योगविशिष्ठ ग्रन्थ छः प्रकरणों में है।
वैराग्यप्रकरण (३३ सर्ग),
मुमुक्षु व्यवहार प्रकरण (२० सर्ग),
उत्पत्ति प्रकरण (१२२ सर्ग),
स्थिति प्रकरण (६२ सर्ग),
उपशम प्रकरण (९३ सर्ग), तथा
निर्वाण प्रकरण (पूर्वार्ध १२८ सर्ग और उत्तरार्ध २१६ सर्ग)
यह ग्रन्थ अनेक अन्य नामों से भी जाना जाता है, जैसे-
ज्ञानवासिष्ठ
महारामायण
योगवासिष्ठ महारामायण
वसिष्ठ-गीता
इस ग्रन्थ में मुख्य विषय -
प्रथम वैराग्य प्रकरण में उपनयन संस्कार के बाद राम अपने भाइयों के साथ गुरुकुल में अध्ययनार्थ गए। अध्ययन समाप्ति के बाद तीर्थयात्रा से वापस लौटने पर राम विरक्त हुए। महाराज दशरथ की सभा में वे कहते हैं कि वैभव, राज्य, देह और आकांक्षा का क्या उपयोग है। कुछ ही दिनों में काल इन सब का नाश करने वाला है। अपनी मनोव्यथा का निवारण करने की प्रार्थना उन्होंने अपने गुरु वसिष्ठ और विश्वामित्र से की। दूसरे मुमुक्षुव्यवहार प्रकरण में विश्वामित्र की सूचना के अनुसार वशिष्ठ ऋषि ने उपदेश दिया है। ३-४ और ५ वें प्रकरणों में संसार की उत्पत्ति, स्थिति और लय की उत्पत्ति वार्णित है। इन प्रकारणों में अनेक दृष्टान्तात्मक आख्यान और उपाख्यान निवेदन किये गए हैं। छठे प्रकरण का पूर्वार्ध और उत्तरार्ध में विभाजन किया गया है। इसमें संसारचक्र में फँसे हुए जीवात्मा को निर्वाण अर्थात निरतिशय आनन्द की प्राप्ति का उपाय प्रतिपादित किया गया है।
योग वशिष्ठ के अनुसार ज्ञान की सप्तभूमि-
1. शुभेच्छा:- सत्य का बोध होना। अच्छा प्राप्त करने की इच्छा।
2. विचारना:- शास्त्रों के माध्यम से विचार करना।योगविशिष्ठ ग्रन्थ छः प्रकरणों में है।
वैराग्यप्रकरण (३३ सर्ग),
मुमुक्षु व्यवहार प्रकरण (२० सर्ग),
उत्पत्ति प्रकरण (१२२ सर्ग),
स्थिति प्रकरण (६२ सर्ग),
उपशम प्रकरण (९३ सर्ग), तथा
निर्वाण प्रकरण (पूर्वार्ध १२८ सर्ग और उत्तरार्ध २१६ सर्ग)
यह ग्रन्थ अनेक अन्य नामों से भी जाना जाता है, जैसे-
ज्ञानवासिष्ठ
महारामायण
योगवासिष्ठ महारामायण
वसिष्ठ-गीता
इस ग्रन्थ में मुख्य विषय -
प्रथम वैराग्य प्रकरण में उपनयन संस्कार के बाद राम अपने भाइयों के साथ गुरुकुल में अध्ययनार्थ गए। अध्ययन समाप्ति के बाद तीर्थयात्रा से वापस लौटने पर राम विरक्त हुए। महाराज दशरथ की सभा में वे कहते हैं कि वैभव, राज्य, देह और आकांक्षा का क्या उपयोग है। कुछ ही दिनों में काल इन सब का नाश करने वाला है। अपनी मनोव्यथा का निवारण करने की प्रार्थना उन्होंने अपने गुरु वसिष्ठ और विश्वामित्र से की। दूसरे मुमुक्षुव्यवहार प्रकरण में विश्वामित्र की सूचना के अनुसार वशिष्ठ ऋषि ने उपदेश दिया है। ३-४ और ५ वें प्रकरणों में संसार की उत्पत्ति, स्थिति और लय की उत्पत्ति वार्णित है। इन प्रकारणों में अनेक दृष्टान्तात्मक आख्यान और उपाख्यान निवेदन किये गए हैं। छठे प्रकरण का पूर्वार्ध और उत्तरार्ध में विभाजन किया गया है। इसमें संसारचक्र में फँसे हुए जीवात्मा को निर्वाण अर्थात निरतिशय आनन्द की प्राप्ति का उपाय प्रतिपादित किया गया है।
योग वशिष्ठ के अनुसार ज्ञान की सप्तभूमि-
1. शुभेच्छा:- सत्य का बोध होना। अच्छा प्राप्त करने की इच्छा।
2. विचारना:- शास्त्रों के माध्यम से विचार करना।
3. अनुमानसा:- निध्यासन करना मन को बाह्यमुखी से अंतर्मुखी करना।
4. सत्तापत्ति:- जीव ब्रह्म वृत्ति होता है। निर्विकल्प समाधि की अवस्था। सत्य पदार्थ में स्थिर होना।
5. असंसक्ति:- ब्रहम के सात्कार के बाद जो चमत्कार उत्पन होना वह अंससक्ति है। इससे अविद्या दूर जाती है।
6. पदार्थ भावना:- पदार्थों की भावना न रहना। यह पदार्थ अभावना है। इसमें दृढ़ स्थिति हो गयी है। इससे 'ब्रह्ममाविद परीयान' कहते हैं।
7. तुर्यगा:- एक मात्र स्वरूप में प्रतिविष्ठत।
#योग
#योगवशिष्ठ
#महारामायण
#श्रीराम
#संस्कृतसंस्कृतिसंस्कार
#गुरुकुलशिक्षापद्धति
#जुड़े_अपनी_संस्कृति_से
#उपनिषद
#संस्कृतकाउदय
#लीलावती
#Sanskritkauday
#संस्कृतभाषा
#संस्कृति
#संस्कार
3. अनुमानसा:- निध्यासन करना मन को बाह्यमुखी से अंतर्मुखी करना।
4. सत्तापत्ति:- जीव ब्रह्म वृत्ति होता है। निर्विकल्प समाधि की अवस्था। सत्य पदार्थ में स्थिर होना।
5. असंसक्ति:- ब्रहम के सात्कार के बाद जो चमत्कार उत्पन होना वह अंससक्ति है। इससे अविद्या दूर जाती है।
6. पदार्थ भावना:- पदार्थों की भावना न रहना। यह पदार्थ अभावना है। इसमें दृढ़ स्थिति हो गयी है। इससे 'ब्रह्ममाविद परीयान' कहते हैं।
7. तुर्यगा:- एक मात्र स्वरूप में प्रतिविष्ठत।
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