Wednesday, August 22, 2018

क्यों चढ़ाया जाता है श्रीकृष्ण को 56 भोग ?* तब 7 दिन भूखे रहे थे भगवान, इसलिए अब लगाया जाता है 56 पकवानों का भोग।

क्यों चढ़ाया जाता है  श्रीकृष्ण को 56 भोग ?*

तब 7 दिन भूखे रहे थे भगवान, इसलिए अब लगाया जाता है 56 पकवानों का भोग।

बाल रूप में भगवान कृष्ण दिन में आठ बार (अष्ट पहर) भोजन करते थे। मां यशोदा उन्हें तरह-तरह के पकवान बनाकर खिलाती थीं। यह बात तब कि यह जब इंद्र के प्रकोप से सारे ब्रज को बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाया था, तब लगातार सात दिन तक उन्होंने अन्न जल ग्रहण नहीं किया था।

आठवें दिन जब बारिश थम गई, तब कृष्ण ने सभी ब्रजवासियों को अपने-अपने घर जाने को कहा और गोवर्धन पर्वत को जमीन पर रख दिया। इन सात दिनों तक भगवान कृष्ण भूख रहे थे।

मां यशोदा के साथ ही सभी ब्रजवासियों को यह जरा भी अच्छा नहीं लगा कि दिन में आठ बार भोजन करने वाले हमारा कन्हैया पूरे साथ दिन भूखा रहा।

इसके बाद पूरे गांव वालों ने सातों दिन के आठ प्रहर के हिसाब से पकवान बनाए और भगवान को भोग लगाया। तब से 56 भोग की प्रथा चली आ रही है।

ये हैं वो 56 भोग

1. भक्त (भात)

2. सूप (दाल)

3. प्रलेह (चटनी)

4. सदिका (कढ़ी)

5. दधिशाकजा (दही शाक की कढ़ी)

6. सिखरिणी (सिखरन)

7. अवलेह (शरबत)

8. बालका (बाटी)

9. इक्षु खेरिणी (मुरब्बा)

10. त्रिकोण (शर्करा युक्त)

11. बटक (बड़ा)

12. मधु शीर्षक (मठरी)

13. फेणिका (फेनी)

14. परिष्टïश्च (पूरी)

15. शतपत्र (खजला)

16. सधिद्रक (घेवर)

17. चक्राम (मालपुआ)

18. चिल्डिका (चोला)

19. सुधाकुंडलिका (जलेबी)

20. धृतपूर (मेसू)

21. वायुपूर (रसगुल्ला)

22. चन्द्रकला (पगी हुई)

23. दधि (महारायता)

24. स्थूली (थूली)

25. कर्पूरनाड़ी (लौंगपूरी)

26. खंड मंडल (खुरमा)

27. गोधूम (दलिया)

28. परिखा

29. सुफलाढय़ा (सौंफ युक्त)

30. दधिरूप (बिलसारू)

31. मोदक (लड्डू)

32. शाक (साग)

33. सौधान (अधानौ अचार)

34. मंडका (मोठ)

35. पायस (खीर)

36. दधि (दही)

37. गोघृत

38. हैयंगपीनम (मक्खन)

39. मंडूरी (मलाई)

40. कूपिका (रबड़ी)

41. पर्पट (पापड़)

42. शक्तिका (सीरा)

43. लसिका (लस्सी)

44. सुवत

45. संघाय (मोहन)

46. सुफला (सुपारी)

47. सिता (इलायची)

48. फल

49. तांबूल

50. मोहन भोग

51. लवण

52. कषाय

53. मधुर

54. तिक्त

55. कटु

56. अम्ल

जय हो
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे

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