सरस्वती शब्द का अर्थ क्यों पूजा होती है, कैसे करे पूजा,सरस्वती मंत्र , अन्य देशों में सरस्वती, उद्भव ,
कथा
सरस्वती शब्द तीन शब्दों से निर्मित हैं, प्रथम 'सर'जिसका अर्थ सार, 'स्व' स्वयं तथा 'ती' जिसका अर्थ सम्पन्न हैं; जिसका अभिप्राय हैं जो स्वयं ही सम्पूर्ण सम्पन्न हो। ब्रह्माण्ड के निर्माण में सहायता हेतु, ब्रह्मा जी ने देवी सरस्वती को अपने ही शरीर से उत्पन्न किया था। इन्हीं के ज्ञान से प्रेरित हो ब्रह्मा जी ने समस्त जीवित तथा अजीवित तत्वों का निर्माण किया। ब्रह्मा जी की देवी सरस्वती के अतिरिक्त दो पत्नियां और भी हैं प्रथम सावित्री तथा द्वितीय गायत्री; तथा सभी रचना-ज्ञान से सम्बद्ध कार्यों से सम्बंधित हैं। देवी सरस्वती का एक नाम ब्राह्मणी भी हैं, जो किसी ब्राह्मण की पत्नी होना दर्शाता हैं।
वेद माता, ब्राह्मणी के नाम से त्रि-भुवन में विख्यात, विद्यार्थी वर्ग कि अधिष्ठात्री देवी सरस्वती।
सरस्वती का मंत्र
पावका नः सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवती ।
यज्ञं वष्टु धियावसुः ||
चोदयित्री सूनृतानां चेतन्ती सुमतीनाम् ।.
यज्ञं दुधे सरस्वती ।|
महो अर्ण: सरस्वती प्र चेतयति केतुना ।
धियो विश्वा वि राजति ।।
वेद के अर्थ समझने के लिए हमारे पास प्राचीन ऋषियों के प्रमाण हैं। निघण्टु में वाणी के 57 नाम हैं, उनमें से एक सरस्वती भी है। अर्थात् सरस्वती का अर्थ वेदवाणी है। ब्राह्मण ग्रंथ वेद व्याख्या के प्राचीनतम ग्रंथ है। वहाँ सरस्वती के अनेक अर्थ बताए गए हैं। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं-
1- वाक् सरस्वती।। वाणी सरस्वती है। (शतपथ 7/5/1/31)
2- वाग् वै सरस्वती पावीरवी।। ( 7/3/39) पावीरवी वाग् सरस्वती है।
3- जिह्वा सरस्वती।। (शतपथ 12/9/1/14) जिह्ना को सरस्वती कहते हैं।
4- सरस्वती हि गौः।। वृषा पूषा। (2/5/1/11) गौ सरस्वती है अर्थात् वाणी, रश्मि, पृथिवी, इन्द्रिय आदि। अमावस्या सरस्वती है। स्त्री, आदित्य आदि का नाम सरस्वती है।
5- अथ यत् अक्ष्योः कृष्णं तत् सारस्वतम्।। (12/9/1/12) आंखों का काला अंश सरस्वती का रूप है।
6- अथ यत् स्फूर्जयन् वाचमिव वदन् दहति। ऐतरेय 3/4, अग्नि जब जलता हुआ आवाज करता है, वह अग्नि का सारस्वत रूप है।
7- सरस्वती पुष्टिः, पुष्टिपत्नी। (तै0 2/5/7/4) सरस्वती पुष्टि है और पुष्टि को बढ़ाने वाली है।
8-एषां वै अपां पृष्ठं यत् सरस्वती। (तै0 1/7/5/5) जल का पृष्ठ सरस्वती है।
9-ऋक्सामे वै सारस्वतौ उत्सौ। ऋक् और साम सरस्वती के स्रोत हैं।
10-सरस्वतीति तद् द्वितीयं वज्ररूपम्। (कौ0 12/2) सरस्वती वज्र का दूसरा रूप है।
ऋग्वेद के 6/61 का देवता सरस्वती है। स्वामी दयानन्द ने यहाँ सरस्वती के अर्थ विदुषी, वेगवती नदी, विद्यायुक्त स्त्री, विज्ञानयुक्त वाणी, विज्ञानयुक्ता भार्या आदि किये हैं।
अन्य देशों में सरस्वती
जापान में सरस्वती को 'बेंजाइतेन' कहते हैं। जापान में उनका चित्रन हाथ में एक संगीत वाद्य लिए हुए किया जाता है। जापान में वे ज्ञान, संगीत तथा 'प्रवाहित होने वाली' वस्तुओं की देवी के रूप में पूजित हैं।
दक्षिण एशिया के अलावा थाइलैण्ड, इण्डोनेशिया, जापान एवं अन्य देशों में भी सरस्वती की पूजा होती है।
अन्य भाषाओ/देशों में सरस्वती के नाम-
बर्मा - थुयथदी (သူရဿတီ=सूरस्सती, उच्चारण: [θùja̰ðədì] या [θùɹa̰ðədì])
बर्मा - तिपिटक मेदा Tipitaka Medaw (တိပိဋကမယ်တော်, उच्चारण: [tḭpḭtəka̰ mɛ̀dɔ̀])
चीन - बियानचाइत्यान Biàncáitiān (辯才天)
जापान - बेंजाइतेन Benzaiten (弁才天/弁財天)
थाईलैण्ड - सुरसवदी Surasawadee (สุรัสวดี)
सरस्वती देवी
सरस्वती हिन्दू धर्म की प्रमुख देवियों में से एक हैं। वे ब्रह्माकी मानसपुत्री हैं जो विद्या की अधिष्ठात्री देवी मानी गई हैं। इनका नामांतर 'शतरूपा' भी है। इसके अन्य पर्याय हैं, वाणी, वाग्देवी, भारती, शारदा, वागेश्वरी इत्यादि। ये शुक्लवर्ण, श्वेत वस्त्रधारिणी, वीणावादनतत्परा तथा श्वेतपद्मासना कही गई हैं। इनकी उपासना करने से मूर्ख भी विद्वान् बन सकता है। माघ शुक्ल पंचमी को इनकी पूजा की परिपाटी चली आ रही है। देवी भागवत के अनुसार ये ब्रह्मा की स्त्री हैं।
सरस्वती को साहित्य, संगीत, कला की देवी माना जाता है। उसमें विचारणा, भावना एवं संवेदना का त्रिविध समन्वय है। वीणा संगीत की, पुस्तक विचारणा की और मयूर वाहन कला की अभिव्यक्ति है। लोक चर्चा में सरस्वती को शिक्षा की देवी माना गया है। शिक्षा संस्थाओं में वसंत पंचमी को सरस्वती का जन्म दिन समारोह पूर्वक मनाया जाता है। पशु को मनुष्य बनाने का - अंधे को नेत्र मिलने का श्रेय शिक्षा को दिया जाता है। मनन से मनुष्य बनता है। मनन बुद्धि का विषय है। भौतिक प्रगति का श्रेय बुद्धि-वर्चस् को दिया जाना और उसे सरस्वती का अनुग्रह माना जाना उचित भी है। इस उपलब्धि के बिना मनुष्य को नर-वानरों की तरह वनमानुष जैसा जीवन बिताना पड़ता है। शिक्षा की गरिमा-बौद्धिक विकास की आवश्यकता जन-जन को समझाने के लिए सरस्वती पूजा की परम्परा है। इसे प्रकारान्तर से गायत्री महाशक्ति के अंतगर्त बुद्धि पक्ष की आराधना कहना चाहिए।
कहते हैं कि महाकवि कालिदास, वरदराजाचार्य, वोपदेव
आदि मंद बुद्धि के लोग सरस्वती उपासना के सहारे उच्च कोटि के विद्वान् बने थे। इसका सामान्य तात्पर्य तो इतना ही है कि ये लोग अधिक मनोयोग एवं उत्साह के साथ अध्ययन में रुचिपूवर्क संलग्न हो गए और अनुत्साह की मनःस्थिति में प्रसुप्त पड़े रहने वाली मस्तिष्कीय क्षमता को सुविकसित कर सकने में सफल हुए होंगे। इसका एक रहस्य यह भी हो सकता है कि कारणवश दुर्बलता की स्थिति में रह रहे बुद्धि-संस्थान को सजग-सक्षम बनाने के लिए वे उपाय-उपचार किए गए जिन्हें 'सरस्वती आराधना' कहा जाता है। उपासना की प्रक्रिया भाव-विज्ञान का महत्त्वपूर्ण अंग है। श्रद्धा और तन्मयता के समन्वय से की जाने वाली साधना-प्रक्रिया एक विशिष्ट शक्ति है। मनःशास्त्र के रहस्यों को जानने वाले स्वीकार करते हैं कि व्यायाम, अध्ययन, कला, अभ्यास की तरह साधना भी एक समर्थ प्रक्रिया है, जो चेतना क्षेत्र की अनेकानेक रहस्यमयी क्षमताओं को उभारने तथा बढ़ाने में पूणर्तया समर्थ है। सरस्वती उपासना के संबंध में भी यही बात है। उसे शास्त्रीय विधि से किया जाय तो वह अन्य मानसिक उपचारों की तुलना में बौद्धिक क्षमता विकसित करने में कम नहीं, अधिक ही सफल होती है।
मन्दबुद्धि लोगों के लिए गायत्री महाशक्ति का सरस्वती तत्त्व अधिक हितकर सिद्घ होता है। बौद्धिक क्षमता विकसित करने, चित्त की चंचलता एवं अस्वस्थता दूर करने के लिए सरस्वती साधना की विशेष उपयोगिता है। मस्तिष्क-तंत्र से संबंधित अनिद्रा, सिर दर्द्, तनाव, जुकाम जैसे रोगों में गायत्री के इस अंश-सरस्वती साधना का लाभ मिलता है। कल्पना शक्ति की कमी, समय पर उचित निणर्य न कर सकना, विस्मृति, प्रमाद, दीघर्सूत्रता, अरुचि जैसे कारणों से भी मनुष्य मानसिक दृष्टि से अपंग, असमर्थ जैसा बना रहता है और मूर्ख कहलाता है। उस अभाव को दूर करने के लिए सरस्वती साधना एक उपयोगी आध्यात्मिक उपचार है।
शिक्षा
शिक्षा के प्रति जन-जन के मन-मन में अधिक उत्साह भरने-लौकिक अध्ययन और आत्मिक स्वाध्याय की उपयोगिता अधिक गम्भीरता पूवर्क समझने के लिए भी सरस्वती पूजन की परम्परा है। बुद्धिमत्ता को बहुमूल्य सम्पदा समझा जाय और उसके लिए धन कमाने, बल बढ़ाने, साधन जुटाने, मोद मनाने से भी अधिक ध्यान दिया जाय। इस लोकोपयोगी प्रेरणा को गायत्री महाशक्ति के अंतर्गत एक महत्त्वपूर्ण धारा सरस्वती की मानी गयी है और उससे लाभान्वित होने के लिए प्रोत्साहित किया गया है। सरस्वती के स्वरूप एवं आसन आदि का संक्षिप्त तात्त्विक विवेचन इस तरह है-
सरस्वती के एक मुख, चार हाथ हैं। मुस्कान से उल्लास, दो हाथों में वीणा-भाव संचार एवं कलात्मकता की प्रतीक है। पुस्तक से ज्ञान और माला से ईशनिष्ठा-सात्त्विकता का बोध होता है। वाहन मयूर-सौन्दर्य एवं मधुर स्वर का प्रतीक है। इनका वाहन हंस माना जाता है और इनके हाथों में वीणा, वेदऔर माला होती है। भारत में कोई भी शैक्षणिक कार्य के पहले इनकी पूजा की जाती हैं।
सरस्वती वंदना
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥1॥
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥2॥
जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली माँ सरस्वती हमारी रक्षा करें॥1॥
शुक्लवर्ण वाली, संपूर्ण चराचर जगत् में व्याप्त, आदिशक्ति, परब्रह्म के विषय में किए गए विचार एवं चिंतन के सार रूप परम उत्कर्ष को धारण करने वाली, सभी भयों से भयदान देने वाली, अज्ञान के अँधेरे को मिटाने वाली, हाथों में वीणा, पुस्तक और स्फटिक की माला धारण करने वाली और पद्मासन पर विराजमान् बुद्धि प्रदान करने वाली, सर्वोच्च ऐश्वर्य से अलंकृत, भगवती शारदा (सरस्वती देवी) की मैं वंदना करता हूँ॥2॥
यह वरदान देने के बाद स्वयं श्रीकृष्ण ने पहले देवी की पूजा की। सृष्टि निर्माण के लिए मूल प्रकृति के पांच रूपों में से सरस्वती एक है, जो वाणी, बुद्धि, विद्या और ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी है। वसंत पंचमी का अवसर इस देवी को पूजने के लिए पूरे वर्ष में सबसे उपयुक्त है क्योंकि इस काल में धरती जो रूप धारण करती है, वह सुंदरतम होता है
सृष्टि के सृजनकर्ता ब्रह्माजी ने जब धरती को मूक और नीरस देखा तो अपने कमंडल से जल लेकर छिटका दिया। इससे सारी धरा हरियाली से आच्छादित हो गई पर साथ ही देवी सरस्वती का उद्भव हुआ जिसे ब्रह्माजी ने आदेश दिया कि वीणा व पुस्तक से इस सृष्टि को आलोकित करें।
तभी से देवी सरस्वती के वीणा से झंकृत संगीत में प्रकृति विहंगम नृत्य करने लगती है। देवी के ज्ञान का प्रकाश पूरी धरा को प्रकाशमान करता है। जिस तरह सारे देवों और ईश्वरों में जो स्थान श्रीकृष्ण का है वही स्थान ऋतुओं में वसंत का है। यह स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने स्वीकार किया है।
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