Tuesday, February 28, 2023

जानिए घर पर पूजा करने की सही विधि और उससे संबंधित 30 आवश्यक नियम



अपने परिवार में सुख और समृद्धि प्राप्त करने के लिए देवी-देवताओ की पूजा ( pooja ) करने की परम्परा अनेको वर्षो से निरंतर चली आ रही है तथा आज भी हम इस परम्परा को निभाते आ रहे है. भगवान की पूजा ( pooja ) द्वारा हमारी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है. परन्तु हम सभी को पूजा ( pooja ) करने से पूर्व कुछ ख़ास नियमों का पालन करना चाहिए तभी हमे पूजा ( pooja ) का शुभ फल पूर्ण रूप से प्राप्त हो पायेगा.

हम आज आपको यहाँ ऐसे 30 नियम बताने जा रहे जो समान्य पूजन में भी आवश्यक है, तथा इन्हे अपनाकर आप पूजा से होने वाले शुभ फल पूर्ण रूप से प्राप्त कर सकते हो.

1 . शिव, दुर्गा, विष्णु, गणेश और सूर्यदेव ये पंचदेव कहलाते है इनकी पूजा ( pooja ) हर कार्यो में अनिवार्य रूप से की जानी चाहिए. प्रतिदिन पूजा करते समय इन पांच देवो का ध्यान करना चाहिए. ऐसा करने से घर में लक्ष्मी का वास होता यही तथा समृद्धि आती है.

2 .प्लास्टिक की बोतल में या किसी अन्य धातु के अपवित्र बर्तन में गंगा जल नहीं रखना चाहिए, लोहे अथवा एल्युमिनियम के बर्तन अपवित्र धातु की श्रेणियों में आती है. गंगाजल को रखने के लिए ताम्बे का बर्तन उत्तम तथा पवित्र माना जाता है.

3 . यदि घर में भगवान शिव, गणेश और भैरव जी की मूर्ति हो या आप मंदिर में इन तीनो देवताओ की पूजा ( pooja ) करते हो तो ध्यान रहे की इन तीनो देवो पर तुलसी ना चढ़ाए अन्यथा पूजा का उल्टा प्रभाव पड़ता है.

4 . माँ दुर्गा की पूजा ( pooja ) के समय उन्हें दुर्वा (एक प्रकार की घास) ना चढ़ाए क्योकि यह भगवान गणेश को विशेष प्रकार से चढ़ाई जाती है.

5 . सूर्य देव को शंख से अर्घ्य नहीं देना चाहिए .

6 .तुलसी का पत्ता बिना स्नान किये नहीं तोड़ना चाहिए क्योकि शास्त्रों में बताया गया है की यदि कोई व्यक्ति बिना नहाए ही तुलसी के पत्तो को तोड़ता है तो पूजा ( pooja ) के समय तुलसी के ऐसे पत्ते भगवान द्वारा स्वीकार नहीं किये जाते.


7 . शास्त्रों के अनुसार दिन में 5 बार देवी-देवताओ के पूजन का विधान है. सुबह पांच बजे से छः बजे तक के बर्ह्म मुहूर्त में पूजन और आरती होनी चाहिए. इसके बाद प्रातः 9 बजे से 10 बजे तक दूसरे समय का पूजन ( pooja ) तथा दिन में तीसरे समय का पूजन होना चाहिए. इस पूजन के बाद भगवान को विश्राम करवाना चाहिए इसके बाद शाम 4 – 5 बजे पुनः पूजन और आरती होनी चाहिए. रात को 8 – 9 बजे शयन आरती करनी चाहिए. जिन घरों में नियमित रूप से पांच बार पूजन ( pooja ) होता है वहां देवी-देवताओ का निवास माना जाता है तथा ऐसे घरों में धन-धान्य की कोई भी कमी नहीं होती.

8 . स्त्रियों व पुरुषों द्वारा अपवित्र अवस्था में शंख नहीं बजाना चाहिए. यदि इस नियम का पालन नहीं किया जाए तो घर में बसी लक्ष्मी रूठ जाती है तथा उस घर से चली जाती है.

9 .देवी देवताओ की मूर्ति के सामने कभी भी पीठ करके नहीं बैठना चाहिए.

10 .केतकी का पुष्प शिवलिंग पर अर्पित नहीं करना चाहिए.

11 . भगवान से कोई भी मनोकामना मांगने के बाद उसकी सफलता के लिए दक्षिणा अवश्य चढ़ानी चाहिए. तथा दक्षिणा चढ़ाते समय अपने दोषो को छोड़ने का संकल्प लेना चाहिए. जितने शीघ्र आप अपने उन दोषो को छोड़ोगे आपकी मनोकामनाएं उतनी शीघ्र ही पूरी होगी .

12 . विशेष शुभ कार्यो में भगवान गणेश को चढ़ने वाला दूर्वा ( एक प्रकार की घास ) को कभी भी रविवार को नहीं तोड़ना चाहिए .

13 . यदि आप माँ लक्ष्मी को शीघ्र प्रसन्न करना चाहते हो तो उन्हें रोज कमल का पुष्प अर्पित करें. कमल के फूल को पांच दिनों तक लगातार जल चढ़कर पुनः अर्पित कर सकते है.
14 . शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव के शिवलिंग पर चढ़ने वाला बिल्व-पात्र को 6 महीने तक बासी नहीं माना जाता अतः हम इन बिल्लव पत्रों पर जल छिड़कर उन्हें पुनः शिवलिंग में चढ़ा सकते है.

15 . तुलसी के वृक्ष से टूटे हुए तुलसी के पत्तो को 11 दिन तक बासी नहीं माना जाता अतः 11 दिन तक हम इनमे जल छिड़कर पुनः प्रयोग में ला सकते है.

16 . आमतौर पर फूलों को हाथों में रखकर हाथों से भगवान को अर्पित किया जाता है. ऐसा नहीं करना चाहिए। फूल चढ़ाने के लिए फूलों को किसी पवित्र पात्र में रखना चाहिए और इसी पात्र में से लेकर देवी-देवताओं को अर्पित करना चाहिए.

17 .ताम्बे के बर्तन में चंदन, घिसा हुआ चंदन या चंदन का पानी नहीं रखना चाहिए, ऐसा करना शास्त्रों के अनुसार अपवित्र माना गया है.

18 .कभी भी दीपक से दीपक को ना जलाए क्योकि शास्त्रों के अनुसार ऐसा करने वाला व्यक्ति रोग से ग्रसित हो जाता है.

19 .रविवार और बुधवार को पीपल के वृक्ष में जल अर्पित नहीं करना चाहिए.

20 . पूजा ( pooja ) हमेशा पूर्व की ओर या उत्तर की ओर मुख करके की जानी चाहिए. तथा पूजा ( pooja ) करने का उत्तम समय प्रातः काल छः बजे से आठ बजे तक का होता है.

21 . पूजा ( pooja ) करते समय आसन के लिए ध्यान रखें कि बैठने का आसन ऊनी होगा तो श्रेष्ठ रहेगा.

22 . घर में मंदिर में सुबह और शाम दीपक अवश्य जलाए. एक दीपक भी का और एक दीपक तेल का जलाना चाहिए .

23 . भगवान की पूजन का कार्य और आरती पूर्ण होने के पश्चात उसी स्थान पर 3 परिक्रमा अवश्य करनी चाहिए.

24 . रविवार, एकादशी, द्वादशी, संक्रान्ति तथा संध्या काल में तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ना चाहिए.

25 . भगवान की आरती करते समय निम्न बाते ध्यान रखनी चाहिए. भगवान के चरणों की आरती चार बार करनी चाहिए इसके बाद क्रमश उनके नाभि की आरती दो बार तथा उनके मुख की आरती एक या तीन बार करनी चाहिए. इस प्रकार भगवान के समस्त अंगो की सात बार आरती होनी चाहिए.

26 . पूजाघर ( pooja ) में मूर्तियाँ 1 ,3 , 5 , 7 , 9 ,11 इंच तक की होनी चाहिए, इससे बड़ी नहीं तथा खड़े हुए गणेश जी,सरस्वतीजी, लक्ष्मीजी, की मूर्तियाँ घर में नहीं होनी चाहिए .

27 . घर में कभी भी गणेश या देवी की प्रतिमा तीन तीन, शिवलिंग दो,शालिग्राम दो,सूर्य प्रतिमा दो,गोमती चक्र दो की संख्या में कदापि न रखें.

28 .अपने मंदिर में सिर्फ प्रतिष्ठित मूर्ति ही रखें उपहार,काँच, लकड़ी एवं फायबर की मूर्तियां न रखें एवं खण्डित, जलीकटी फोटो और टूटा काँच तुरंत हटा दें . शास्त्रों के अनुसार खंडित मूर्तियों की पूजा वर्जित की गई है. जो भी मूर्ति खंडित हो जाती है, उसे पूजा के स्थल से हटा देना चाहिए और किसी पवित्र बहती नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए . खंडित मूर्तियों की पूजा अशुभ मानी गई है . इस संबंध में यह बात ध्यान रखने योग्य है कि सिर्फ शिवलिंग कभी भी, किसी भी अवस्था में खंडित नहीं माना जाता है .

29 . घर में मंदिर के ऊपर भगवान की पुस्तकें, वस्त्र एवं आभूषण न रखे मंदिर में पर्दा रखना आवश्यक है अपने स्वर्गीय पितरो आदि की तस्वीरें भी मंदिर में ना रखे उन्हें घर के नैऋत्य कोण में स्थापित करना चाहिए.

30 . हमेशा भगवान की परिक्रमा इस अनुसार करें :- विष्णु की चार , गणेश की तीन, सूर्य देव की सात, दुर्गा की एक एवं शिव की आधी परिक्रमा कर सकते है

कैसे करें इस साल के नवरात्रो में माँ दुर्गा की पूजा और जाने कौन सा मुहर्त है शुभ माँ के कलश स्थापना के लिए !


 हिन्दू धर्म में माँ भगवती को सम्पूर्ण संसार की शक्ति का स्रोत माना गया है उन्ही की कृपा से इस संसार सभी कार्य सम्पन्न होते है. नवरात्रि ही एक ऐसा पर्व है जब हम माँ दुर्गा, माँ काली, लक्ष्मी तथा सरस्वती की पूजा द्वारा उन्हें प्रसन्न कर अपने जीवन को सार्थक बना सकते है. नवरात्रो में माँ दुर्गा की पूजा विशेष फलदाई होती है, जाने किन विधियों द्वारा माँ दुर्गा की पूजा कर इस साल आप माँ दुर्गा की विशेष कृपा प्राप्त कर सकते है.

नवरात्रि में माँ दुर्गा के विभिन्न रूपों की आराधना कर उन्हें प्रसन्न किया जाता है. नवरात्र का आरंभ प्रतिप्रदा तिथि के दिन कलश स्थापना के साथ करना चाहिए. नवरात्रियों के पुरे नौ दिनों तक सुबह, दिन और रात के समय माँ दुर्गा के नाम का स्मरण करना चाहिए था इन नौ दिनों उपवास धारण कर उनकी पूजा करनी चाहिए. अष्टमी और नवमी के दिन कुमारी पूजा और ब्राह्मणो से हवन कराना चाहिए इससे माँ भगवती अपने भक्तो पर शीघ्र कृपा करती है.
चैत्र नवरात्र 2016 :-
इस चैत्र में माँ दुर्गा का विशेष पर्व नवरात्रि 8 अप्रैल से शुरू होगी और 16 अप्रैल तक मनाई जाएगी. इस नवरात्रि में कलश स्थापना का शुभ मुहर्त 11 : 57 से लेकर 12 : 48 तक के बीच का है.
माँ दुर्गा की पूजा विधि :-
नवरात्रो के नौ दिनों में जब भी आप माता की पूजा कर रहे हो तो इस मन्त्र का उच्चारण अवश्य करें ”ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै” तथा साथ में दुर्गा सप्तवशी का पाठ करें. नौ दिनों तक माता का उपवास करें. यदि शक्ति न हो तो पहले, चौथे और आठवें दिन का उपवास अवश्य करें. ध्यान रहे की माँ के पूजा में तुलसी दल और दूर्वा न चढ़े क्योकि ये दोनों ही माँ दुर्गा की पूजा में निषिद्ध है.
माँ दुर्गा , लक्ष्मी, सरस्वती की प्रतिमा और उनके यंत्र के समक्ष उनके प्रिय चीजे बिल्वपत्र, कुमकुम, हल्दी, लोंग, केसर, इलायची, बादाम, काजू, पिस्ता गुलाब की पंखुड़ी व मोगरा आदि चढ़ना चाहिए. पूजा के समय लाल रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए और लाल रंग का ही तिलक भी लगाना चाहिए. नौ दिनों तक माँ दुर्गा के नाम का दिव्य ज्योत अवश्य जलाए.
पूजन में हमेशा लाल रंग के आसन का प्रयोग करना चाहिए. पूजन में प्रयुक्त होने वाली सामग्री को किसी अन्य साधना करने वाले या मंदिर के ब्राह्मण को देना चाहिए. माँ को प्रातः काल शहद मिला दूध अर्पित करना चाहिए. पूजन के समय इसे गर्हण करने से आत्मा एवं शरीर दोनों को बल प्राप्त होता है.
यदि श्रद्धालु नवरात्रो के नौ दिनों तक पूजा नहीं कर सकता तो अष्टमी के दिन विशेष पूजा करके भी नवरात्रो के पूण्य को प्राप्त कर सकता है. नवरात्रि में अष्टमी या नवमी के दिन नौ कन्याओं को घर में बुला कर उनका पूजन करना चाहिए और उन्हें भोजन कराना चाहिए.

maa durga ki करें इस नवरात्री दुर्गा सप्तशती के इन 11 अचूक मंत्रो का जप, हर मनोकामना होगी पूरी !

 हिन्दू धर्म ग्रंथो में दुर्गा सप्तशती के मंत्रो महिमा का गुणगान करते हुए बताया गया है की इनके प्रभाव से सुख व शांति मिलती है तथा मनोवांच्छित फल प्राप्त होते है. माँ दुर्गा के पावन पर्व नवरात्र में यदि दुर्गा सप्तशती के मंत्रो का जाप सही प्रकार व विधि विधान से किया जाये तो हर असम्भव कार्य भी पूर्ण हो जाते है. इन मंत्रो का प्रभाव शीघ्र होता है, यदि आपको दुर्गा सप्तशती के मंत्रो के उच्चारण में कोई परेशानी होती है तो किसी ब्राह्मण को घर पर बुलाकर उसके द्वारा इन मंत्रो का जाप करवाना चाहिए क्योकि इन मंत्रो के अशुद्ध उच्चारण से दुष्परिणाम उत्पन होते है.


नवरात्र में प्रातः जल्दी उठ स्नान आदि करने के पश्चात सवर्प्रथम माता भगवती का स्मरण करते हुए उनकी पूजा करें. इसके बाद कहि एकांत एवं शांत वातावरण वाले स्थान में कुशा ( एक प्रकार की घास ) के आसन पर बैठकर लाल चन्दन के मोतियों की माला से दुर्गा सप्तशती के मंत्रो का उच्चारण करें.
प्रत्येक दिन इन मंत्रो का 5 मालाजाप करने से मन को सुख एवं शांति प्राप्त होती है, यदि मंत्रो को जाप करने के लिए स्थान, समय व माला एक ही हो तो इन मंत्रो का प्रभाव अति शीघ्र होता है.
दुर्गा सप्तशती के 11 अचूक एवं प्रभावशाली मन्त्र इस प्रकार है :-
रक्षा के लिए –
शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके.
घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि:स्वनेन च.
स्वर्ग और मुक्ति के लिए –
सर्वस्य बुद्धिरूपेण जनस्य हदि संस्थिते.
स्वर्गापर्वदे देवि नारायणि नमोस्तु ते.
मोक्ष की प्राप्ति के लिए –
त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या
विश्वस्य बीजं परमासि माया.
सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्
त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतु:.
गरीबी दूर करने के लिए –
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:
स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि.
दारिद्रयदु:खभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता.
सपने में सिद्धि-असिद्धि जानने का मंत्र –
दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थसाधिके.
मम सिद्धिमसिद्धिं वा स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय.
सामूहिक कल्याण के लिए मंत्र –
देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्त्या
निश्शेषदेवगणशक्तिसमूहमूत्र्या.
तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां
भकत्या नता: स्म विदधातु शुभानि सा न: .
भय नाश के लिए –
यस्या: प्रभावमतुलं भगवाननन्तो
ब्रह्मा हरश्च न हि वक्तुमलं बलं च.
सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय
नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु.
रोग नाश के लिए –
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा
रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् .
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति.
बाधा शांति के लिए –
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि .
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वरिविनासनम्.
विपत्ति नाश के लिए मंत्र –
देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद
प्रसीद मातर्जगतोखिलस्य.
प्रसीद विश्वेश्वरी पाहि विश्वं
त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य.
सुंदर पत्नी के लिए मंत्र –
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्.
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्.

जाने माँ दुर्गा के बारे में

 

 

देवी दुर्गा हिंदू पौराणिक कथाओं में एक सबसे शक्तिशाली देवी है। हिंदू पौराणिक कथाओं में परोपकार और कृपाभाव को पूरा करने के लिए उन्हें विभिन्न रूपों में पूजा जाता है। वह उमा है "चमक " ,गौरी "सफेद या प्रतिभाशाली "; पार्वती, " पर्वतारोही "; या जगतमाता , " माँ -की दुनिया" उनका दानवो के लिए भयानक रूप है दुर्गा " दुर्गम " ; काली, "ब्लैक" ; चंडी , " भयंकर "; और भैरवी ,"भयानक "।

माँ दुर्गा कैसे दिखती है ?

दुर्गा, एक बाघ या शेर पर सवार एक भव्य नारी योद्धा है। माँ दुर्गा बाघ पर सवार एक निडर रूप में जिसे अभय मुद्रा के नाम से जाना जाता है ,| भय से मुक्ति का आश्वासन देते हुए। जगतमाता अपने सभी भक्तो से कहती है " मुझ पर सभी कार्यों को समर्प्रित कर दो मैं तुम्हे सभी मुसीबतों से बचा लुंगी। दुर्गा माँ आठ या दस हाथ होने के रूप में वर्णित की गयी है । यह 8 हाथ चतुर्भागों या हिंदू धर्म में दस दिशाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं । वह सभी दिशाओं से अपने भक्तों की रक्षा करती है। माँ के हाथों में- हथियार और अन्य 
• दुर्गा माँ के हाथ में शंख "प्रणवा " या " ॐ " का प्रतिक है,जिसकी ध्वनि भगवान की उपस्थिति का प्रतिक है ।
• धनुष और तीर ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करते हैं । धनुष और तीर दोनों एक हाथ में पकड़ कर " माँ दुर्गा " यह दर्शा रही है ऊर्जा के दोनों रूपों पर नियंत्रण कैसे किया जाता है । -(क्षमता और गतिज)
• वज्र दृढ़ता का प्रतीक है। दुर्गा के भक्त वज्र की तरह शांत होने चाहिए किसी की प्रतिबद्धता में। व्रज की तरह वह सभी को तोड़ सकता है जिससे भी वह टकराता है।
• एक भक्त को अपने विश्वास को खोये बिना हर चुनौती का सामना करना चाहिए।
• दुर्गा माँ के हाथ में कमल पूरी तरह से खिला हुआ नहीं है ,यह सफलता नहीं बल्कि अन्तिम की निश्चितता का प्रतीक है। संस्कृत में कलम को "पंकजा" कहा `जाता है जिसका मतलब है कीचड़ में जन्मा हुआ। इस प्रकार, कमल वासना और लालच की सांसारिक कीचड़ के बीच श्रद्धालुओं का आध्यात्मिक गुणवत्ता के सतत विकास के लिए खड़ा है ।
• " सुदर्शन -चक्र " : एक सुंदर डिस्कस ,जो देवी की तर्जनी के चारों ओर घूमती है ,जब उसे नहीं छू ते है ,पूरी दुनिया दुर्गा की इच्छा के अधीन का प्रतीक है और उनके आदेश का भी। वह बुराई को नष्ट करने और धर्म के विकास के लिए अनुकूल वातावरण का निर्माण करने के लिए इस अमोघ हथियार का उपयोग करती है।
• तलवार : तलवार जो माँ दुर्गा एक हाथ में पकड़ती है वह ज्ञान का प्रतिनिधित्व करता है ,जो तेज़ होता है। सभी संदेहों से मुक्त है जो ज्ञान , तलवार की चमक का प्रतीक है।
• त्रिशूल : दुर्गा त्रिशूल या " त्रिशूल " तीन गुणों का प्रतीक है- सातवा ( निष्क्रियता ), राजस ( गतिविधि) और तामस (गैर गतिविधि)- और वह तीन प्रकार के दुःख मिटाती है शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक।

वह इतनी शक्तिशाली कैसे है ?

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी दुर्गा , परमेश्वर ब्रह्मा (निर्माता) , विष्णु ( रक्षक ), और शिव ( विनाशक ) के संयुक्त ऊर्जा से उभरी है, राक्षस महिषासुर से युद्ध करने के लिए , कथा के अनुसार राक्षस महिषासुर को वरदान दिया गया था की वह और इंसान और भगवान द्वारा नहीं मारा जा सकता। यहां तक कि ब्रह्मा (निर्माता) , विष्णु ( रक्षक ), और शिव ( विनाशक ) ने भी उसे रोकने में नाकाम रहे ,इसलिए एक स्त्री ऊर्जा की उपस्थिति नरसंहार करने के लिए की गयी ,जिसने तीनो लोको में तहलका मचा दिया था-अर्थ , स्वर्ग और नीचे की दुनिया । देवी दुर्गा को सभी देवताओं द्वारा विभिन्न हथियार उपहार में दिए गए थे। जिसमें से भाला और त्रिशूल सबसे आम तौर पर उसके चित्रों में दर्शाया गया है ।वह सुदर्शन चक्र, तलवार , धनुष और तीर और अन्य हथियार पकड़े देखि गयी है ।

दुर्गा मैया से प्रार्थना कैसे करे

 

दुर्गा मैया से प्रार्थना कैसे करे ! 

यह माना जाता है की सोमवार और शुक्रवार को माँ दुर्गा और माँ पार्वती की पूजा की जाती है। माँ दयामय है अपने बच्चो के लिए अत: माँ से की गयी प्रार्थना जल्दी सुनी और पूरी की जाती है | 



कैसे देवी दुर्गा की पूजा के लिए तैयारी की जाती है ?







सूर्य उदय से पहले स्नान करे और स्वच्छ और साफ कपड़े पहने । एक लकड़ी की सीट (पाटा) पर एक लाल कपड़ा बिछाकर और उस पर मां दुर्गा की मूर्ति या फोटो को इस्तापित करे । कुश बिछा कर आप बैठे। फिर इस पूजा की सामग्री को जमाये रोली , मोली , लाल फूल, घी की मिठाई, दीया , दुर्गा चालीसा , आरती की पुस्तक । पूजा करने के लिए तांत्रिक दुर्गा यंत्र का प्रयोग करें और इस मंत्र को कहना है






    सर्व मंगल मांगले शिवे सर्वार्थ साधिके।      

   शरण्ये त्रियुम्बिके गौरी नारायणी नमोऽस्तुते।।

   या देवी सर्व भुतेसू लक्ष्मी रूपेण संस्थिता |    

 नम: तस्ये नम: तस्ये नम: तस्ये नमो नम:||

दुर्गापूजा घर पर कैसे करें?

 




कैसे करें नवदुर्गा की आराधना...


में पवित्र स्थान की मिट्टी से वेदी बनाकर उसमें जौ, गेहूं बोए। फिर उसके ऊपर कलश को विधिपूर्वक स्थापित करें। 

कलश के ऊपर मूर्ति की प्रतिष्ठा करें। मूर्ति यदि कच्ची मिट्टी, कागज या सिंदूर आदि से बनी हो और स्नानादि से उसमें विकृति होने की आशंका हो तो उसके ऊपर शीशा लगा दें। 

मूर्ति न हो तो कलश के पीछे स्वास्तिक और उसके दोनों भुजाओं में त्रिशूल बनाकर दुर्गाजी का चित्र, पुस्तक तथा शालग्राम को विराजित कर विष्णु का पूजन करें। 

पूजन सात्विक हो, राजस और तामस नहीं। 

नवरात्रि व्रत के आरंभ में स्वस्तिवाचक शांति पाठ कर संकल्प करें और तब सर्वप्रथम गणपति की पूजा कर मातृका, लोकपाल, नवग्रह एवं वरुण का विधि से पूजन करें। फिर प्रधानमूर्ति का षोड़शोपचार पूजन करना चाहिए। अपने ईष्टदेव का पूजन करें। पूजन वेद विधि या संप्रदाय निर्दिष्ट विधि से होना चाहिए। 

दुर्गा देवी की आराधना अनुष्ठान में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का पूजन तथा मार्कण्डेयपुराण के अनुसार श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ मुख्य अनुष्ठान कर्तव्य है। 

पाठ विधि - श्री दुर्गा सप्तशती पुस्तक का विधिपूर्वक पूजन कर इस मंत्र से प्रार्थना करनी चाहिए। 

'नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम्‌।' 

इस मंत्र से पंचोपचार पूजन कर यथाविधि पाठ करें। देवी व्रत में कुमारी पूजन परम आवश्यक माना गया है। सामर्थ्य हो तो नवरात्रि के प्रतिदिन, अन्यथा समाप्ति के दिन नौ कुंवारी कन्याओं के चरण धोकर उन्हें देवी रूप मान कर गंध-पुष्पादि से अर्चन कर आदर के साथ यथारुचि मिष्ठान भोजन कराना चाहिए एवं वस्त्रादि से सत्कार करना चाहिए। 

कुमारी पूजन में दस वर्ष तक की कन्याओं का अर्चन विशेष महत्व रखता है। इसमें दो वर्ष की कन्या कुमारी, तीन वर्ष की त्रिमूर्तिनी, चार वर्ष की कल्याणी, पांच वर्ष की रोहिणी, छः वर्ष की काली, सात वर्ष की चंडिका, आठ वर्ष की शाम्भवी, नौ वर्ष की दुर्गा और दस वर्ष वाली सुभद्रा स्वरूपा होती है। 

दुर्गा पूजा में प्रतिदिन की पूजा का विशेष महत्व है जिसमें प्रथम शैलपुत्री से लेकर नवम्‌ सिद्धिदात्री तक नव दुर्गाओं की नव शक्तियों का और स्वरूपों का विशेष अर्चन होता है। 

माता के नौ दिनों में क्या करें?

 



नवरात्रि के नौ दिनों में यह कार्य अवश्य करें


नवरात्रि में हम जितनी पवित्रता बरतते हैं देवी उतनी ही प्रसन्न होती हैं। कई घरों में बड़े ही नियम से पूजा-पाठ होता है। कुछ लोग बहुत कठोर नियम करते हैं। इन परंपराओं में ही तो हमारे संस्कार बसे हैं। 


* नंगे पैर रहना। 

* नौ दिनों तक व्रत रखना। 

* प्रतिदिन मंदिर जाना। 

* देवी को जल अर्पित करना। 

* कन्या भोजन कराना। 

* बिना लहसुन-प्याज का भोजन बनना। 

* जवारे रखना। 

* नौ दिनों तक देवी का विशेष श्रृंगार करना। 

* अष्टमी-नवमीं पर विशेष पूजा। 

* अखंड ज्योति जलाना, आदि.... ।

नवरात्रि विशेष : कैसे बने माता के प्रमुख शक्तिपीठ

नवरात्रि विशेष : कैसे बने माता के प्रमुख शक्तिपीठ



नवरात्रि व्रत शुरू हो चुका है। शक्ति स्वरूपा देवी मां की पूजा के लिए श्रद्धालु देश के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में पहुंच रहे हैं। आप में से अधिकांश लोग माता के बहुत से शक्तिपीठों का दर्शन पहले भी कर चुके होंगे और बहुत से लोगों ने पुराणों आदि में इसके बारे में पढ़ा भी होगा। लेकिन क्या आपको पता है कि इन शक्तिपीठों का जन्म कैसे हुआ? इसकी संख्या कितनी हैं? यह शक्तिपीठ कहां-कहां हैं? और उसकी महत्ता क्या है?

यूं तो मुख्य रूप से 51 शक्ति पीठ माने जाते हैं। लेकिन देवी भागवत पुराण में 108, कालिकापुराण में 26, शिवचरित्र में 51, दुर्गा सप्तशती और तंत्रचूड़ामणि में शक्ति पीठों की संख्या 52 बताई गई है। लेकिन संख्याओं के इन मकड़जाल से अगर आप बाहर निकलेंगे तो आप पाएंगे कि सभी शक्तिपीठों की स्थापना के बारे में जो कथा बताई जाती है वह एक ही है। 

कहा जाता है कि प्रजापति दक्ष की पुत्री बनकर माता जगदम्बिका ने सती के रूप में जन्म लिया था और बाद में भगवान शिव से विवाह किया। दक्ष अपने दामाद शिव को हमेशा निरादर भाव से देखते थे। 

एक बार की बात है, दक्ष प्रजापति ने कनखल (हरिद्वार) में 'बृहस्पति सर्व' नामक यज्ञ रचाया। उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन अपने बेटी-दामाद को नहीं बुलाया। तब सती बिना बुलाए ही यज्ञ में शामिल होने चली गईं। 

यज्ञ-स्थल पहुंचने पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित नहीं करने का कारण पूछा और पिता से उग्र विरोध प्रकट किया। इस पर दक्ष प्रजापति ने भगवान शंकर के बारे में अपशब्द कहे। सती अपने पति के इस अपमान को सह नहीं पाईं और यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। 

भगवान शंकर को जब इस दुर्घटना का पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया। भगवान शंकर के आदेश पर उनके गणों के उग्र कोप से भयभीत सारे देवता और ऋषिगण यज्ञस्थल से भाग गए। 

भगवान शंकर ने यज्ञकुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कंधे पर उठाकर तांडव नृत्य किया। ऐसे में हर तरफ हाहाकार मच गया। पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देखकर और देवों के अनुनय-विनय पर भगवान विष्णु सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खण्ड-खण्ड कर धरती पर गिराते गए। 

जब-जब शिव नृत्य मुद्रा में पैर पटकते, विष्णु अपने चक्र से शरीर का कोई अंग काटकर उसके टुकड़े पृथ्वी पर गिरा देते। इस प्रकार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े,धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ का निर्माण हुआ। इस तरह कुल 51 स्थानों में माता की शक्तिपीठ अस्तित्व में आए।

नवरात्रि : देवी पूजन की सही और सरल विधि देवी कृपा पाने के सरल प्रयोग

 

नवरात्रि : देवी पूजन की सही और सरल विधि देवी कृपा पाने के सरल प्रयोग

शक्ति के लिए देवी आराधना की सुगमता का कारण मां की करुणा, दया, स्नेह का भाव किसी भी भक्त पर सहज ही हो जाता है। ये कभी भी अपने बच्चे (भक्त) को किसी भी तरह से अक्षम या दुखी नहीं देख सकती है। उनका आशीर्वाद भी इस तरह मिलता है, जिससे साधक को किसी अन्य की सहायता की आवश्यकता नहीं पड़ती है। वह स्वयं सर्वशक्तिमान हो जाता है।


इनकी प्रसन्नता के लिए कभी भी उपासना की जा सकती है, क्योंकि शास्त्राज्ञा में चंडी हवन के लिए किसी भी मुहूर्त की अनिवार्यता नहीं है। नवरात्रि में इस आराधना का विशेष महत्व है। इस समय के तप का फल कई गुना व शीघ्र मिलता है। इस फल के कारण ही इसे कामदूधा काल भी कहा जाता है। देवी या देवता की प्रसन्नता के लिए पंचांग साधन का प्रयोग करना चाहिए। पंचांग साधन में पटल, पद्धति, कवच, सहस्त्रनाम और स्रोत हैं। पटल का शरीर, पद्धति को शिर, कवच को नेत्र, सहस्त्रनाम को मुख तथा स्रोत को जिह्वा कहा जाता है।

इन सब की साधना से साधक देव तुल्य हो जाता है। सहस्त्रनाम में देवी के एक हजार नामों की सूची है। इसमें उनके गुण हैं व कार्य के अनुसार नाम दिए गए हैं। सहस्त्रनाम के पाठ करने का फल भी महत्वपूर्ण है। इन नामों से हवन करने का भी विधान है। इसके अंतर्गत नाम के पश्चात नमः लगाकर स्वाहा लगाया जाता है।

हवन की सामग्री के अनुसार उस फल की प्राप्ति होती है। सर्व कल्याण व कामना पूर्ति हेतु इन नामों से अर्चन करने का प्रयोग अत्यधिक प्रभावशाली है। जिसे सहस्त्रार्चन के नाम से जाना जाता है। सहस्त्रार्चन के लिए देवी की सहस्त्र नामावली जो कि बाजार में आसानी से मिल जाती है कि आवश्यकता पड़ती है।



इस नामावली के एक-एक नाम का उच्चारण करके देवी की प्रतिमा पर, उनके चित्र पर, उनके यंत्र पर या देवी का आह्वान किसी सुपारी पर करके प्रत्येक नाम के उच्चारण के पश्चात नमः बोलकर भी देवी की प्रिय वस्तु चढ़ाना चाहिए। जिस वस्तु से अर्चन करना हो वह शुद्ध, पवित्र, दोष रहित व एक हजार होना चाहिए।

अर्चन में बिल्वपत्र, हल्दी, केसर या कुंकुम से रंग चावल, इलायची, लौंग, काजू, पिस्ता, बादाम, गुलाब के फूल की पंखुड़ी, मोगरे का फूल, चारौली, किसमिस, सिक्का आदि का प्रयोग शुभ व देवी को प्रिय है। यदि अर्चन एक से अधिक व्यक्ति एक साथ करें तो नाम का उच्चारण एक व्यक्ति को तथा अन्य व्यक्तियों को नमः का उच्चारण अवश्य करना चाहिए।

अर्चन की सामग्री प्रत्येक नाम के पश्चात, प्रत्येक व्यक्ति को अर्पित करना चाहिए। अर्चन के पूर्व पुष्प, धूप, दीपक व नैवेद्य लगाना चाहिए। दीपक इस तरह होना चाहिए कि पूरी अर्चन प्रक्रिया तक प्रज्वलित रहे। अर्चनकर्ता को स्नानादि आदि से शुद्ध होकर धुले कपड़े पहनकर मौन रहकर अर्चन करना चाहिए।

इस साधना काल में आसन पर बैठना चाहिए तथा पूर्ण होने के पूर्व उसका त्याग किसी भी स्थिति में नहीं करना चाहिए। अर्चन के उपयोग में प्रयुक्त सामग्री अर्चन उपरांत किसी साधन, ब्राह्मण, मंदिर में देना चाहिए। कुंकुम से भी अर्चन किए जा सकते हैं। इसमें नमः के पश्चात बहुत थोड़ा कुंकुम देवी पर अनामिका-मध्यमा व अंगूठे का उपयोग करके चुटकी से चढ़ाना चाहिए।

बाद में उस कुंकुम से स्वयं को या मित्र भक्तों को तिलक के लिए प्रसाद के रूप में दे सकते हैं। सहस्त्रार्चन नवरात्र काल में एक बार कम से कम अवश्य करना चाहिए। इस अर्चन में आपकी आराध्य देवी का अर्चन अधिक लाभकारी है। अर्चन प्रयोग बहुत प्रभावशाली, सात्विक व सिद्धिदायक होने से इसे पूर्ण श्रद्धा व विश्वास से करना चाहिए।










नौ दिन कैसे करें कन्या-पूजन


नवरात्रि में नन्ही कन्याओं का करें पूजन



नवरात्रि यानी सौन्दर्य के मुखरित होने का पर्व। नवरात्रि यानी उमंग से खिल-खिल जाने का पर्व। कहते हैं, नौ दिनों तक दैवीय शक्ति मनुष्य लोक के भ्रमण के लिए आती है। इन दिनों की गई उपासना-आराधना से देवी भक्तों पर प्रसन्न होती है। लेकिन पुराणों में वर्णित है कि मात्र श्लोक-मंत्र-उपवास और हवन से देवी को प्रसन्न नहीं किया जा सकता।

इन दिनों 2 से लेकर 5 वर्ष तक की नन्ही कन्याओं के पूजन का विशेष महत्व है। नौ दिनों तक इन नन्ही कन्याओं को सुंदर गिफ्ट्स देकर इनका दिल जीता जा सकता है। इनके माध्यम से नवदुर्गा को भी प्रसन्न किया जा सकता है। पुराणों की दृष्टि से नौ दिनों तक कन्याओं को एक विशेष प्रकार की भेंट देना शुभ होता है।


* प्रथम दिन इन्हें फूल की भेंट देना शुभ होता है। साथ में कोई एक श्रृंगार सामग्री अवश्य दें। अगर आप मां सरस्वती को प्रसन्न करना चाहते है तो श्वेत फूल अर्पित करें। अगर आपके दिल में कोई भौतिक कामना है तो लाल पुष्प देकर इन्हें खुश करें। (उदाहरण के लिए : गुलाब, चंपा, मोगरा, गेंदा, गुड़हल)

* दूसरे दिन फल देकर इनका पूजन करें। यह फल भी सांसारिक कामना के लिए लाल अथवा पीला और वैराग्य की प्राप्ति के लिए केला या श्रीफल हो सकता है। याद रखें कि फल खट्टे ना हो।
* तीसरे दिन मिठाई का महत्व होता है। इस दिन अगर हाथ की बनी खीर, हलवा या केशरिया चावल बना कर खिलाए जाएं तो देवी प्रसन्न होती है।

* चौथे दिन इन्हें वस्त्र देने का महत्व है लेकिन सामर्थ्य अनुसार रूमाल या रंगबिरंगे रीबन दिए जा सकते हैं।

* पांचवे दिन देवी से सौभाग्य और संतान प्राप्ति की मनोकामना की जाती है। अत: कन्याओं को पांच प्रकार की श्रृंगार सामग्री देना अत्यंत शुभ होता है। इनमें बिंदिया, चूड़ी, मेहंदी, बालों के लिए क्लिप्स, सुगंधित साबुन, काजल, नेलपॉलिश, टैल्कम पावडर इत्यादि हो सकते हैं।

* छठे दिन बच्चियों को खेल-सामग्री देना चाहिए। आजकल बाजार में खेल सामग्री की अनेक वैरायटी उपलब्ध है। पहले यह रिवाज पांचे, रस्सी और छोटे-मोटे खिलौनों तक सीमित था। अब तो ढेर सारे विकल्प मौजूद है।

* सातवां दिन मां सरस्वती के आह्वान का होता है। अत: इस दिन कन्याओं को शिक्षण सामग्री दी जानी चाहिए। आजकल स्टेशनरी बाजार में विभिन्न प्रकार के पेन, स्केच पेन, पेंसिल, कॉपी, ड्रॉईंग बुक्स, कंपास, वाटर बॉटल, कलर बॉक्स, लंच बॉक्स उपलब्ध है।

* आठवां दिन नवरात्रि का सबसे पवित्र दिन माना जाता है। इस दिन अगर कन्या का अपने हाथों से श्रृंगार किया जाए तो देवी विशेष आशीर्वाद देती है। इस दिन कन्या के दूध से पैर पूजने चाहिए। पैरों पर अक्षत, फूल और कुंकुम लगाना चाहिए। इस दिन कन्या को भोजन कराना चाहिए और यथासामर्थ्य कोई भी भेंट देनी चाहिए। हर दिन कन्या-पूजन में दक्षिणा अवश्य दें।




* नौवें दिन खीर, ग्वारफली और दूध में गूंथी पूरियां कन्या को खिलानी चाहिए। उसके पैरों में महावर और हाथों में मेहंदी लगाने से देवी पूजा संपूर्ण होती है। अगर आपने घर पर हवन का अयोजन किया है तो उसके नन्हे हाथों से उसमें समिधा अवश्य डलवाएं। उसे इलायची और पान का सेवन कराएं।

इस परंपरा के पीछे मान्यता है कि देवी जब अपने लोक जाती है तो उसे घर की कन्या की तरह ही बिदा किया जाना चाहिए। अगर सामर्थ्य हो तो नौवें दिन लाल चुनर कन्याओं को भेंट में दें। उन्हें दुर्गा चालीसा की छोटी पुस्तकें भेंट करें। गरबा के डांडिए और चणिया-चोली दिए जा सकते हैं।

इन सारी रीतियों के अनुसार पूजन करने से देवी प्रसन्न होकर वर्ष भर के लिए सुख, समृद्धि, यश, वैभव, कीर्ति और सौभाग्य का वरदान देती है।



Monday, February 27, 2023

श्री गणेश पंच रत्न स्तोत्र!

 मुदा करात्त मोदकं सदा विमुक्ति साधकम् ।

कलाधरावतंसकं विलासिलोक रक्षकम् ।
अनायकैक नायकं विनाशितेभ दैत्यकम् ।
नताशुभाशु नाशकं नमामि तं विनायकम् ॥ 1 ॥

नतेतराति भीकरं नवोदितार्क भास्वरम् ।
नमत्सुरारि निर्जरं नताधिकापदुद्ढरम् ।
सुरेश्वरं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरम् ।
महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ॥ 2 ॥

समस्त लोक शङ्करं निरस्त दैत्य कुञ्जरम् ।
दरेतरोदरं वरं वरेभ वक्त्रमक्षरम् ।
कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करम् ।
मनस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ॥ 3 ॥

अकिञ्चनार्ति मार्जनं चिरन्तनोक्ति भाजनम् ।
पुरारि पूर्व नन्दनं सुरारि गर्व चर्वणम् ।
प्रपञ्च नाश भीषणं धनञ्जयादि भूषणम् ।
कपोल दानवारणं भजे पुराण वारणम् ॥ 4 ॥

नितान्त कान्ति दन्त कान्ति मन्त कान्ति कात्मजम् ।
अचिन्त्य रूपमन्त हीन मन्तराय कृन्तनम् ।
हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनाम् ।
तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि सन्ततम् ॥ 5 ॥

महागणेश पञ्चरत्नमादरेण योऽन्वहं ।
प्रजल्पति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम् ।
अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रताम् ।
समाहितायु रष्टभूति मभ्युपैति सोऽचिरात् ॥ 6 ॥

श्री गणेश पंच रत्न स्तोत्र

 मुदाकरात्तमोदकं सदा विमुक्तिसाधकं

कलाधरावतंसकं विलासिलोकरक्षकम् ।
अनायकैकनायकं विनाशितेभदैत्यकं
नताशुभाशुनाशकं नमामि तं विनायकम् ॥१॥

नतेतरातिभीकरं नवोदितार्कभास्वरं
नमत्सुरारिनिर्जरं नताधिकापदुद्धरम् ।
सुरेश्वरं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरं
महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ॥२॥

समस्तलोकशंकरं निरस्तदैत्यकुञ्जरं
दरेतरोदरं वरं वरेभवक्त्रमक्षरम् ।
कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करं
मनस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ॥३॥

अकिंचनार्तिमार्जनं चिरन्तनोक्तिभाजनं
पुरारिपूर्वनन्दनं सुरारिगर्वचर्वणम् ।
प्रपञ्चनाशभीषणं धनंजयादिभूषणम्
कपोलदानवारणं भजे पुराणवारणम् ॥४॥

नितान्तकान्तदन्तकान्तिमन्तकान्तकात्मजं
अचिन्त्यरूपमन्तहीनमन्तरायकृन्तनम् ।
हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनां
तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि सन्ततम् ॥५॥

महागणेशपञ्चरत्नमादरेण योऽन्वहं
प्रजल्पति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम् ।
अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रतां
समाहितायुरष्टभूतिमभ्युपैति सोऽचिरात् ॥६॥


अथ दुर्गाद्वात्रिंशन्नाममाला - श्री दुर्गा द्वात्रिंशत नाम माला (Shri Durga Dwatrinshat Nam Mala)

 दुर्गा दुर्गार्ति शमनी दुर्गापद्विनिवारिणी ।

दुर्गामच्छेदिनी दुर्गसाधिनी दुर्गनाशिनी । 

दुर्गतोद्वारिणी दुर्ग निहन्त्री दुर्गमापहण ।
दुर्गम ज्ञानदा दुर्गदैत्यलोकदवानला ।
दुर्गमा दुर्गमालोका दुर्गमात्मस्वरूपिणी ।

दुर्गमार्गप्रदा दुर्गमविद्या दुर्गमाश्रिता ।
दुर्गमज्ञानसंस्थाना दुर्गमध्यानभासिनी ।
 

दुर्गमोहा दुर्गमगा दुर्गमार्थस्वरूपिणी ।
दुर्गमासुरसंहन्त्री दुर्गमायुधधारिणी ।

दुर्गमाङ्गी दुर्गमाता दुर्गम्या दुर्गमेश्वरी ।
दुर्गभीमा दुर्गभामा दुर्लभा दुर्गधारिणी ।

नामावली ममायास्तु दुर्गया मम मानसः ।
पठेत् सर्व भयान्मुक्तो भविष्यति न संशयः ।

दुर्गमोहा दुर्गमगा दुर्गमार्थस्वरूपिणी ।
दुर्गमासुरसंहन्त्री दुर्गमायुधधारिणी ।

दुर्गमाङ्गी दुर्गमाता दुर्गम्या दुर्गमेश्वरी ।
दुर्गभीमा दुर्गभामा दुर्लभा दुर्गधारिणी ।

नामावली ममायास्तु दुर्गया मम मानसः ।
पठेत् सर्व भयान्मुक्तो भविष्यति न संशयः ।

दुर्गमोहा दुर्गमगा दुर्गमार्थस्वरूपिणी ।
दुर्गमासुरसंहन्त्री दुर्गमायुधधारिणी ।

दुर्गमाङ्गी दुर्गमाता दुर्गम्या दुर्गमेश्वरी ।
दुर्गभीमा दुर्गभामा दुर्लभा दुर्गधारिणी ।

नामावली ममायास्तु दुर्गया मम मानसः ।
पठेत् सर्व भयान्मुक्तो भविष्यति न संशयः ।



अथ श्री दुर्गा बत्तीस नामवली स्त्रोत | श्री दुर्गा बत्तीस नामवली | मां दुर्गा के 32 चमत्कारी नाम

एक समय की बात है, ब्रह्मा आदि देवताओ ने पुष्प आदि विविध उपचारों से महेश्वरी दुर्गा का पूजन किया। इस से प्रसन्न होकर दुर्गतिनाशिनी दुर्गा ने कहा: देवताओं! मैं तुम्हारे पूजन से संतुष्ट हूँ, तुम्हारी जो इच्छा हो, माँगो, मैं दुर्लभ से दुर्लभ वस्तु भी प्रदान करुँगी।

दुर्गा का यह वचन सुनकर देवता बोले: देवी! हमारे शत्रु महिषासुर को, जो तीनों लोकों के लिए कंटक था, आपने मार डाला, इस से सम्पूर्ण जगत स्वस्थ एवं निर्भय हो गया। आपकी कृपा से हमें पुनः अपने-अपने पद की प्राप्ति हुई है। आप भक्तों के लिए कल्पवृक्ष हैं, हम आपकी शरण में आये हैं, अतः अब हमारे मन में कुछ भी पाने की अभिलाषा शेष नहीं हैं। हमें सब कुछ मिल गया। तथापि आपकी आज्ञा हैं, इसलिए हम जगत की रक्षा के लिए आप से कुछ पूछना चाहते हैं। महेश्वरी! कौन-सा ऐसा उपाय हैं, जिस से शीघ्र प्रसन्न होकर आप संकट में पड़े हुए जीव की रक्षा करती हैं। देवेश्वरी! यह बात सर्वथा गोपनीय हो तो भी हमें अवश्य बतावें।

देवताओं के इस प्रकार प्रार्थना करने पर दयामयी दुर्गा देवी ने कहा: देवगण! सुनो-यह रहस्य अत्यंत गोपनीय और दुर्लभ हैं। मेरे बत्तीस नामों की माला सब प्रकार की आपत्ति का विनाश करने वाली हैं। तीनों लोकों में इस के समान दूसरी कोई स्तुति नहीं हैं। यह रहस्यरूप हैं। इसे बतलाती हूँ, सुनो -
१) दुर्गा,
२) दुर्गार्तिशमनी,
३) दुर्गापद्विनिवारिणी,
४) दुर्गमच्छेदिनी,
५) दुर्गसाधिनी,
६) दुर्गनाशिनी,
७) दुर्गतोद्धारिणी ,
८) दुर्गनिहन्त्री,
९) दुर्गमापहा,
१०) दुर्गमज्ञानदा,
११) दुर्गदैत्यलोकदवानला,
१२) दुर्गमा,
१३) दुर्गमालोका,
१४) दुर्गमात्मस्वरूपिणी,

१५) दुर्गमार्गप्रदा,
१६) दुर्गमविद्या,
१७) दुर्गमाश्रिता,
१८) दुर्गमज्ञानसंस्थाना,
१९) दुर्गमध्यानभासिनी,
२०) दुर्गमोहा,
२१) दुर्गमगा,
२२) दुर्गमार्थस्वरूपिणी,
२३) दुर्गमासुरसंहन्त्री,
२४) दुर्गमायुधधारिणी,
२५) दुर्गमांगी,
२६) दुर्गमता,
२७) दुर्गम्या,
२८) दुर्गमेश्वरी,
२९) दुर्गभीमा,
३०) दुर्गभामा,
३१) दुर्गभा
३२) दुर्गदारिणी

जो मनुष्य मुझ दुर्गा की इस नाममाला का यह पाठ करता हैं, वह निःसंदेह सब प्रकार के भय से मुक्त हो जायेगा।

कोई शत्रुओं से पीड़ित हो अथवा दुर्भेद्य बंधन में पड़ा हो, इन बत्तीस नामों के पाठ मात्र से संकट से छुटकारा पा जाता हैं। इसमें तनिक भी संदेह नहीं हैं। यदि राजा क्रोध में भरकर वध के लिए अथवा और किसी कठोर दंड के लिए आज्ञा दे दे या युद्ध में शत्रुओं द्वारा मनुष्य घिर जाए अथवा वन में व्याघ्र आदि हिंसक जंतुओं के चंगुल में फंस जाए तो इन बत्तीस नामों का एक सौ आठ बार पाठ मात्र करने से वह सम्पूर्ण भयों से मुक्त हो जाता हैं।

विपत्ति के समय इस के समान भयनाशक उपाय दूसरा नहीं हैं। देवगण! इस नाममाला का पाठ करने वाले मनुष्यो की कभी कोई हानि नहीं होती। अभक्त, नास्तिक और शठ मनुष्य को इसका उपदेश नहीं देना चाहिए। जो भारी विपत्ति में पड़ने पर भी इस नामावली का हजार, दस हजार अथवा लाख बार पाठ करता हैं, स्वयं करता या ब्राह्मणो से कराता हैं, वह सब प्रकार की आपत्तियों से मुक्त हो जाता हैं।

सिद्ध अग्नि में मधुमिश्रित सफ़ेद तिलों से इन नामों द्वारा लाख बार हवन करे तो मनुष्य सब विपत्तियों से छूट जाता हैं। इस नाममाला का पुरश्चरण तीस हजार का हैं। पुरश्चरणपूर्वक पाठ करने से मनुष्य इसके द्वारा सम्पूर्ण कार्य सिद्ध कर सकता हैं। मेरी सुन्दर मिट्टी की अष्टभुजा मूर्ति बनावे, आठों भुजाओं में क्रमशः गदा, खड्ग, त्रिशूल, बाण, धनुष, कमल, खेट (ढाल) और मुद्गर धारण करावें।



मूर्त्ति के मस्तक पर चन्द्रमा का चिन्ह हो, उसके तीन नेत्र हों, उसे लाल वस्त्र पहनाया गया हों, वह सिंह के कंधे पर सवार हो और शूल से महिषासुर का वध कर रही हो, इस प्रकार की प्रतिमा बनाकर नाना प्रकार की सामग्रियों से भक्तिपूर्वक मेरा पूजन करे। मेरे उक्त नमो से लाल कनेर के फूल चढ़ाते हुए सौ बार पूजा करे और मंत्र जाप करते हुए पुए से हवन करे। भांति-भांति के उत्तम पदार्थ का भोग लगावे। इस प्रकार करने से मनुष्य असाध्य कार्य को भी सिद्ध कर लेता हैं। जो मानव प्रतिदिन मेरा भजन करता हैं, वह कभी विपत्ति में नहीं पड़ता।

देवताओं से ऐसा कह कर जगदम्बा वहीँ अंतर्धान हो गयीं। दुर्गा जी के इस उपाख्यान को जो सुनते हैं, उन पर कोई विपत्ति नहीं आती।

 दुर्गा दुर्गार्ति शमनी दुर्गापद्विनिवारिणी ।

दुर्गामच्छेदिनी दुर्गसाधिनी दुर्गनाशिनी ।

 

दुर्गतोद्वारिणी दुर्ग निहन्त्री दुर्गमापहण ।
दुर्गम ज्ञानदा दुर्गदैत्यलोकदवानला ।
दुर्गमा दुर्गमालोका दुर्गमात्मस्वरूपिणी ।

दुर्गमार्गप्रदा दुर्गमविद्या दुर्गमाश्रिता ।
दुर्गमज्ञानसंस्थाना दुर्गमध्यानभासिनी ।

 

दुर्गमोहा दुर्गमगा दुर्गमार्थस्वरूपिणी ।
दुर्गमासुरसंहन्त्री दुर्गमायुधधारिणी ।

दुर्गमाङ्गी दुर्गमाता दुर्गम्या दुर्गमेश्वरी ।
दुर्गभीमा दुर्गभामा दुर्लभा दुर्गधारिणी ।

नामावली ममायास्तु दुर्गया मम मानसः ।
पठेत् सर्व भयान्मुक्तो भविष्यति न संशयः ।



दुर्गमोहा दुर्गमगा दुर्गमार्थस्वरूपिणी ।
दुर्गमासुरसंहन्त्री दुर्गमायुधधारिणी ।

दुर्गमाङ्गी दुर्गमाता दुर्गम्या दुर्गमेश्वरी ।
दुर्गभीमा दुर्गभामा दुर्लभा दुर्गधारिणी ।

नामावली ममायास्तु दुर्गया मम मानसः ।
पठेत् सर्व भयान्मुक्तो भविष्यति न संशयः ।

दुर्गमोहा दुर्गमगा दुर्गमार्थस्वरूपिणी ।
दुर्गमासुरसंहन्त्री दुर्गमायुधधारिणी ।

दुर्गमाङ्गी दुर्गमाता दुर्गम्या दुर्गमेश्वरी ।
दुर्गभीमा दुर्गभामा दुर्लभा दुर्गधारिणी ।

नामावली ममायास्तु दुर्गया मम मानसः ।
पठेत् सर्व भयान्मुक्तो भविष्यति न संशयः ।



अथ श्री दुर्गा बत्तीस नामवली स्त्रोत | श्री दुर्गा बत्तीस नामवली | मां दुर्गा के 32 चमत्कारी नाम

एक समय की बात है, ब्रह्मा आदि देवताओ ने पुष्प आदि विविध उपचारों से महेश्वरी दुर्गा का पूजन किया। इस से प्रसन्न होकर दुर्गतिनाशिनी दुर्गा ने कहा: देवताओं! मैं तुम्हारे पूजन से संतुष्ट हूँ, तुम्हारी जो इच्छा हो, माँगो, मैं दुर्लभ से दुर्लभ वस्तु भी प्रदान करुँगी।

दुर्गा का यह वचन सुनकर देवता बोले: देवी! हमारे शत्रु महिषासुर को, जो तीनों लोकों के लिए कंटक था, आपने मार डाला, इस से सम्पूर्ण जगत स्वस्थ एवं निर्भय हो गया। आपकी कृपा से हमें पुनः अपने-अपने पद की प्राप्ति हुई है। आप भक्तों के लिए कल्पवृक्ष हैं, हम आपकी शरण में आये हैं, अतः अब हमारे मन में कुछ भी पाने की अभिलाषा शेष नहीं हैं। हमें सब कुछ मिल गया। तथापि आपकी आज्ञा हैं, इसलिए हम जगत की रक्षा के लिए आप से कुछ पूछना चाहते हैं। महेश्वरी! कौन-सा ऐसा उपाय हैं, जिस से शीघ्र प्रसन्न होकर आप संकट में पड़े हुए जीव की रक्षा करती हैं। देवेश्वरी! यह बात सर्वथा गोपनीय हो तो भी हमें अवश्य बतावें।

देवताओं के इस प्रकार प्रार्थना करने पर दयामयी दुर्गा देवी ने कहा: देवगण! सुनो-यह रहस्य अत्यंत गोपनीय और दुर्लभ हैं। मेरे बत्तीस नामों की माला सब प्रकार की आपत्ति का विनाश करने वाली हैं। तीनों लोकों में इस के समान दूसरी कोई स्तुति नहीं हैं। यह रहस्यरूप हैं। इसे बतलाती हूँ, सुनो -
१) दुर्गा,
२) दुर्गार्तिशमनी,
३) दुर्गापद्विनिवारिणी,
४) दुर्गमच्छेदिनी,
५) दुर्गसाधिनी,
६) दुर्गनाशिनी,
७) दुर्गतोद्धारिणी ,
८) दुर्गनिहन्त्री,
९) दुर्गमापहा,
१०) दुर्गमज्ञानदा,
११) दुर्गदैत्यलोकदवानला,
१२) दुर्गमा,
१३) दुर्गमालोका,
१४) दुर्गमात्मस्वरूपिणी,

१५) दुर्गमार्गप्रदा,
१६) दुर्गमविद्या,
१७) दुर्गमाश्रिता,
१८) दुर्गमज्ञानसंस्थाना,
१९) दुर्गमध्यानभासिनी,
२०) दुर्गमोहा,
२१) दुर्गमगा,
२२) दुर्गमार्थस्वरूपिणी,
२३) दुर्गमासुरसंहन्त्री,
२४) दुर्गमायुधधारिणी,
२५) दुर्गमांगी,
२६) दुर्गमता,
२७) दुर्गम्या,
२८) दुर्गमेश्वरी,
२९) दुर्गभीमा,
३०) दुर्गभामा,
३१) दुर्गभा
३२) दुर्गदारिणी

जो मनुष्य मुझ दुर्गा की इस नाममाला का यह पाठ करता हैं, वह निःसंदेह सब प्रकार के भय से मुक्त हो जायेगा।

कोई शत्रुओं से पीड़ित हो अथवा दुर्भेद्य बंधन में पड़ा हो, इन बत्तीस नामों के पाठ मात्र से संकट से छुटकारा पा जाता हैं। इसमें तनिक भी संदेह नहीं हैं। यदि राजा क्रोध में भरकर वध के लिए अथवा और किसी कठोर दंड के लिए आज्ञा दे दे या युद्ध में शत्रुओं द्वारा मनुष्य घिर जाए अथवा वन में व्याघ्र आदि हिंसक जंतुओं के चंगुल में फंस जाए तो इन बत्तीस नामों का एक सौ आठ बार पाठ मात्र करने से वह सम्पूर्ण भयों से मुक्त हो जाता हैं।

विपत्ति के समय इस के समान भयनाशक उपाय दूसरा नहीं हैं। देवगण! इस नाममाला का पाठ करने वाले मनुष्यो की कभी कोई हानि नहीं होती। अभक्त, नास्तिक और शठ मनुष्य को इसका उपदेश नहीं देना चाहिए। जो भारी विपत्ति में पड़ने पर भी इस नामावली का हजार, दस हजार अथवा लाख बार पाठ करता हैं, स्वयं करता या ब्राह्मणो से कराता हैं, वह सब प्रकार की आपत्तियों से मुक्त हो जाता हैं।

सिद्ध अग्नि में मधुमिश्रित सफ़ेद तिलों से इन नामों द्वारा लाख बार हवन करे तो मनुष्य सब विपत्तियों से छूट जाता हैं। इस नाममाला का पुरश्चरण तीस हजार का हैं। पुरश्चरणपूर्वक पाठ करने से मनुष्य इसके द्वारा सम्पूर्ण कार्य सिद्ध कर सकता हैं। मेरी सुन्दर मिट्टी की अष्टभुजा मूर्ति बनावे, आठों भुजाओं में क्रमशः गदा, खड्ग, त्रिशूल, बाण, धनुष, कमल, खेट (ढाल) और मुद्गर धारण करावें।



मूर्त्ति के मस्तक पर चन्द्रमा का चिन्ह हो, उसके तीन नेत्र हों, उसे लाल वस्त्र पहनाया गया हों, वह सिंह के कंधे पर सवार हो और शूल से महिषासुर का वध कर रही हो, इस प्रकार की प्रतिमा बनाकर नाना प्रकार की सामग्रियों से भक्तिपूर्वक मेरा पूजन करे। मेरे उक्त नमो से लाल कनेर के फूल चढ़ाते हुए सौ बार पूजा करे और मंत्र जाप करते हुए पुए से हवन करे। भांति-भांति के उत्तम पदार्थ का भोग लगावे। इस प्रकार करने से मनुष्य असाध्य कार्य को भी सिद्ध कर लेता हैं। जो मानव प्रतिदिन मेरा भजन करता हैं, वह कभी विपत्ति में नहीं पड़ता।

देवताओं से ऐसा कह कर जगदम्बा वहीँ अंतर्धान हो गयीं। दुर्गा जी के इस उपाख्यान को जो सुनते हैं, उन पर कोई विपत्ति नहीं आती।

 


इन हिंदी कहावतों के स्थान पर संस्कृत की सूक्ति बोलें।

 इन हिंदी कहावतों के स्थान पर संस्कृत की सूक्ति बोलें। 1. अपनी डफली अपना राग - मुण्डे मुण्डे मतिर्भिन्ना । 2. का बरखा जब कृषि सुखाने - पयो ग...