Thursday, January 3, 2019

 क्या हैं कामसूत्र की 64 कलाएं

 क्या हैं कामसूत्र की 64 कलाएं
कामसूत्र का जब नाम आता है तो लोग केवल काम यानि(वासना) की तरफ लोगों का ध्यान जाता है ,परन्तु कामसूत्र में अलग-अलग तरह की कलाएं है,जिनके बारे में सबको जानना चाहिए।
 क्या हैं कामसूत्र की 64 कलाएं,

गीत, वाद्य, नृत्‍य, चित्र बनाना, बिंदी व तिलक लगाना सीखना, रंगोली बनाना, घरों को फूलों से सजाना, दांतों, वस्‍त्रों, केश, नख आदि को सलीके से रखना, घर के फर्श को साफ रखना, बिस्‍तर बिछाना, जलतरंग बजाना, जलक्रीड़ा करना, नए सीखने के लिए हमेशा उत्‍साहित रहना। 
माला गूंथना सीखना, सिर के ऊपर से नीचे की ओर मालाएं लटकाना व सिर के चारों ओर माला धारण करना, समय एवं स्‍थान आदि के अनुरूप शरीर को वस्‍त्रादि से सजाना, शंख, अभ्रक आदि से वस्‍त्रों को सजाना, सुगंधित पदार्थ का उचित प्रयोग, गहने बनाना, चमत्‍कारी व्‍यक्तित्‍व, सुंदरता बढ़ाने के नुस्‍खे अपनाना,
बेहतरीन ढंग से काम करना, स्‍वादिष्‍ट भोजन बनाना, खाने के बाद की सामग्री जैसे पान, सोंठ, गीला चूर्ण आदि बनाना, सीना, बुनना और कढाई, चीणा व डमरू बजाना, धागों की सहायता से चित्रकारी बनाना, पहेलियां पूछना और हल करना, अंत्‍याक्षरी करना, ऐसी बातें जो शब्‍द व अर्ध की दृष्टि से दोहराने में कठिन हो, पुस्‍तक पढना, नाटक व कहानियों का ज्ञान, काव्‍य का ज्ञान, लकड़ी के चौखटे, कुर्सी आदि की बुनाई, विभिन्‍न धातुओं की आकृतियां बनाना, काष्‍ठ कला, भवन निर्माण कला। 
मूल्‍यवान वस्‍तुओं व रत्‍नों की पहचान, धातुओं का ज्ञान, मणियों व रंगों का ज्ञान, उद्यान लगाना, बटेर लडाने की विधि का ज्ञान, तोता मैना से बोलना व गाना सिखाना, पैरों से शरीर की मालिश, गुप्‍त अक्षरों का ज्ञान, गुप्त भाषा में बात करना, कई भाषाओं का ज्ञान, फूलों की गाडी बनाना, शुभ अशुभ शकुनों का फल बताना, यंत्र बनाना, सुनी हुई बात, पुस्‍तक आदि को स्‍मरण करना, मिलकर पढना, गूढ कविता को स्‍पष्‍ट करना, शब्‍दकोश का ज्ञान, छंद का ज्ञान, काव्‍य रचना, नकली रूप धरना, ढंग से वस्‍त्र पहनना, विशेष प्रकार के जुए, बच्‍चों के खिलौने बनाना,व्‍यवहार ज्ञान, विजयी होने का ज्ञान, व्‍यायाम संबंधी विद्या।

कामसूत्र में वर्णित ६४ कलायें निम्नलिखित हैं-

गीतं (१), वाद्यं (२), नृत्यं (३), आलेख्यं (४), विशेषकच्छेद्यं (५), तण्डुलकुसुमवलि विकाराः (६), पुष्पास्तरणं (७), दशनवसनागरागः (८), मणिभूमिकाकर्म (९), शयनरचनं (१०), उदकवाद्यं (११), उदकाघातः (१२), चित्राश्च योगाः (१३), माल्यग्रथन विकल्पाः (१४), शेखरकापीडयोजनं (१५), नेपथ्यप्रयोगाः (१६), कर्णपत्त्र भङ्गाः (१७), गन्धयुक्तिः (१८), भूषणयोजनं (१९), ऐन्द्रजालाः (२०), कौचुमाराश्च (२१), हस्तलाघवं (२२), विचित्रशाकयूषभक्ष्यविकारक्रिया (२३),.पानकरसरागासवयोजनं (२४), सूचीवानकर्माणि (२५), सूत्रक्रीडा (२६), वीणाडमरुकवाद्यानि (२७), प्रहेलिका (२८), प्रतिमाला (२९), दुर्वाचकयोगाः (३०), पुस्तकवाचनं (३१), नाटकाख्यायिकादर्शनं (३२), काव्यसमस्यापूरणं (३३), पट्टिकावानवेत्रविकल्पाः (३४),तक्षकर्माणि (३५), तक्षणं (३६), वास्तुविद्या (३७), रूप्यपरीक्षा (३८), धातुवादः (३९), मणिरागाकरज्ञानं (४०), वृक्षायुर्वेदयोगाः (४१), मेषकुक्कुटलावकयुद्धविधिः (४२), शुकसारिकाप्रलापनं (४३), उत्सादने संवाहने केशमर्दने च कौशलं (४४),अक्षरमुष्तिकाकथनम् (४५), म्लेच्छितविकल्पाः (४६), देशभाषाविज्ञानं (४७), पुष्पशकटिका (४८), निमित्तज्ञानं (४९), यन्त्रमातृका (५०), धारणमातृका (५१), सम्पाठ्यं (५२), मानसी काव्यक्रिया (५३), अभिधानकोशः (५४), छन्दोज्ञानं (५५), क्रियाकल्पः (५६), छलितकयोगाः (५७), वस्त्रगोपनानि (५८), द्यूतविशेषः (५९), आकर्षक्रीडा (६०), बालक्रीडनकानि (६१), वैनयिकीनां (६२), वैजयिकीनां (६३), व्यायामिकीनां च (६४) विद्यानां ज्ञानं इति चतुःषष्टिरङ्गविद्या. कामसूत्रावयविन्यः. ॥कामसूत्र १.३.१५ ।।

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