanskriti ko sambhalne aur aage badhane ka kaam karte hain. Gurukul system, jo purane samay mein vidya arjan ka ek pramukh tareeka tha, aaj bhi kai jagah prachlit hai.

Lekin Sanskrit Gurukul ka exact number pata karna thoda mushkil hai, kyunki yeh system aaj bhi kuchh shehron aur gramin kshetron mein zinda hai. Kuch Gurukul to chhote shehron ya gaon mein hote hain, aur kuch bade aur prasiddh hain.

Kuch pramukh Sanskrit Gurukul:

  1. Gurukul Kangri Vishwavidyalaya (Haridwar, Uttarakhand) – Yeh ek Vishwavidyalaya hai, lekin yahaan par bhi Sanskrit Gurukul ki parampara zinda hai.

  2. Ved Vidyalaya Gurukul (Uttarakhand) – Ye gurukul ek aisa sansthan hai jo apne vidyarthiyon ko Sanskrit aur Hindu dharm ke adhyayan mein prashikshit karta hai.

  3. Sri Sankaracharya Gurukulam (Kerala) – Yeh Kerala mein hai aur yahaan par Sanskrit aur Hindu dharmik vidya ka prachaar kiya jata hai.

  4. Veda Gurukuls in Rajasthan – Rajasthan ke kai shehron mein bhi purani paramparaon ke anusar Gurukuls hain jo Vedas aur Sanskrit ka gyaan pradan karte hain.

  5. Rishikul Gurukul (Haridwar) – Yahaan par Sanskrit aur Vedic adhyayan kiye jate hain.

Sanskrit Gurukuls ki Sankhya:

Exact sankhya ka pata lagana mushkil hai, kyunki yeh system kafi decentralized hai. Bharat ke kai chhote aur bade shehron mein Sanskrit Gurukul hain jo traditional Sanskrit education, Vedic studies, aur dharmik shikshan dete hain. Aaj bhi yahaan pe students apna adhyayan karte hain, aur kai Gurukul Sanskrit ko ek lifestyle aur spiritual practice ke roop mein padhate hain.

india mein Sanskrit padhane wale kai colleges aur universities

 India mein Sanskrit padhane wale kai colleges aur universities hain, jo traditional aur modern Sanskrit education provide karte hain. Bharat Sarkar ne Sanskrit ko promote karne ke liye kai initiatives liye hain, aur har rajya mein kuch na kuch Sanskrit shikshan sansthan hain.

Kuch pramukh Sanskrit universities aur colleges ke naam yeh hain:

Pramukh Sanskrit Universities:

  1. Banaras Hindu University (BHU), Varanasi (Uttar Pradesh)

  2. Jawaharlal Nehru University (JNU), New Delhi

  3. Sree Sankaracharya University of Sanskrit, Kalady (Kerala)

  4. Rashtriya Sanskrit Sansthan, New Delhi

  5. National Sanskrit University, Hyderabad (Andhra Pradesh)

  6. Gurukul Kangri Vishwavidyalaya, Haridwar (Uttarakhand)

  7. Deccan College Post-Graduate and Research Institute, Pune (Maharashtra)

  8. Kameshwar Singh Darbhanga Sanskrit University, Darbhanga (Bihar)

  9. Uttarakhand Sanskrit University, Haridwar (Uttarakhand)

  10. Vidyasagar University, Kolkata (West Bengal) (Sanskrit Department)

Sanskrit Colleges and Institutions:

  • Government Sanskrit College, Thiruvananthapuram (Kerala)

  • Rashtriya Sanskrit Vidyapeetha, Tirupati (Andhra Pradesh)

  • Maharishi Patanjali Sanskrit College, Haridwar (Uttarakhand)

  • Delhi University aur Mumbai University jaise bade universities mein bhi Sanskrit ka ek achha department hota hai.

State-Specific Institutions:

  • Kerala, Uttar Pradesh, Rajasthan, Bihar, aur Gujarat mein bhi kai Sanskrit colleges hain jo undergraduate se lekar postgraduate level tak Sanskrit ki shiksha dete hain.

मैं कौन हूँ? — मैं वह हूँ जो सत्य की खोज में,यह प्रश्न छोटा है, पर उत्तर अनंत है।

 मैं कौन हूँ?

— मैं वह हूँ जो सत्य की खोज में है।
— मैं वह हूँ जो प्रेम चाहता है और प्रेम बाँटना चाहता है।
— मैं वह हूँ, जो ईश्वर के अंश के रूप में,
इस संसार में अपने कर्तव्य को निभा रहा है।

        "“मैं कौन हूँ?” — यह प्रश्न छोटा है, पर उत्तर अनंत है।

        "हर सोचने वाला मन कभी न कभी इस प्रश्न से टकराता है।

        "क्या मैं केवल यह शरीर हूँ?

        "क्या मैं अपने नाम, जाति, धर्म, पहचान, या भूमिका से परिभाषित हूँ?

        "या फिर इन सबसे परे भी कोई \"मैं\" है?\

        "जब हम दर्पण में देखते हैं, तो चेहरा दिखता है – पर आत्मा नहीं, जो भीतर है।        मैं वह नहीं जो बाहर दिखता है — मैं  वह हूँ जो भीतर महसूस करता है।

        "मैं एक यात्रा हूँ — बचपन से वृद्धावस्था तक।        "एक विचार, जो बदलता है

        "एक चेतना, जो हर अनुभव से कुछ सीखती है…\

        "एक आत्मा, जो अमर है, शरीर से परे है।

        "वेद कहते हैं:\ “अहं ब्रह्मास्मि” — मैं ब्रह्म हूँ\ “सोऽहं” — वह (परमात्मा) मैं ही हूँ\

        "इसका अर्थ यह नहीं कि मैं सर्वशक्तिमान हूँ,\

        "बल्कि यह कि मेरे भीतर भी वही दिव्यता है —\nजो सूर्य में है, जो सागर में है, जो कण-कण में है।

        "मैं एक साधारण मनुष्य नहीं,\बल्कि एक अपार संभावना हूँ।

        "जब मैं यह समझने लगता हूँ,\तो मेरा डर कम होता है, मेरा जीवन स्पष्ट होता है,\और मेरा उद्देश्य गहरा होता है।\

        "मैं कौन हूँ?\— मैं वह हूँ जो सत्य की खोज में है।\n"

        "— मैं वह हूँ जो प्रेम चाहता है और प्रेम बाँटना चाहता है।\n"

        "— मैं वह हूँ, जो ईश्वर के अंश के रूप में,\इस संसार में अपने कर्तव्य को निभा रहा है


“मैं कौन हूँ?” — यह प्रश्न छोटा है, पर उत्तर अनंत है।
हर सोचने वाला मन कभी न कभी इस प्रश्न से टकराता है।

क्या मैं केवल यह शरीर हूँ?
क्या मैं अपने नाम, जाति, धर्म, पहचान, या भूमिका से परिभाषित हूँ?
या फिर इन सबसे परे भी कोई "मैं" है?

जब हम दर्पण में देखते हैं, तो चेहरा दिखता है –
पर आत्मा नहीं, जो भीतर है।

"मैं" वह नहीं जो बाहर दिखता है —
"मैं" वह हूँ जो भीतर महसूस करता है।

मैं एक यात्रा हूँ — बचपन से वृद्धावस्था तक।
एक विचार, जो बदलता है…
एक चेतना, जो हर अनुभव से कुछ सीखती है…
एक आत्मा, जो अमर है, शरीर से परे है।

वेद कहते हैं:
  "अहं ब्रह्मास्मि" — मैं ब्रह्म हूँ
  "सोऽहं" — वह (परमात्मा) मैं ही हूँ

इसका अर्थ यह नहीं कि मैं सर्वशक्तिमान हूँ,
बल्कि यह कि मेरे भीतर भी वही दिव्यता है —
जो सूर्य में है, जो सागर में है, जो कण-कण में है।

मैं एक साधारण मनुष्य नहीं,
बल्कि एक अपार संभावना हूँ।

जब मैं यह समझने लगता हूँ,
तो मेरा डर कम होता है, मेरा जीवन स्पष्ट होता है,
और मेरा उद्देश्य गहरा होता है।

एक गहराई से भरा प्रश्न...

जीवन केवल साँसों की गणना नहीं है, यह अनुभवों की एक अनमोल यात्रा है।
यह कभी मुस्कान है, कभी आँसू, कभी संघर्ष है तो कभी विश्राम।
जीवन एक पुस्तक की तरह है – हर दिन एक नया पृष्ठ, हर क्षण एक नई कहानी।

हम जन्म लेते हैं बिना किसी विकल्प के, लेकिन जीवन को कैसे जीना है, यह चुनाव हमारा होता है।
जीवन प्रश्न भी है, उत्तर भी। यह वह धागा है जो संबंधों, संवेदनाओं और सपनों को बाँधता है।

सच्चा जीवन वही है जो दूसरों के जीवन को छू जाए – सेवा, प्रेम और करुणा से।
जो फूल बनकर महके, दीपक बनकर जले, और पर्वत बनकर अडिग खड़ा रहे – वही जीवन सार्थक है।

Monday, June 9, 2025

योग क्या है? (एक सरल, आध्यात्मिक व दार्शनिक विवेचना - पुस्तक के लिए) योग का अर्थ "योगः कर्मसु कौशलम्।"

 योग क्या है?

(एक सरल, आध्यात्मिक व दार्शनिक विवेचना - पुस्तक के लिए)

 योग का अर्थ

"योग" संस्कृत धातु "युज्" से निकला है, जिसका अर्थ है – "जोड़ना, मिलाना या एकता में लाना।"

योग का उद्देश्य है – आत्मा का परमात्मा से मिलन, शरीर–मन–आत्मा का संतुलन।

 योग केवल आसन नहीं है

बहुत लोग योग को केवल शारीरिक व्यायाम मानते हैं, पर यह उससे कहीं गहरा है। योग जीवन जीने की कला है।

योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः।

– योग सूत्र (1.2)

(योग चित्त की वृत्तियों का निरोध है)

 योग के आठ अंग (अष्टांग योग)

(पतंजलि योगसूत्र अनुसार)

यम: नैतिक अनुशासन

नियम: आत्म-संयम

आसन: शरीर की स्थिति

प्राणायाम: श्वास का नियंत्रण

प्रत्याहार: इंद्रियों का निग्रह

धारणा: ध्यान की एकाग्रता

ध्यान: ध्यानावस्था

समाधि: आत्मा-परमात्मा की पूर्ण एकता

 योग क्यों करें? (लाभ)

मानसिक शांति

शरीर की दृढ़ता

चिंता, भय व तनाव से मुक्ति

आत्म-साक्षात्कार की दिशा

एक सकारात्मक दृष्टिकोण

 कुछ प्रेरक श्लोक

"योगः कर्मसु कौशलम्।"

(गीता 2.50)

योग कर्मों में कुशलता है।


"समत्वं योग उच्यते।"

(गीता 2.48)

समानता को ही योग कहा गया है।

अंग्रेज़ी सारांश (for book)

Yoga is not merely a physical discipline; it's a holistic way of life aiming for union — of body, mind, and soul with the Supreme. Rooted in ancient wisdom, Yoga is the path of inner peace, discipline, and ultimate freedom.

Wednesday, August 21, 2024

इन हिंदी कहावतों के स्थान पर संस्कृत की सूक्ति बोलें।

 इन हिंदी कहावतों के स्थान पर संस्कृत की सूक्ति बोलें।

1. अपनी डफली अपना राग - मुण्डे मुण्डे मतिर्भिन्ना ।

2. का बरखा जब कृषि सुखाने - पयो गते किं खलु सेतुबन्धनम्।

3. अंधों में काना राजा - निरस्तपादपे देशे एरण्डोपि द्रुमायते।

4. अधजल गगरी छलकत जाए - अर्धोघटो घोषमुपैति शब्दम् ।

5. एक पंथ दो काज - एका क्रिया द्वयर्थकरी प्रसिद्धा।

6. आंख का अंधा नाम नयनसुख - भिक्षार्थं भ्रमते नित्यं नाम किन्तु धनेश्वरः।

7. काल करे सो आज कर, आज करे सो अब - श्वः कर्तव्यानि कार्याणि कुर्यादद्यैव बुद्धिमान्।

8. जैसी करनी वैसी भरनी - यो यद् वपति बीजं लभते तादृशं फलम्।

9. पर उपदेश कुशल बहुतेरे - परोपदेशे पाण्डित्यं सर्वेषां सुकरं नृणाम् ।

10. मुंह में राम बगल में छुरी - विषकुम्भं पयोमुखम्।

11. भूखा क्या नहीं करता - बुभुक्षितः किं न करोति पापम्।

Saturday, June 8, 2024

हलायुध (समय लगभग १० वीं० शताब्दी ई०) भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषविद्, गणितज्ञ और वैज्ञानिक थे। उन्होने मृतसंजीवनी नामक ग्रन्थ की रचना

 हलायुध (समय लगभग १० वीं० शताब्दी ई०) भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषविद्, गणितज्ञ और वैज्ञानिक थे। उन्होने मृतसंजीवनी नामक ग्रन्थ की रचना की जो पिंगल के छन्दशास्त्र का भाष्य है। इसमें पास्कल त्रिभुज (मेरु प्रस्तार) का स्पष्ट वर्णन मिलता है।


परे पूर्णमिति। उपरिष्टादेकं चतुरस्रकोष्ठं लिखित्वा तस्याधस्तात् उभयतोर्धनिष्क्रान्तं कोष्ठद्वयं लिखेत्। तस्याप्यधस्तात् त्रयं तस्याप्यधस्तात् चतुष्टयं यावदभिमतं स्थानमिति मेरुप्रस्तारः। तस्य प्रथमे कोष्ठे एकसंख्यां व्यवस्थाप्य लक्षणमिदं प्रवर्तयेत्। तत्र परे कोष्ठे यत् वृत्तसंख्याजातं तत् पूर्वकोष्ठयोः पूर्णं निवेशयेत्।
हलायुध द्वारा रचित कोश का नाम अभिधानरत्नमाला है, पर यह हलायुधकोश नाम से अधिक प्रसिद्ध है। इसके पाँच कांड (स्वर, भूमि, पाताल, सामान्य और अनेकार्थ) हैं। प्रथम चार पर्यायवाची कांड हैं, पंचम में अनेकार्थक तथा अव्यय शब्द संगृहीत है। इसमें पूर्वकोशकारों के रूप में अमरदत्त, वरुरुचि, भागुरि और वोपालित के नाम उद्धृत है। रूपभेद से लिंग-बोधन की प्रक्रिया अपनाई गई है। ९०० श्लोकों के इस ग्रंथ पर अमरकोश का पर्याप्त प्रभाव जान पड़ता है।

कविरहस्य भी इनका रचित है जिसमें 'हलायुध' ने धातुओं के लट्लकार के भिन्न भिन्न रूपों का विशदीकरण भी किया है।
#श्रीरामचरितमानस_पाठ_नित्य_अभ्यासबालकांड
#जुड़े_अपनी_संस्कृति_से
#हमारी_परंपरा_हमारी_विरासत
#एक_कदम_संस्कृत_की_ओर
#धोती_कुर्ता_आपकी_वेशभूषा_आपका_गौरव_है
#मुझे_अपनी_संस्कृति_पर_गर्व_है
#संस्कृत_भाषा_मानवता_की_भाषा_है
#संस्कृत_भाषा_में_जनहित_है
#संस्कृत_भाषा_भेदभाव_को_मिटाए
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#जयश्रीराम
#महादेव
#वेद
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#वेदांत
#रामायण
#महाभारत
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#संस्कृत_ज्ञान_परंपरा
#संस्कृतकाउदय

Thursday, April 18, 2024

महापुराण के नाम और उनका महत्त्व-महापुराण के नाम याद एक श्लोक के माध्यम से हो जाएंगे।​​मद्वयं भद्वयं चैव ब्रत्रयं वचतुष्टयम् ।​​अनापलिंगकूस्कानि पुराणानि प्रचक्षते ॥

१८ महापुराण के नाम और उनका महत्त्व-

महापुराण के नाम याद एक श्लोक के माध्यम से हो जाएंगे।

​​मद्वयं भद्वयं चैव ब्रत्रयं वचतुष्टयम् ।
​​अनापलिंगकूस्कानि पुराणानि प्रचक्षते ॥

म-2, भ-2, ब्र-3, व-4 ।​
अ-1,ना-1, प-1, लिं-1, ग-1, कू-1, स्क-1 ॥

विष्णु पुराण के अनुसार उनके नाम ये हैं—विष्णु, पद्म, ब्रह्म, वायु(शिव), भागवत, नारद, मार्कण्डेय, अग्नि, ब्रह्मवैवर्त, लिंग, वाराह, स्कंद, वामन, कूर्म, मत्स्य, गरुड, ब्रह्मांड और भविष्य।

ब्रह्म पुराण
पद्म पुराण
विष्णु पुराण
वायु पुराण -- (शिव पुराण)
भागवत पुराण -- (देवीभागवत पुराण)
नारद पुराण
मार्कण्डेय पुराण
अग्नि पुराण
भविष्य पुराण
ब्रह्म वैवर्त पुराण
लिङ्ग पुराण
वाराह पुराण
स्कन्द पुराण
वामन पुराण
कूर्म पुराण
मत्स्य पुराण
गरुड़ पुराण

ब्रह्माण्ड पुराण

पुराणों में एक विचित्रता यह है कि प्रत्येक पुराण में अठारहो पुराणों के नाम और उनकीश्लोकसंख्या है। नाम और श्लोकसंख्या प्रायः सबकी मिलती है, कहीं कहीं भेद है। जैसे कूर्म पुराण में अग्नि के स्थान में वायुपुराण; मार्कंडेय पुराण में लिंगपुराण के स्थान में नृसिंहपुराण; देवीभागवत में शिव पुराण के स्थान में नारद पुराण और मत्स्य में वायुपुराण है। भागवत के नाम से आजकल दो पुराण मिलते हैं—एक श्रीमद्भागवत, दूसरा देवीभागवत। कौन वास्तव में पुराण है इसपर झगड़ा रहा है। रामाश्रम स्वामी ने 'दुर्जनमुखचपेटिका' में सिद्ध किया है कि श्रीमद्भागवत ही पुराण है। इसपर काशीनाथ भट्ट ने 'दुर्जनमुखमहाचपेटिका' तथा एक और पंडित ने 'दुर्जनमुखपद्यपादुका' देवीभागवत के पक्ष में लिखी थी।

पुराण शब्द का अर्थ है प्राचीन कथा। पुराण विश्व साहित्य के प्रचीनत्म ग्रँथ हैं। उन में लिखित ज्ञान और नैतिकता की बातें आज भी प्रासंगिक, अमूल्य तथा मानव सभ्यता की आधारशिला हैं। वेदों की भाषा तथा शैली कठिन है। पुराण उसी ज्ञान के सहज तथा रोचक संस्करण हैं। उन में जटिल तथ्यों को कथाओं के माध्यम से समझाया गया है। पुराणों का विषय नैतिकता, विचार, भूगोल, खगोल, राजनीति, संस्कृति, सामाजिक परम्परायें, विज्ञान तथा अन्य विषय हैं।
महृर्षि वेदव्यास ने 18 पुराणों का संस्कृत भाषा में संकलन किया है। ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश उन पुराणों के मुख्य देव हैं। त्रिमूर्ति के प्रत्येक भगवान स्वरूप को छः  पुराण समर्पित किये गये हैं। आइए जानते है 18 पुराणों के बारे में।

१) ब्रह्मपुराणः—इसे “आदिपुराण” भी का जाता है। प्राचीन माने गए सभी पुराणों में इसका उल्लेख है। इसमें श्लोकों की संख्या अलग- २ प्रमाणों से भिन्न-भिन्न है। १०,०००…१२.००० और १३,७८७ ये विभिन्न संख्याएँ मिलती है। इसका प्रवचन नैमिषारण्य में लोमहर्षण ऋषि ने किया था। इसमें सृष्टि, मनु की उत्पत्ति, उनके वंश का वर्णन, देवों और प्राणियों की उत्पत्ति का वर्णन है। इस पुराण में विभिन्न तीर्थों का विस्तार से वर्णन है। इसमें कुल २४५ अध्याय हैं। इसका एक परिशिष्ट सौर उपपुराण भी है, जिसमें उडिसा के कोणार्क मन्दिर का वर्णन है।
1.ब्रह्म पुराण (Brhma Purana)–
ब्रह्म पुराण सब से प्राचीन है। इस पुराण में 246 अध्याय  तथा 14000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में ब्रह्मा की महानता के अतिरिक्त सृष्टि की उत्पत्ति, गंगा आवतरण तथा रामायण और कृष्णावतार की कथायें भी संकलित हैं। इस ग्रंथ से सृष्टि की उत्पत्ति से लेकर सिन्धु घाटी सभ्यता तक की कुछ ना कुछ जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
(२) पद्मपुराणः—-इसमें कुल ६४१ अध्याय और ४८,००० श्लोक हैं। मत्स्यपुराण के अनुसार इसमें ५५,००० और ब्रह्मपुराण के अनुसार इसमें ५९,००० श्लोक थे। इसमें कुल खण़्ड हैं—(क) सृष्टिखण्डः—५ पर्व, (ख) भूमिखण्ड, (ग) स्वर्गखण्ड, (घ) पातालखण्ड और (ङ) उत्तरखण्ड।
इसका प्रवचन नैमिषारण्य में सूत उग्रश्रवा ने किया था। ये लोमहर्षण के पुत्र थे। इस पुराण में अनेक विषयों के साथ विष्णुभक्ति के अनेक पक्षों पर प्रकाश डाला गया है। इसका विकास ५ वीं शताब्दी माना जाता है।
2.पद्म पुराण (Padma Purana)-
पद्म पुराण में 55000 श्र्लोक हैं और यह ग्रंथ पाँच खण्डों में विभाजित है जिन के नाम सृष्टिखण्ड, स्वर्गखण्ड, उत्तरखण्ड, भूमिखण्ड तथा पातालखण्ड हैं। इस ग्रंथ में पृथ्वी आकाश, तथा नक्षत्रों की उत्पति के बारे में उल्लेख किया गया है। चार प्रकार से जीवों की उत्पत्ति होती है जिन्हें उदिभज, स्वेदज, अणडज तथा जरायुज की श्रेणा में रखा गया है। यह वर्गीकरण पुर्णत्या वैज्ञायानिक है। भारत के सभी पर्वतों तथा नदियों के बारे में भी विस्तरित वर्णन है। इस पुराण में शकुन्तला दुष्यन्त से ले कर भगवान राम तक के कई पूर्वजों का इतिहास है। शकुन्तला दुष्यन्त के पुत्र भरत के नाम से हमारे देश का नाम जम्बूदीप से भरतखण्ड और पश्चात भारत पडा था।

(३) विष्णुपुराणः—-पुराण के पाँचों लक्षण इसमें घटते हैं। इसमें विष्णु को परम देवता के रूप में निरूपित किया गया है। इसमें कुल छः खण्ड हैं, १२६ अध्याय, श्लोक २३,००० या २४,००० या ६,००० हैं। इस पुराण के प्रवक्ता पराशर ऋषि और श्रोता मैत्रेय हैं।

3.विष्णु पुराण (Vishnu Purana)-
विष्णु पुराण में 6 अँश तथा 23000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में भगवान विष्णु, बालक ध्रुव, तथा कृष्णावतार की कथायें संकलित हैं। इस के अतिरिक्त सम्राट पृथु की कथा भी शामिल है जिस के कारण हमारी धरती का नाम पृथ्वी पडा था। इस पुराण में सू्र्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास है। भारत की राष्ट्रीय पहचान सदियों पुरानी है जिस का प्रमाण विष्णु पुराण के निम्नलिखित शलोक में मिलता हैःउत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्। वर्षं तद भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः।(साधारण शब्दों में इस का अर्थ है कि वह भूगौलिक क्षेत्र जो उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण में सागर से घिरा हुआ है भारत देश है तथा उस में निवास करने वाले सभी जन भारत देश की ही संतान हैं।) भारत देश और भारत वासियों की इस से स्पष्ट पहचान और क्या हो सकती है? विष्णु पुराण वास्तव में ऐक ऐतिहासिक ग्रंथ है।
(४) वायुपुराणः—इसमें विशेषकर शिव का वर्णन किया गया है, अतः इस कारण इसे “शिवपुराण” भी कहा जाता है। एक शिवपुराण पृथक् भी है। इसमें ११२ अध्याय, ११,००० श्लोक हैं। इस पुराण का प्रचलन मगध-क्षेत्र में बहुत था। इसमें गया-माहात्म्य है। इसमें कुल चार भाग हैः—(क) प्रक्रियापादः– (अध्याय—१-६), (ख) उपोद्घातः— (अध्याय-७ –६४ ), (ग) अनुषङ्गपादः–(अध्याय—६५–९९), (घ) उपसंहारपादः–(अध्याय—१००-११२)। इसमें सृष्टिक्रम, भूगो, खगोल, युगों, ऋषियों तथा तीर्थों का वर्णन एवं राजवंशों, ऋषिवंशों,, वेद की शाखाओं, संगीतशास्त्र और शिवभक्ति का विस्तृत निरूपण है। इसमें भी पुराण के पञ्चलक्षण मिलते हैं।
4.शिव पुराण (Shiva Purana)–
शिव पुराण में 24000 श्र्लोक हैं तथा यह सात संहिताओं में विभाजित है। इस ग्रंथ में भगवान शिव की महानता तथा उन से सम्बन्धित घटनाओं को दर्शाया गया है। इस ग्रंथ को वायु पुराण भी कहते हैं। इस में कैलाश पर्वत, शिवलिंग तथा रुद्राक्ष का वर्णन और महत्व, सप्ताह के दिनों के नामों की रचना, प्रजापतियों तथा काम पर विजय पाने के सम्बन्ध में वर्णन किया गया है। सप्ताह के दिनों के नाम हमारे सौर मण्डल के ग्रहों पर आधारित हैं और आज भी लगभग समस्त विश्व में प्रयोग किये जाते हैं

(५) भागवतपुराणः—यह सर्वाधिक प्रचलित पुराण है। इस पुराण का सप्ताह-वाचन-पारायण भी होता है। इसे सभी दर्शनों का सार “निगमकल्पतरोर्गलितम्” और विद्वानों का परीक्षास्थल “विद्यावतां भागवते परीक्षा” माना जाता है। इसमें श्रीकृष्ण की भक्ति के बारे में बताया गया है।
इसमें कुल १२ स्कन्ध, ३३५ अध्याय और १८,००० श्लोक हैं। कुछ विद्वान् इसे “देवीभागवतपुराण” भी कहते हैं, क्योंकि इसमें देवी (शक्ति) का विस्तृत वर्णन हैं। इसका रचनाकाल ६ वी शताब्दी माना जाता है।

5.भागवत पुराण (Bhagwata Purana)–
भागवत पुराण में 18000 श्र्लोक हैं तथा 12 स्कंध हैं। इस ग्रंथ में अध्यात्मिक विषयों पर वार्तालाप है। भक्ति, ज्ञान तथा वैराग्य की महानता को दर्शाया गया है। विष्णु और कृष्णावतार की कथाओं के अतिरिक्त महाभारत काल से पूर्व के कई राजाओं, ऋषि मुनियों तथा असुरों की कथायें भी संकलित हैं। इस ग्रंथ में महाभारत युद्ध के पश्चात श्रीकृष्ण का देहत्याग, द्वारिका नगरी के जलमग्न होने और यदु वंशियों के नाश तक का विवरण भी दिया गया है।
(६) नारद (बृहन्नारदीय) पुराणः—इसे महापुराण भी कहा जाता है। इसमें पुराण के ५ लक्षण घटित नहीं होते हैं। इसमें वैष्णवों के उत्सवों और व्रतों का वर्णन है। इसमें २ खण्ड हैः—(क) पूर्व खणअ्ड में १२५ अध्याय और (ख) उत्तर-खण्ड में ८२ अध्याय हैं। इसमें १८,००० श्लोक हैं। इसके विषय मोक्ष, धर्म, नक्षत्र, एवं कल्प का निरूपण, व्याकरण, निरुक्त, ज्योतिष, गृहविचार, मन्त्रसिद्धि,, वर्णाश्रम-धर्म, श्राद्ध, प्रायश्चित्त आदि का वर्णन है।

6.नारद पुराण (Narad Purana)-
नारद पुराण में 25000 श्र्लोक हैं तथा इस के दो भाग हैं। इस ग्रंथ में सभी 18 पुराणों का सार दिया गया है। प्रथम भाग में मन्त्र तथा मृत्यु पश्चात के क्रम आदि के विधान हैं। गंगा अवतरण की कथा भी विस्तार पूर्वक दी गयी है। दूसरे भाग में संगीत के सातों स्वरों, सप्तक के मन्द्र, मध्य तथा तार स्थानों, मूर्छनाओं, शुद्ध एवं कूट तानो और स्वरमण्डल का ज्ञान लिखित है। संगीत पद्धति का यह ज्ञान आज भी भारतीय संगीत का आधार है। जो पाश्चात्य संगीत की चकाचौंध से चकित हो जाते हैं उन के लिये उल्लेखनीय तथ्य यह है कि नारद पुराण के कई शताब्दी पश्चात तक भी पाश्चात्य संगीत में केवल पाँच स्वर होते थे तथा संगीत की थ्योरी का विकास शून्य के बराबर था। मूर्छनाओं के आधार पर ही पाश्चात्य संगीत के स्केल बने हैं।
(७) मार्कण्डयपुराणः—इसे प्राचीनतम पुराण माना जाता है। इसमें इन्द्र, अग्नि, सूर्य आदि वैदिक देवताओं का वर्णन किया गया है। इसके प्रवक्ता मार्कण्डय ऋषि और श्रोता क्रौष्टुकि शिष्य हैं। इसमें १३८ अध्याय और ७,००० श्लोक हैं। इसमें गृहस्थ-धर्म, श्राद्ध, दिनचर्या, नित्यकर्म, व्रत, उत्सव, अनुसूया की पतिव्रता-कथा, योग, दुर्गा-माहात्म्य आदि विषयों का वर्णन है।

7.मार्कण्डेय पुराण (Markandeya Purana)–
अन्य पुराणों की अपेक्षा यह छोटा पुराण है। मार्कण्डेय पुराण में 9000 श्र्लोक तथा 137 अध्याय हैं। इस ग्रंथ में सामाजिक न्याय और योग के विषय में ऋषिमार्कण्डेय तथा ऋषि जैमिनि के मध्य वार्तालाप है। इस के अतिरिक्त भगवती दुर्गा तथा श्रीक़ृष्ण से जुड़ी हुयी कथायें भी संकलित हैं।
(८) अग्निपुराणः—इसके प्रवक्ता अग्नि और श्रोता वसिष्ठ हैं। इसी कारण इसे अग्निपुराण कहा जाता है। इसे भारतीय संस्कृति और विद्याओं का महाकोश माना जाता है। इसमें इस समय ३८३ अध्याय, ११,५०० श्लोक हैं। इसमें विष्णु के अवतारों का वर्णन है। इसके अतिरिक्त शिवलिंग, दुर्गा, गणेश, सूर्य, प्राणप्रतिष्ठा आदि के अतिरिक्त भूगोल, गणित, फलित-ज्योतिष, विवाह, मृत्यु, शकुनविद्या, वास्तुविद्या, दिनचर्या, नीतिशास्त्र, युद्धविद्या, धर्मशास्त्र, आयुर्वेद, छन्द, काव्य, व्याकरण, कोशनिर्माण आदि नाना विषयों का वर्णन है।
8.अग्नि पुराण (Agni Purana)–
अग्नि पुराण में 383 अध्याय तथा 15000 श्र्लोक हैं। इस पुराण को भारतीय संस्कृति का ज्ञानकोष (इनसाईक्लोपीडिया) कह सकते है। इस ग्रंथ में मत्स्यावतार, रामायण तथा महाभारत की संक्षिप्त कथायें भी संकलित हैं। इस के अतिरिक्त कई विषयों पर वार्तालाप है जिन में धनुर्वेद, गान्धर्व वेद तथा आयुर्वेद मुख्य हैं। धनुर्वेद, गान्धर्व वेद तथा आयुर्वेद को उप-वेद भी कहा जाता है
(९) भविष्यपुराणः—इसमें भविष्य की घटनाओं का वर्णन है। इसमें दो खण्ड हैः–(क) पूर्वार्धः–(अध्याय—४१) तथा (ख) उत्तरार्धः–(अध्याय़—१७१) । इसमें कुल १५,००० श्लोक हैं । इसमें कुल ५ पर्व हैः–(क) ब्राह्मपर्व, (ख) विष्णुपर्व, (ग) शिवपर्व, (घ) सूर्यपर्व तथा (ङ) प्रतिसर्गपर्व। इसमें मुख्यतः ब्राह्मण-धर्म, आचार, वर्णाश्रम-धर्म आदि विषयों का वर्णन है। इसका रचनाकाल ५०० ई. से १२०० ई. माना जाता है।
9.भविष्य पुराण (Bhavishya Purana)–
भविष्य पुराण में 129 अध्याय तथा 28000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में सूर्य का महत्व, वर्ष के 12 महीनों का निर्माण, भारत के सामाजिक, धार्मिक तथा शैक्षिक विधानों आदि कई विषयों पर वार्तालाप है। इस पुराण में साँपों की पहचान, विष तथा विषदंश सम्बन्धी महत्वपूर्ण जानकारी भी दी गयी है। इस पुराण की कई कथायें बाईबल की कथाओं से भी मेल खाती हैं। इस पुराण में पुराने राजवँशों के अतिरिक्त भविष्य में आने वाले  नन्द वँश, मौर्य वँशों, मुग़ल वँश, छत्रपति शिवा जी और महारानी विक्टोरिया तक का वृतान्त भी दिया गया है। ईसा के भारत आगमन तथा मुहम्मद और कुतुबुद्दीन ऐबक का जिक्र भी इस पुराण में दिया गया है। इस के अतिरिक्त विक्रम बेताल तथा बेताल पच्चीसी की कथाओं का विवरण भी है। सत्य नारायण की कथा भी इसी पुराण से ली गयी है।
(१०) ब्रह्मवैवर्तपुराणः—यह वैष्णव पुराण है। इसमें श्रीकृष्ण के चरित्र का वर्णन किया गया है। इसमें कुल १८,००० श्लोक है और चार खण्ड हैः—(क) ब्रह्म, (ख) प्रकृति, (ग) गणेश तथा (घ) श्रीकृष्ण-जन्म।
10.ब्रह्म वैवर्त पुराण (Brahma Vaivarta Purana)–
ब्रह्माविवर्ता पुराण में 18000 श्र्लोक तथा 218 अध्याय हैं। इस ग्रंथ में ब्रह्मा, गणेश, तुल्सी, सावित्री, लक्ष्मी, सरस्वती तथा क़ृष्ण की महानता को दर्शाया गया है तथा उन से जुड़ी हुयी कथायें संकलित हैं। इस पुराण में आयुर्वेद सम्बन्धी ज्ञान भी संकलित है।
(११) लिङ्गपुराणः—-इसमें शिव की उपासना का वर्णन है। इसमें शिव के २८ अवतारों की कथाएँ दी गईं हैं। इसमें ११,००० श्लोक और १६३ अध्याय हैं। इसे पूर्व और उत्तर नाम से दो भागों में विभाजित किया गया है। इसका रचनाकाल आठवीं-नवीं शताब्दी माना जाता है। यह पुराण भी पुराण के लक्षणों पर खरा नहीं उतरता है।
11.लिंग पुराण (Linga Purana)–
लिंग पुराण में 11000 श्र्लोक और 163 अध्याय हैं। सृष्टि की उत्पत्ति तथा खगौलिक काल में युग, कल्प आदि की तालिका का वर्णन है। राजा अम्बरीष की कथा भी इसी पुराण में लिखित है। इस ग्रंथ में अघोर मंत्रों तथा अघोर विद्या के सम्बन्ध में भी उल्लेख किया गया है।
(१२) वराहपुराणः—इसमें विष्णु के वराह-अवतार का वर्णन है। पाताललोक से पृथिवी का उद्धार करके वराह ने इस पुराण का प्रवचन किया था। इसमें २४,००० श्लोक सम्प्रति केवल ११,००० और २१७ अध्याय हैं।

12.वराह पुराण (Varaha Purana)–
वराह पुराण में 217 स्कन्ध तथा 10000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में वराह अवतार की कथा के अतिरिक्त भागवत गीता महामात्या का भी विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। इस पुराण में सृष्टि के विकास, स्वर्ग, पाताल तथा अन्य लोकों का वर्णन भी दिया गया है। श्राद्ध पद्धति, सूर्य के उत्तरायण तथा दक्षिणायन विचरने, अमावस और पूर्णमासी के कारणों का वर्णन है। महत्व की बात यह है कि जो भूगौलिक और खगौलिक तथ्य इस पुराण में संकलित हैं वही तथ्य पाश्चात्य जगत के वैज्ञिानिकों को पंद्रहवी शताब्दी के बाद ही पता चले थे।
(१३) स्कन्दपुराणः—यह पुराण शिव के पुत्र स्कन्द (कार्तिकेय, सुब्रह्मण्य) के नाम पर है। यह सबसे बडा पुराण है। इसमें कुल ८१,००० श्लोक हैं। इसमें दो खण्ड हैं। इसमें छः संहिताएँ हैं—सनत्कुमार, सूत, शंकर, वैष्णव, ब्राह्म तथा सौर। सूतसंहिता पर माधवाचार्य ने “तात्पर्य-दीपिका” नामक विस्तृत टीका लिखी है। इस संहिता के अन्त में दो गीताएँ भी हैं—-ब्रह्मगीता (अध्याय—१२) और सूतगीताः–(अध्याय ८)।
इस पुराण में सात खण्ड हैं—(क) माहेश्वर, (ख) वैष्णव, (ग) ब्रह्म, (घ) काशी, (ङ) अवन्ती, (रेवा), (च) नागर (ताप्ती) तथा (छ) प्रभास-खण्ड। काशीखण्ड में “गंगासहस्रनाम” स्तोत्र भी है। इसका रचनाकाल ७ वीं शताब्दी है। इसमें भी पुराण के ५ लक्षण का निर्देश नहीं मिलता है।
13.स्कन्द पुराण (Skanda Purana)–
स्कन्द पुराण सब से विशाल पुराण है तथा इस पुराण में 81000 श्र्लोक और छः खण्ड हैं। स्कन्द पुराण में प्राचीन भारत का भूगौलिक वर्णन है जिस में 27 नक्षत्रों, 18 नदियों, अरुणाचल प्रदेश का सौंदर्य, भारत में स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों, तथा गंगा अवतरण के आख्यान शामिल हैं। इसी पुराण में स्याहाद्री पर्वत श्रंखला तथा कन्या कुमारी मन्दिर का उल्लेख भी किया गया है। इसी पुराण में सोमदेव, तारा तथा उन के पुत्र बुद्ध ग्रह की उत्पत्ति की अलंकारमयी कथा भी है
(१४) वामनपुराणः—इसमें विष्णु के वामन-अवतार का वर्णन है। इसमें ९५ अध्याय और १०,००० श्लोक हैं। इसमें चार संहिताएँ हैं—-(क) माहेश्वरी, (ख) भागवती, (ग) सौरी तथा (घ) गाणेश्वरी । इसका रचनाकाल ९ वीं से १० वीं शताब्दी माना जाता है।
14.वामन पुराण (Vamana Purana)-
वामन पुराण में 95 अध्याय तथा 10000 श्र्लोक तथा दो खण्ड हैं। इस पुराण का केवल प्रथम खण्ड ही उपलब्ध है। इस पुराण में वामन अवतार की कथा विस्तार से कही गयी हैं जो भरूचकच्छ (गुजरात) में हुआ था। इस के अतिरिक्त इस ग्रंथ में भी सृष्टि, जम्बूदूीप तथा अन्य सात दूीपों की उत्पत्ति, पृथ्वी की भूगौलिक स्थिति, महत्वशाली पर्वतों, नदियों तथा भारत के खण्डों का जिक्र है।
(१५) कूर्मपुराणः—इसमें विष्णु के कूर्म-अवतार का वर्णन किया गया है। इसमें चार संहिताएँ हैं—(क) ब्राह्मी, (ख) भागवती, (ग) सौरा तथा (घ) वैष्णवी । सम्प्रति केवल ब्राह्मी-संहिता ही मिलती है। इसमें ६,००० श्लोक हैं। इसके दो भाग हैं, जिसमें ५१ और ४४ अध्याय हैं। इसमें पुराण के पाँचों लक्षण मिलते हैं। इस पुराण में ईश्वरगीता और व्यासगीता भी है। इसका रचनाकाल छठी शताब्दी माना गया है।
15.कुर्मा पुराण (Kurma Purana)–
कुर्मा पुराण में 18000 श्र्लोक तथा चार खण्ड हैं। इस पुराण में चारों वेदों का सार संक्षिप्त रूप में दिया गया है। कुर्मा पुराण में कुर्मा अवतार से सम्बन्धित सागर मंथन की कथा  विस्तार पूर्वक लिखी गयी है। इस में ब्रह्मा, शिव, विष्णु, पृथ्वी, गंगा की उत्पत्ति, चारों युगों, मानव जीवन के चार आश्रम धर्मों, तथा चन्द्रवँशी राजाओं के बारे में भी वर्णन है।
(१६) मत्स्यपुराणः—इसमें पुराण के पाँचों लक्षण घटित होते हैं। इसमें २९१ अध्याय और १४,००० श्लोक हैं। प्राचीन संस्करणों में १९,००० श्लोक मिलते हैं। इसमें जलप्रलय का वर्णन हैं। इसमें कलियुग के राजाओं की सूची दी गई है। इसका रचनाकाल तीसरी शताब्दी माना जाता है।
16.मतस्य पुराण(Matsya Purana)–
मतस्य पुराण में 290 अध्याय तथा 14000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में मतस्य अवतार की कथा का विस्तरित उल्लेख किया गया है। सृष्टि की उत्पत्ति हमारे सौर मण्डल के सभी ग्रहों, चारों युगों तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास वर्णित है। कच, देवयानी, शर्मिष्ठा तथा राजा ययाति की रोचक कथा भी इसी पुराण में है
(१७) गरुडपुराणः—यह वैष्णवपुराण है। इसके प्रवक्ता विष्णु और श्रोता गरुड हैं, गरुड ने कश्यप को सुनाया था। इसमें विष्णुपूजा का वर्णन है। इसके दो खण्ड हैं, जिसमें पूर्वखण्ड में २२९ और उत्तरखण्ड में ३५ अध्याय और १८,००० श्लोक हैं। इसका पूर्वखण्ड विश्वकोशात्मक माना जाता है।

17.गरुड़ पुराण (Garuda Purana)–
गरुड़ पुराण में 279 अध्याय तथा 18000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में मृत्यु पश्चात की घटनाओं, प्रेत लोक, यम लोक, नरक तथा 84 लाख योनियों के नरक स्वरुपी जीवन आदि के बारे में विस्तार से बताया गया है। इस पुराण में कई सूर्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का वर्णन भी है। साधारण लोग इस ग्रंथ को पढ़ने से हिचकिचाते हैं क्योंकि इस ग्रंथ को किसी परिचित की मृत्यु होने के पश्चात ही पढ़वाया जाता है। वास्तव में इस पुराण में मृत्यु पश्चात पुनर्जन्म होने पर गर्भ में स्थित भ्रूण की वैज्ञानिक अवस्था सांकेतिक रूप से बखान की गयी है जिसे वैतरणी नदी आदि की संज्ञा दी गयी है। समस्त यूरोप में उस समय तक भ्रूण के विकास के बारे में कोई भी वैज्ञानिक जानकारी नहीं थी।

(१८) ब्रह्माण्डपुराणः—इसमें १०९ अध्याय तथा १२,००० श्लोक है। इसमें चार पाद हैं—(क) प्रक्रिया, (ख) अनुषङ्ग, (ग) उपोद्घात तथा (घ) उपसंहार । इसकी रचना ४०० ई.- ६०० ई. मानी जाती है।
18.ब्रह्माण्ड पुराण (Brahmanda Purana)-
ब्रह्माण्ड पुराण में 12000 श्र्लोक तथा पू्र्व, मध्य और उत्तर तीन भाग हैं। मान्यता है कि अध्यात्म रामायण पहले ब्रह्माण्ड पुराण का ही एक अंश थी जो अभी एक पृथक ग्रंथ है। इस पुराण में ब्रह्माण्ड में स्थित ग्रहों के बारे में वर्णन किया गया है। कई सूर्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास भी संकलित है। सृष्टि की उत्पत्ति के समय से ले कर अभी तक सात मनोवन्तर (काल) बीत चुके हैं जिन का विस्तरित वर्णन इस ग्रंथ में किया गया है। परशुराम की कथा भी इस पुराण में दी गयी है। इस ग्रँथ को विश्व का प्रथम खगोल शास्त्र कह सकते है। भारत के ऋषि इस पुराण के ज्ञान को इण्डोनेशिया भी ले कर गये थे जिस के प्रमाण इण्डोनेशिया की भाषा में मिलते है।

#संस्कृतकाउदय

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