राजा भर्तहरि की कथा : जब एक फल ने राजा को बैरागी बना दिया
यही इस संसार की वास्तविकता है। एक व्यक्ति किसी अन्य से प्रेम करता है और चाहता है कि वह व्यक्ति भी उसे उतना ही प्रेम करे। परंतु विडंबना यह कि वह दूसरा व्यक्ति किसी अन्य से प्रेम करता है। इसका कारण यह है कि संसार व इसके सभी प्राणी अपूर्ण हैं। सब में कुछ न कुछ कमी है। सिर्फ एक ईश्वर पूर्ण है।
एक वही है जो हर जीव से उतना ही प्रेम करता है,
जितना जीव उससे करता है। बस हमीं उसे सच्चा प्रेम
नहीं करते ।
भृतहरि जी की एक कथा बहुत प्रसिद्ध है जो बताती है कि वे कैसे सन्यासी बने। वह कथा नीचे दी गयी है किन्तु भर्तृहरि के नीतिशतक के आरम्भिक श्लोक में इसी को संकेत रूप में कहा गया है-
- यां चिन्तयामि सततं मयि सा विरक्ता
- साप्यन्यम् इच्छति जनं स जनोऽन्यसक्तः ।
- अस्मत्कृते च परिशुष्यति काचिद् अन्या
- धिक् तां च तं च मदनं च इमां च मां च ॥
- ( अर्थ - मैं जिसका सतत चिन्तन करता हूँ वह (पिंगला) मेरे प्रति उदासीन है। वह (पिंगला) भी जिसको चाहती है वह (अश्वपाल) तो कोई दूसरी ही स्त्री (राजनर्तकी) में आसक्त है। वह (राजनर्तकी) मेरे प्रति स्नेहभाव रखती है। उस (पिंगला) को धिक्कार है ! उस अश्वपाल को धिक्कार है ! उस (राजनर्तकी) को धिक्कार है ! उस कामदेव को धिक्कार है और मुझे भी धिक्कार है !)
इनके एक और रानी अनंगसेना थी जिसको राजा बहुत प्यार करते थे। उसका राजा के घोड़े के चरवाहे चंद्रचूड़ से भी प्यार था और सेनापति से भी था। उस सेनापति का नगरवधू रूपलेखा के घर भी आना जाना था।राजा भी उस रूपलेखा के यहाँ चंद्रचूड़ कोचवान के साथ बग्घी में बैठकर जाते थे। इस तरह चंद्रचूड़ और सेनापति दोनों का ही रानी अनंगसेना और रूपलेखा से प्यार का सम्बन्ध था।यह बात योगी गोरखनाथ जी को पता चली तो उन्होंने ही किसी ब्राह्मण के साथ अमरफल भेजा।
प्राचीन उज्जैन में बड़े प्रतापी राजा हुए। राजा भर्तहरि अपनी तीसरी पत्नी पिंगला पर मोहित थे और वे उस पर अत्यंत विश्वास करते थे। राजा पत्नी मोह में अपने कर्तव्यों को भी भूल गए थे। उस समय उज्जैन में एक तपस्वी गुरु गोरखनाथ का आगमन हुआ। गोरखनाथ राजा के दरबार में पहुंचे। भर्तहरि ने गोरखनाथ का उचित आदर-सत्कार किया। इससे तपस्वी गुरु अति प्रसन्न हुए। प्रसन्न होकर गोरखनाथ ने राजा एक फल दिया और कहा कि यह खाने से वह सदैव जवान बने रहेंगे, कभी बुढ़ापा नहीं आएगा, सदैव सुंदरता बनी रहेगी।
यह चमत्कारी फल देकर गोरखनाथ वहां से चले गए। राजा ने फल लेकर सोचा कि उन्हें जवानी और सुंदरता की क्या आवश्यकता है। चूंकि राजा अपनी तीसरी पत्नी पर अत्यधिक मोहित थे, अत: उन्होंने सोचा कि यदि यह फल पिंगला खा लेगी तो वह सदैव सुंदर और जवान बनी रहेगी। यह सोचकर राजा ने पिंगला को वह फल दे दिया। रानी पिंगला भर्तृहरि पर नहीं बल्कि उसके राज्य के कोतवाल पर मोहित थी। यह बात राजा नहीं जानते थे। जब राजा ने वह चमत्कारी फल रानी को दिया तो रानी ने सोचा कि यह फल यदि कोतवाल खाएगा तो वह लंबे समय तक उसकी इच्छाओं की पूर्ति कर सकेगा। रानी ने यह सोचकर चमत्कारी फल कोतवाल को दे दिया। वह कोतवाल एक वैश्या से प्रेम करता था और उसने चमत्कारी फल उसे दे दिया। ताकि वैश्या सदैव जवान और सुंदर बनी रहे। वैश्या ने फल पाकर सोचा कि यदि वह जवान और सुंदर बनी रहेगी तो उसे यह गंदा काम हमेशा करना पड़ेगा। नर्क समान जीवन से मुक्ति नहीं मिलेगी। इस फल की सबसे ज्यादा जरूरत हमारे राजा को है। राजा हमेशा जवान रहेंगे तो लंबे समय तक प्रजा को सभी सुख-सुविधाएं देता रहेगा। यह सोचकर उसने चमत्कारी फल राजा को दे दिया। राजा वह फल देखकर हतप्रभ रह गए।
राजा ने वैश्या से पूछा कि यह फल उसे कहांं से प्राप्त हुआ। वैश्या ने बताया कि यह फल उसे कोतवाल ने दिया है। भर्तहरि ने तुरंत कोतवाल को बुलवा लिया। सख्ती से पूछने पर कोतवाल ने बताया कि यह फल उसे रानी पिंगला ने दिया है। जब भरथरी को पूरी सच्चाई मालूम हुई तो वह समझ गए कि रानी पिंगला उसे धोखा दे रही है। पत्नी के धोखे से भर्तहरि के मन में वैराग्य जाग गया और वे अपना संपूर्ण राज्य विक्रमादित्य को सौंपकर उज्जैन की एक गुफा में आ गए। उस गुफा में भर्तहरि ने 12 वर्षों तक तपस्या की थी। उज्जैन में आज भी राजा भर्तहरि की गुफा दर्शनीय स्थल के रूप में स्थित है।
राजा भर्तहरि ने वैराग्य पर वैराग्य शतक की रचना की, जो कि काफी प्रसिद्ध है। राजा भर्तहरि ने श्रृंगार शतक और नीति शतक की भी रचना की। यह तीनों ही शतक आज भी उपलब्ध हैं और पढ़ने योग्य है।
राजा भर्तहरि ने वैराग्य पर वैराग्य शतक की रचना की, जो कि काफी प्रसिद्ध है। राजा भर्तहरि ने श्रृंगार शतक और नीति शतक की भी रचना की। यह तीनों ही शतक आज भी उपलब्ध हैं और पढ़ने योग्य है।
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