आप सभी को "एकादशी तिथि" की हार्दिक शुभकामनाएं।
आज एकादशी के पावन अवसर पर आइये श्री श्री राधामाधव जी की इस अनुपम लीला का रसपान करे।
‘हरि अनंत हरि कथा अनंता’ जिस प्रकार भगवान अनंत हैं, उसी प्रकार उनकी लीला भी अनंत हैं, भगवान की अनंतता और उनकी लीलाओं की विचित्रता अकथनीय है।
उनकी प्रत्येक लीला का गोपनीय रहस्य है जिसे संसार नहीं समझ सकता, ऐसी ही उनकी एक लीला है नौका विहार लीला।
उनकी प्रत्येक लीला का गोपनीय रहस्य है जिसे संसार नहीं समझ सकता, ऐसी ही उनकी एक लीला है नौका विहार लीला।
भाईजी श्री हनुमानप्रसादजी पोद्दार ने श्रीकृष्ण की नौका लीला का वर्णन इस प्रकार किया है:-
आश्विन मास, शरद ऋतु शोभन, शीतल शुभ्र चाँदनी रात।
कालिन्दी-जल निर्मल मनहर, मन्द सुगन्ध रहा बह वात॥
कालिन्दी-जल निर्मल मनहर, मन्द सुगन्ध रहा बह वात॥
रत्न-सुदीप्त रुचिर नौका पर रहे विराजित श्यामा-श्याम।
करते मधुर विनोद परस्पर नौ-विलास-रत अति अभिराम॥
करते मधुर विनोद परस्पर नौ-विलास-रत अति अभिराम॥
श्रीमती श्री राधाजी बोली:-
‘सुनो प्राणधन, तुम मुरली की छेड़ो तान।
सुन्दर सुमधुर स्वर-लहरी में मुझे सुनाओ रसमय गान॥
सुन्दर सुमधुर स्वर-लहरी में मुझे सुनाओ रसमय गान॥
मैं खे लूँगी नाव, प्राण खेलेंगे रसमय खेल महान।
नयन-मधुप रसमत्त रहेंगे कर मुख-सरसीरूह-रस पान’॥
नयन-मधुप रसमत्त रहेंगे कर मुख-सरसीरूह-रस पान’॥
यों कह खेने लगी तरी कर दृष्टि अचंचल पियकी ओर।
दृष्टि जमा श्यामा-मुख मुरली लगे बजामे नन्द-किशोर॥ (पद रत्नाकर)
दृष्टि जमा श्यामा-मुख मुरली लगे बजामे नन्द-किशोर॥ (पद रत्नाकर)
शरद ऋतु आने पर आकाश निर्मेघ हो गया, जल स्वच्छ हो गया और वायु शान्त हो गयी।
शरद ऋतु आकाश के मेघों को, पृथ्वी के कीचड़ को और जल के मल को उसी प्रकार हरण करके ले गयी जैसे श्रीकृष्ण की भक्ति चारों आश्रमों के पापों को हरकर ले जाती है।
शरद ऋतु आकाश के मेघों को, पृथ्वी के कीचड़ को और जल के मल को उसी प्रकार हरण करके ले गयी जैसे श्रीकृष्ण की भक्ति चारों आश्रमों के पापों को हरकर ले जाती है।
शरद्काल में मेघ श्वेत होकर ऐसे चमकने लगे, जैसे सब कुछ दान कर देने पर मनुष्य की शोभा होती है।
शरद् ऋतु ने अपनी समूची शोभा वृन्दावन धाम में प्रकट कर दी, जलाशय में खिले हुए कमलों की सुगन्ध चारों ओर व्याप्त हो गयी।
मानो लक्ष्मीजी अपने हाथ की सुगन्ध सब ओर छोड़ गयीं, सब चीजों को छूकर सजा गयीं हैं।
मानो लक्ष्मीजी अपने हाथ की सुगन्ध सब ओर छोड़ गयीं, सब चीजों को छूकर सजा गयीं हैं।
ऐसी ही सुन्दर ऋतु में आज श्रीकृष्ण श्रीराधा व गोपियों के साथ यमुनाजल में नौका विहार के लिए आये हैं।
ऐसा लगता है कि मदमस्त गजराज हथिनियों के झुंड के साथ घूम रहा हो।
ऐसा लगता है कि मदमस्त गजराज हथिनियों के झुंड के साथ घूम रहा हो।
श्रीकृष्ण के सिर पर मयूरपिच्छ है, कानों पर कनेर के पीले-पीले पुष्प, शरीर पर सुनहला पीताम्बर और गले में घुटनों तक लटकती वनमाला।
उनके साँवले ललाट पर केसर की खौर इतनी फबती है कि बस देखते ही जाओ।
उनके साँवले ललाट पर केसर की खौर इतनी फबती है कि बस देखते ही जाओ।
गले में दिव्य तुलसी की माला है जिसकी गन्ध से मतवाले होकर भौंरे गुंजार करते रहते हैं।
भौंरों की गुंजार का आदर करते हुये श्रीकृष्ण उन्हीं के स्वर में स्वर मिलाकर अपनी बांसुरी बजाने लगते हैं।
भौंरों की गुंजार का आदर करते हुये श्रीकृष्ण उन्हीं के स्वर में स्वर मिलाकर अपनी बांसुरी बजाने लगते हैं।
उस संगीत को सुनकर यमुनाजी में रहने वाले सारस-हंस आदि पक्षियों का चित्त भी उनके हाथ से निकल जाता है।
वे विवश होकर प्यारे श्यामसुन्दर के पास आकर चुपचाप बैठ जाते हैं और आँखें मूँदकर चुपचाप उनकी आराधना करने लगते हैं।
वे विवश होकर प्यारे श्यामसुन्दर के पास आकर चुपचाप बैठ जाते हैं और आँखें मूँदकर चुपचाप उनकी आराधना करने लगते हैं।
अब भगवान एक रत्नजड़ित दिव्य नाव पर श्रीराधा व गोपियों के साथ विहार करते हैं।
उनके चारों ओर गुनगुनाते हुये भौंरे इस प्रकार उड़ रहे थे मानो गन्धर्वराज भगवान श्रीकृष्ण की कीर्ति का गान कर रहे हों।
उनके चारों ओर गुनगुनाते हुये भौंरे इस प्रकार उड़ रहे थे मानो गन्धर्वराज भगवान श्रीकृष्ण की कीर्ति का गान कर रहे हों।
यमुनाजल में गोपियों ने प्रेमभरी चितवन से भगवान की ओर देख-देखकर तथा हँस-हँसकर उनपर इधर-उधर से जल की खूब बौछारें डालीं, जल उलीच-उलीचकर खूब अठखेलियाँ कीं।
विमानों पर चढ़े हुये देवता पुष्पों की वर्षा करके उनकी स्तुति करने लगे।
इसी समय श्रीकृष्ण की मुरली बज उठी जिसे सुनते ही ब्रजवनिताओं का मन श्रीकृष्णमय हो गया।
श्रीकृष्ण का श्रीराधा व गोपियों के लिये जिस लीला विलास का उत्कर्ष इस लीला में दृष्टिगोचर होता है वह रागानुगा भक्ति का चरम उत्कर्ष है।
श्रीकृष्ण की यह लीला अद्भुत श्रृंगाररस से परिपूरित है, श्रीपरमानंददासजी के शब्दों में:-
बैठे घनश्याम सुन्दर खेवत हैं नाव।
आज सखी नन्दलाल के संग खेलवे को दाव॥
आज सखी नन्दलाल के संग खेलवे को दाव॥
पथिक हम खेवट तुम लीजिये उतराय।
बीच धार माँझ रोकि मिषहि मिष दुराय॥
बीच धार माँझ रोकि मिषहि मिष दुराय॥
यमुना गम्भीर नीर अति अत रंग लोले।
गोपिन प्रति कहन लागे मीठे मीठे मृदु बोले॥
गोपिन प्रति कहन लागे मीठे मीठे मृदु बोले॥
नन्दनन्दन डरपत हैं राखिये पद पास।
याही मिष मिल्यो चाहे परमानंददास॥
याही मिष मिल्यो चाहे परमानंददास॥
गोपियों का काम है श्रीराधा-कृष्ण प्रिया-प्रियतम के मिलन-आनंद की व्यवस्था करना और उसे पूर्ण करके पूर्ण रूप से देखना, इसी में उनकी चरम तृप्ति है।
श्रीकृष्ण सदा रासेश्वर हैं, वह अपनी लीला भक्तों के आनंद के लिए करते हैं।
नौका विहार लीला श्रीकृष्ण की नित्यविहार लीला है जो चार नित्य तत्वों–श्रीराधा, श्रीकृष्ण, गोपियों व श्रीयमुनाजी का समवेत रूप है।
स्कन्दपुराण में श्रीराधा को श्रीकृष्ण की आत्मा व गौ, गोप व गोपियों को उनकी कामनाओं के रूप में निरुपित किया है।
कबीर जी के शब्दों में:-
‘कबिरा कबिरा क्या कहे चल यमुना के तीर।
एक-एक गोपी चरण पर बारौ कोटि कबीर॥
‘कबिरा कबिरा क्या कहे चल यमुना के तीर।
एक-एक गोपी चरण पर बारौ कोटि कबीर॥
यह संसार एक भवसागर है और कृष्ण नाम रूपी नौका से ही इसे पार किया जा सकता है।
श्रीमद्भागवत में लिखा है:-
जिन्होंने श्रीकृष्ण के चरणों रूपी नौका का आश्रय लिया है उनके लिए यह भव-सागर बछड़े के खुर के समान है।
उन्हें परमपद की प्राप्ति हो जाती है और उनके लिए विपत्तियों का निवास स्थान, यह संसार नहीं रहता।
जिन्होंने श्रीकृष्ण के चरणों रूपी नौका का आश्रय लिया है उनके लिए यह भव-सागर बछड़े के खुर के समान है।
उन्हें परमपद की प्राप्ति हो जाती है और उनके लिए विपत्तियों का निवास स्थान, यह संसार नहीं रहता।
No comments:
Post a Comment