शल्य चिकित्सा (सर्जरी) के
पितामह और सुश्रुतसंहिता के प्रणेता आचार्य सुश्रुत का जन्म छठी शताब्दी ईसा पूर्व
काशी में हुआ था। सुश्रुत का जन्म विश्वामित्र के वंश में हुआ था। इन्होंने
धन्वन्तरि से शिक्षा प्राप्त की थी।सुश्रुतसंहिता को भारतीय चिकित्सा पद्धति में
विशेष स्थान प्राप्त है। इसमें शल्य चिकित्सा के विभिन्न पहलुओं को विस्तार से
समझाया गया है। शल्य क्रिया के लिए सुश्रुत 125 तरह
के उपकरणों का प्रयोग करते थे। ये उपकरण शल्य क्रिया की जटिलता को देखते हुए खोजे
गए थे। इन उपकरणों में विशेष प्रकार के चाकू, सुइयां, चिमटियां
आदि हैं। सुश्रुत ने 300 प्रकार
की ऑपरेशन प्रक्रियाओं की खोज की। आठवीं शताब्दी में सुश्रुतसंहिता का अरबी अनुवाद
किताब-इ-सुश्रुत के रूप में हुआ। सुश्रुत ने कॉस्मेटिक सर्जरी में विशेष निपुणता
हासिल कर ली थी।
एक बार आधी रात के समय
सुश्रुत को दरवाजे पर दस्तक सुनाई दी। उन्होंने दीपक हाथ में लिया और दरवाजा खोला।
दरवाजा खोलते ही उनकी नजर एक व्यक्ति पर पड़ी। उस व्यक्ति की आंखों से अश्रु-धारा
बह रही थी और नाक कटी हुई थी। उसकी नाक से तीव्र रक्त-स्राव हो रहा था। व्यक्ति ने
आचार्य सुश्रुत से सहायता के लिए विनती की। सुश्रुत ने उसे अन्दर आने के लिए कहा।
उन्होंने उसे शांत रहने को कहा और दिलासा दिया कि सब ठीक हो जायेगा। वे अजनबी
व्यक्ति को एक साफ और स्वच्छ कमरे में ले गए। कमरे की दीवार पर शल्य क्रिया के लिए
आवश्यक उपकरण टंगे थे। उन्होंने अजनबी के चेहरे को औषधीय रस से धोया और उसे एक आसन
पर बैठाया। उसको एक गिलास में शोमरस भरकर सेवन करने को कहा और स्वयं शल्य क्रिया
की तैयारी में लग गए। उन्होंने एक पत्ते द्वारा जख्मी व्यक्ति की नाक का नाप लिया
और दीवार से एक चाकू व चिमटी उतारी। चाकू और चिमटी की मदद से व्यक्ति के गाल से एक
मांस का टुकड़ा काटकर उसे उसकी नाक पर प्रत्यारोपित कर दिया। इस क्रिया में
व्यक्ति को हुए दर्द का शौमरस ने महसूस नहीं होने दिया। इसके बाद उन्होंने नाक पर
टांके लगाकर औषधियों का लेप कर दिया। व्यक्ति को नियमित रूप से औषाधियां लेने का
निर्देश देकर सुश्रुत ने उसे घर जाने के लिए कहा।
सुश्रुत नेत्र शल्य
चिकित्सा भी करते थे। सुश्रुतसंहिता में मोतियाबिंद के ऑप ऑपरेशन करने की विधि को
विस्तार से बताया है। उन्हें शल्य क्रिया द्वारा प्रसव कराने का भी ज्ञान था।
सुश्रुत को टूटी हुई हड्डी का पता लगाने और उनको जोड़ने में विशेषज्ञता प्राप्त
थी। शल्य क्रिया के दौरान होने वाले दर्द को कम करने के लिए वे मद्यपान या विशेष
औषधियां देते थे। सुश्रुत श्रेष्ठ शल्य चिकित्सक होने के साथ-साथ श्रेष्ठ शिक्षक
भी थे।
उन्होंने अपने शिष्यों को
शल्य चिकित्सा के सिद्धांत बताये और शल्य क्रिया का अभ्यास कराया। प्रारंभिक
अवस्था में शल्य क्रिया के अभ्यास के लिए फलों, सब्जियों
और मोम के पुतलों का उपयोग करते थे। मानव शरीर की अंदरूनी रचना को समझाने के लिए
सुश्रुत शव के ऊपर शल्य क्रिया करके अपने शिष्यों को समझाते थे। सुश्रुत ने शल्य
चिकित्सा में अद्भुत कौशल अर्जित किया तथा इसका ज्ञान अन्य लोगों को कराया।
उन्होंने शल्य चिकित्सा के साथ-साथ आयुर्वेद के अन्य पक्षों जैसे शरीर संरचना, काया-चिकित्सा, बाल
रोग, स्त्री रोग, मनोरोग
आदि की जानकारी भी दी। कई लोग प्लास्टिक सर्जरी को अपेक्षाकृत एक नई विधा के रूप
में मानते हैं। प्लास्टिक सर्जरी की उत्पत्ति की जड़ें भारत की सिंधु नदी सभ्यता
से 4000 से अधिक साल से जुड़ी हैं। इस सभ्यता से जुड़े श्लोकों को 3000 और 1000 ई.पू.
के बीच संस्कृत भाषा में वेदों के रूप में संकलित किया गया है, जो
हिन्दू धर्म की सबसे पुरानी पवित्र पुस्तकों में में से हैं। इस युग को भारतीय
इतिहास में वैदिक काल के रूप में जाना जाता है, जिस
अवधि के दौरान चारों वेदों अर्थात् ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद
और अथर्ववेद को संकलित किया गया। चारों वेद श्लोक, छंद, मंत्र
के रूप में संस्कृत भाषा में संकलित किए गए हैं और सुश्रुत संहिता को अथर्ववेद का
एक हिस्सा माना जाता है।
सुश्रुत संहिता, जो
भारतीय चिकित्सा में सर्जरी की प्राचीन परंपरा का वर्णन करता है, उसे
भारतीय चिकित्सा साहित्य के सबसे शानदार रत्नों में से एक के रूप में माना जाता
है। इस ग्रंथ में महान प्राचीन सर्जन सुश्रुत की शिक्षाओं और अभ्यास का विस्तृत
विवरण है, जो आज भी महत्वपूर्ण व प्रासंगिक शल्य चिकित्सा ज्ञान है।
प्लास्टिक सर्जरी का मतलब है- शरीर के किसी हिस्से की रचना ठीक करना। प्लास्टिक
सर्जरी में प्लास्टिक का उपयोग नहीं होता है। सर्जरी के पहले जुड़ा प्लास्टिक
ग्रीक शब्द प्लास्टिको से आया है। ग्रीक में प्लास्टिको का अर्थ होता है बनाना, रोपना
या तैयार करना। प्लास्टिक सर्जरी में सर्जन शरीर के किसी हिस्से के उत्तको ं लेकर
दूसरे हिस्से में जोड़ता है। भारत में सुश्रुत को पहला सर्जन माना जाता है। आज से
करीब 2500 साल पहले युद्ध या प्राकृतिक विपदाओं में जिनकी नाक खराब हो
जाती थी, आचार्य सुश्रुत उन्हें ठीक करने का काम करते थे।
चार सालों से अफगानी महिला
के नाक की अटकी सर्जरी शल्य चिकित्सक महर्षि सुश्रुत के ढाई हजार साल पुराने तरीके
से हुई सफल !
शल्य चिकित्सक महर्षि सुश्रुत
की लिखी सुश्रुत संहिता आज २५०० वर्षों बाद भी चिकित्सा क्षेत्र में मार्गदर्शक
बनी हुई है ! यह है भारत का वह सनातनी ज्ञान जिसके कारण भारत विश्वगुरु कहलाता था
!
चार सालों से एक विदेशी महिला की नाक की सर्जरी अटकी हुई थी। दवा और दुआ, कुछ भी काम नहीं आ रहा था। लाख कोशिशों के बाद वह इलाज के लिए भारत आई। डॉक्टरों ने यहां शल्य चिकित्सक महर्षि सुश्रुत के तकरीबन ढाई हजार साल पुराने तरीके अपनाए और उसकी सफल सर्जरी कर नई नाक तैयार की। डॉक्टरों ने महिला के गाल की खाल की मदद से यह नई नाक बनाई !
एक न्यूज एजेंसी के अनुसार, शम्सा खान (२४) मूलरूप से अफगानिस्तान की रहनेवाली हैं। आतंकी हमले में चार साल पहले उन्हें गोली लग गई थी। वह उस हमले में बाल-बाल बचीं, पर कुछ जख्मों ने उनकी नाक का हुलिया बुरी तरह बिगाड दिया था। वह इसके चलते ठीक से सांस भी नहीं ले पाती थीं। यहां तक कि उनकी सूंघने की क्षमता भी चली गई थी।
इलाज की आस में उन्होंने अफगानिस्तान में कई डॉक्टरों के चक्कर लगाए। परंतु उनके हाथ केवल निराशा ही आई। उन्होंने वहां पर सर्जरी भी कराई, परंतु वह सफल न हो पाई। ऐसे में उन्होंने बेहतर इलाज के लिए भारत का रुख किया। राजधानी नई देहली स्थित केएएस मेडिकल सेंटर एंड मेडस्पा में उन्हें भर्ती कराया गया। प्लास्टिक सर्जन अजय कश्यप ने एजेंसी से कहा, “यह जटिल मामला था। आधुनिक तरीकों से बात नहीं बनी, तो हमने शल्य चिकित्सक महर्षि सुश्रुत की तकनीक से नाक बनाने के लिए गाल से खाल ली !”
उधर, इलाज के बाद शम्सा खास खुश हैं। वह बोलीं, “हमारे यहां गोली चलना व हमले होना आम है। उनमें कुछ मरते हैं तो कुछ बच जाते हैं, जबकि कुछ हालात के कारण मानसिक व शारीरिक ट्रॉमा का शिकार हो बैठते हैं। अंग बेकार हो जाए, जो जिंदगी भयावह हो जाती है। पर अब मुझे खुशी है कि सामान्य जीवन जी सकूंगी !”
चार सालों से एक विदेशी महिला की नाक की सर्जरी अटकी हुई थी। दवा और दुआ, कुछ भी काम नहीं आ रहा था। लाख कोशिशों के बाद वह इलाज के लिए भारत आई। डॉक्टरों ने यहां शल्य चिकित्सक महर्षि सुश्रुत के तकरीबन ढाई हजार साल पुराने तरीके अपनाए और उसकी सफल सर्जरी कर नई नाक तैयार की। डॉक्टरों ने महिला के गाल की खाल की मदद से यह नई नाक बनाई !
एक न्यूज एजेंसी के अनुसार, शम्सा खान (२४) मूलरूप से अफगानिस्तान की रहनेवाली हैं। आतंकी हमले में चार साल पहले उन्हें गोली लग गई थी। वह उस हमले में बाल-बाल बचीं, पर कुछ जख्मों ने उनकी नाक का हुलिया बुरी तरह बिगाड दिया था। वह इसके चलते ठीक से सांस भी नहीं ले पाती थीं। यहां तक कि उनकी सूंघने की क्षमता भी चली गई थी।
इलाज की आस में उन्होंने अफगानिस्तान में कई डॉक्टरों के चक्कर लगाए। परंतु उनके हाथ केवल निराशा ही आई। उन्होंने वहां पर सर्जरी भी कराई, परंतु वह सफल न हो पाई। ऐसे में उन्होंने बेहतर इलाज के लिए भारत का रुख किया। राजधानी नई देहली स्थित केएएस मेडिकल सेंटर एंड मेडस्पा में उन्हें भर्ती कराया गया। प्लास्टिक सर्जन अजय कश्यप ने एजेंसी से कहा, “यह जटिल मामला था। आधुनिक तरीकों से बात नहीं बनी, तो हमने शल्य चिकित्सक महर्षि सुश्रुत की तकनीक से नाक बनाने के लिए गाल से खाल ली !”
उधर, इलाज के बाद शम्सा खास खुश हैं। वह बोलीं, “हमारे यहां गोली चलना व हमले होना आम है। उनमें कुछ मरते हैं तो कुछ बच जाते हैं, जबकि कुछ हालात के कारण मानसिक व शारीरिक ट्रॉमा का शिकार हो बैठते हैं। अंग बेकार हो जाए, जो जिंदगी भयावह हो जाती है। पर अब मुझे खुशी है कि सामान्य जीवन जी सकूंगी !”
कौन थे सुश्रुत ? : महर्षि सुश्रुत को विश्व का
पहला शल्य चिकित्सक (सर्जन) माना जाता है। २५०० साल पहले सुझाए उनके सर्जरी के
तरीके आज भी सबसे सटीक माने जाते हैं ! उन्होंने इसके लिए कुल आठ तरीके बताए थे।
उनका नाक और कान की सर्जरी का तरीका काफी बढिया माना जाता है। ये सभी उनके नाम से
रचित संहिता में दर्ज हैं। १८४ अध्यायवाली सुश्रुत संहिता में आठ तरीके की सर्जरी
और ११२० प्रकार के रोगों के बारे में बताया गया है। वह, चरक और धन्वंतरि जैसे
चिकित्सकों जैसे ही मशहूर रहे हैं !
शल्य चिकित्सा, प्लास्टिक सर्जरी : जी हां, प्लास्टिक सर्जरी के आविष्कार से दुनिया में क्रांति आ गई। पश्चिम के लोगों के अनुसार प्लास्टिक
सर्जरी आधुनिक विज्ञान की देन है। प्लास्टिक सर्जरी का मतलब है- 'शरीर के किसी हिस्से को
ठीक करना।' भारत में सुश्रुत को पहला शल्य चिकित्सक माना जाता है। आज से करीब 2,600 साल पहले सुश्रुत युद्ध
या प्राकृतिक विपदाओं में जिनके अंग-भंग हो जाते थे या नाक खराब हो जाती थी, तो उन्हें ठीक करने का
काम करते थे।
सुश्रुत ने 1,000 ईसापूर्व अपने समय के
स्वास्थ्य वैज्ञानिकों के साथ प्रसव, मोतियाबिंद, कृत्रिम अंग लगाना, हड्डी जोड़ना, पथरी का इलाज और
प्लास्टिक सर्जरी जैसी कई तरह
सुश्रुत को दिमाग में
शल्यक्रिया और प्लास्टिक सर्जरी करने के लिए भी जाना जाता है। उन्होंने अपने
साथियों के साथ 3,000 से भी ज्यादा शल्यक्रियाएं की
थीं। उन्हें 125 चिकित्सकीय औजारों में
सिद्धहस्त माना जाता था।
आधुनिक विज्ञान केवल 400
वर्ष पूर्व ही शल्यक्रिया करने लगा है,
लेकिन सुश्रुत ने 2600 वर्ष
पूर्व यह कार्य करके दिखा दिया था। सुश्रुत के पास अपने बनाए उपकरण थे जिन्हें वे
उबालकर प्रयोग करते थे।
महर्षि सुश्रुत द्वारा लिखित ‘सुश्रुत
संहिता' ग्रंथ में शल्य चिकित्सा से संबंधित
महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। इस ग्रंथ में चाकू,
सुइयां, चिमटे इत्यादि सहित 125
से भी अधिक शल्य चिकित्सा हेतु आवश्यक उपकरणों के लते हैं और इस ग्रंथ
में लगभग 300 प्रकार की सर्जरियों का उल्लेख मिलता
है।
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