Chanakya Slokas (चाणक्य नीति श्लोक)
कश्चित् कस्यचिन्मित्रं, न कश्चित् कस्यचित् रिपु:। अर्थतस्तु निबध्यन्ते, मित्राणि रिपवस्तथा ॥
भावार्थ
:
न कोई किसी का मित्र है और न ही शत्रु, कार्यवश ही लोग मित्र और शत्रु बनते हैं ।
मूर्खशिष्योपदेशेन दुष्टास्त्रीभरणेन च।
दुःखितैः सम्प्रयोगेण पण्डितोऽप्यवसीदति॥
भावार्थ
:
मूर्ख शिष्य को पढ़ाने पर , दुष्ट स्त्री के साथ जीवन बिताने पर तथा दुःखियों- रोगियों
के बीच में रहने पर विद्वान व्यक्ति भी दुःखी हो ही जाता है ।
दुष्टा भार्या शठं मित्रं
भृत्यश्चोत्तरदायकः। ससर्पे गृहे वासो मृत्युरेव न संशयः॥
भावार्थ
:
दुष्ट पत्नी , शठ मित्र , उत्तर
देने वाला सेवक तथा सांप वाले घर में रहना , ये
मृत्यु के कारण हैं इसमें सन्देह नहीं करनी चाहिए ।
धनिकः श्रोत्रियो राजा नदी वैद्यस्तु
पञ्चमः। पञ्च यत्र न विद्यन्ते न तत्र दिवसे वसेत ॥
भावार्थ
:
जहां कोई सेठ, वेदपाठी विद्वान, राजा और
वैद्य न हो, जहां
कोई नदी न हो, इन पांच
स्थानों पर एक दिन भी नहीं रहना चाहिए ।
जानीयात्प्रेषणेभृत्यान्
बान्धवान्व्यसनाऽऽगमे। मित्रं याऽऽपत्तिकालेषु भार्यां च विभवक्षये ॥
भावार्थ
:
किसी महत्वपूर्ण कार्य पर भेज़ते समय
सेवक की पहचान होती है । दुःख के समय में बन्धु-बान्धवों की, विपत्ति के समय मित्र की तथा धन नष्ट हो जाने पर पत्नी की
परीक्षा होती है ।
यस्मिन् देशे न सम्मानो न वृत्तिर्न च
बान्धवाः। न च विद्यागमोऽप्यस्ति वासस्तत्र न कारयेत् ॥
भावार्थ
:
जिस देश में सम्मान न हो, जहाँ कोई आजीविका न मिले , जहाँ अपना कोई भाई-बन्धु न रहता हो और जहाँ विद्या-अध्ययन
सम्भव न हो, ऐसे
स्थान पर नहीं रहना चाहिए ।
माता यस्य गृहे नास्ति भार्या
चाप्रियवादिनी। अरण्यं तेन गन्तव्यं यथारण्यं तथा गृहम् ॥
भावार्थ
:
जिसके घर में न माता हो और न स्त्री
प्रियवादिनी हो , उसे वन
में चले जाना चाहिए क्योंकि उसके लिए घर और वन दोनों समान ही हैं ।
आपदर्थे धनं रक्षेद् दारान् रक्षेद् धनैरपि।
आत्मानं सततं रक्षेद् दारैरपि धनैरपि ॥
भावार्थ
:
विपत्ति के समय के लिए धन की रक्षा करनी
चाहिए । धन से अधिक रक्षा पत्नी की करनी चाहिए । किन्तु अपनी रक्षा का प्रसन
सम्मुख आने पर धन और पत्नी का बलिदान भी करना पड़े तो नहीं चूकना चाहिए ।
लोकयात्रा भयं लज्जा दाक्षिण्यं
त्यागशीलता। पञ्च यत्र न विद्यन्ते न कुर्यात्तत्र संगतिम् ॥
भावार्थ
:
जिस स्थान पर आजीविका न मिले, लोगों में भय, और
लज्जा, उदारता तथा दान देने की प्रवृत्ति न हो, ऐसी पांच जगहों को भी मनुष्य को अपने निवास के लिए नहीं
चुनना चाहिए ।
आतुरे व्यसने प्राप्ते दुर्भिक्षे
शत्रुसण्कटे। राजद्वारे श्मशाने च यात्तिष्ठति स बान्धवः ॥
भावार्थ
:
जब कोई बीमार होने पर, असमय शत्रु से घिर जाने पर, राजकार्य में सहायक रूप में तथा मृत्यु पर श्मशान भूमि में
ले जाने वाला व्यक्ति सच्चा मित्र और बन्धु है ।
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