Thursday, June 12, 2025

मैं कौन हूँ? — मैं वह हूँ जो सत्य की खोज में,यह प्रश्न छोटा है, पर उत्तर अनंत है।

 मैं कौन हूँ?

— मैं वह हूँ जो सत्य की खोज में है।
— मैं वह हूँ जो प्रेम चाहता है और प्रेम बाँटना चाहता है।
— मैं वह हूँ, जो ईश्वर के अंश के रूप में,
इस संसार में अपने कर्तव्य को निभा रहा है।

        "“मैं कौन हूँ?” — यह प्रश्न छोटा है, पर उत्तर अनंत है।

        "हर सोचने वाला मन कभी न कभी इस प्रश्न से टकराता है।

        "क्या मैं केवल यह शरीर हूँ?

        "क्या मैं अपने नाम, जाति, धर्म, पहचान, या भूमिका से परिभाषित हूँ?

        "या फिर इन सबसे परे भी कोई \"मैं\" है?\

        "जब हम दर्पण में देखते हैं, तो चेहरा दिखता है – पर आत्मा नहीं, जो भीतर है।        मैं वह नहीं जो बाहर दिखता है — मैं  वह हूँ जो भीतर महसूस करता है।

        "मैं एक यात्रा हूँ — बचपन से वृद्धावस्था तक।        "एक विचार, जो बदलता है

        "एक चेतना, जो हर अनुभव से कुछ सीखती है…\

        "एक आत्मा, जो अमर है, शरीर से परे है।

        "वेद कहते हैं:\ “अहं ब्रह्मास्मि” — मैं ब्रह्म हूँ\ “सोऽहं” — वह (परमात्मा) मैं ही हूँ\

        "इसका अर्थ यह नहीं कि मैं सर्वशक्तिमान हूँ,\

        "बल्कि यह कि मेरे भीतर भी वही दिव्यता है —\nजो सूर्य में है, जो सागर में है, जो कण-कण में है।

        "मैं एक साधारण मनुष्य नहीं,\बल्कि एक अपार संभावना हूँ।

        "जब मैं यह समझने लगता हूँ,\तो मेरा डर कम होता है, मेरा जीवन स्पष्ट होता है,\और मेरा उद्देश्य गहरा होता है।\

        "मैं कौन हूँ?\— मैं वह हूँ जो सत्य की खोज में है।\n"

        "— मैं वह हूँ जो प्रेम चाहता है और प्रेम बाँटना चाहता है।\n"

        "— मैं वह हूँ, जो ईश्वर के अंश के रूप में,\इस संसार में अपने कर्तव्य को निभा रहा है


“मैं कौन हूँ?” — यह प्रश्न छोटा है, पर उत्तर अनंत है।
हर सोचने वाला मन कभी न कभी इस प्रश्न से टकराता है।

क्या मैं केवल यह शरीर हूँ?
क्या मैं अपने नाम, जाति, धर्म, पहचान, या भूमिका से परिभाषित हूँ?
या फिर इन सबसे परे भी कोई "मैं" है?

जब हम दर्पण में देखते हैं, तो चेहरा दिखता है –
पर आत्मा नहीं, जो भीतर है।

"मैं" वह नहीं जो बाहर दिखता है —
"मैं" वह हूँ जो भीतर महसूस करता है।

मैं एक यात्रा हूँ — बचपन से वृद्धावस्था तक।
एक विचार, जो बदलता है…
एक चेतना, जो हर अनुभव से कुछ सीखती है…
एक आत्मा, जो अमर है, शरीर से परे है।

वेद कहते हैं:
  "अहं ब्रह्मास्मि" — मैं ब्रह्म हूँ
  "सोऽहं" — वह (परमात्मा) मैं ही हूँ

इसका अर्थ यह नहीं कि मैं सर्वशक्तिमान हूँ,
बल्कि यह कि मेरे भीतर भी वही दिव्यता है —
जो सूर्य में है, जो सागर में है, जो कण-कण में है।

मैं एक साधारण मनुष्य नहीं,
बल्कि एक अपार संभावना हूँ।

जब मैं यह समझने लगता हूँ,
तो मेरा डर कम होता है, मेरा जीवन स्पष्ट होता है,
और मेरा उद्देश्य गहरा होता है।

एक गहराई से भरा प्रश्न...

जीवन केवल साँसों की गणना नहीं है, यह अनुभवों की एक अनमोल यात्रा है।
यह कभी मुस्कान है, कभी आँसू, कभी संघर्ष है तो कभी विश्राम।
जीवन एक पुस्तक की तरह है – हर दिन एक नया पृष्ठ, हर क्षण एक नई कहानी।

हम जन्म लेते हैं बिना किसी विकल्प के, लेकिन जीवन को कैसे जीना है, यह चुनाव हमारा होता है।
जीवन प्रश्न भी है, उत्तर भी। यह वह धागा है जो संबंधों, संवेदनाओं और सपनों को बाँधता है।

सच्चा जीवन वही है जो दूसरों के जीवन को छू जाए – सेवा, प्रेम और करुणा से।
जो फूल बनकर महके, दीपक बनकर जले, और पर्वत बनकर अडिग खड़ा रहे – वही जीवन सार्थक है।

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