सुबह उठने के बाद , दोपहर को भोजन के समय और रात को सोने से पहले ।
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कराग्रे वसते लक्ष्मी, करमूले सरस्वती
करमध्ये तू गोविंद प्रभाते कर दर्शनं।
हमारे हाथ के अग्र भाग में लक्ष्मी, तथा हाथ के मूल मे सरस्वती का वास है अर्थात भगवान ने हमारे हाथों
में इतनी ताकत दे रखी है,ज़िसके बल पर हम धन अर्थात लक्ष्मी
अर्जित करतें हैं। जिसके बल पर हम विद्या सरस्वती प्राप्त करतें हैं।इतना ही नहीं
सरस्वती तथा लक्ष्मी जो हम अर्जित करते हैं, उनका समन्वय स्थापित करने के लिए प्रभू स्वयं हाथ के मध्य में बैठे
हैं। ऐसे में क्यों न सुबह अपनें हाथ के दर्शन
कर प्रभू की दी हुई ताकत का अहसास करते हुए तथा प्रभू के प्रति कृतज्ञता व्यक्त
करते हुए दिन की अच्छी शुरूवात करें।
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2. समुद्रवसने देवि पर्वतस्तन मंडले
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पशं क्षमस्व
में।
इस श्लोक के अंर्तगत धरती माँ से माफी की याचना की गई है। कहा गया है, हे धरती माँ मै ना जाने कितने पाप कर रहा हूँ तुझ पर, रोज मैं तेरे उपर चलता हूँ, तुझे मेरे चरणों का स्पर्श होता है, फ़िर भी तू मुझ जैसों का बोझ उठाती है अतः तू मुझे माफ कर दे। यहां धरती माँ को बिष्णु की पत्नि कहा गया है।
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3. वसुदेव सुतं देवं ,कंस चारूण मर्दनं
देवकी परमानंदं, कृष्णं वंदे जगतगुरूं।
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वसुदेव के पुत्र, कंस तथा चारूण का मर्दन करने वाले, देवकी के लाल , भगवान श्रीकृष्ण ही इस जगत के गुरू हैं। उन्हें कोटि कोटि प्रणाम।
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