मूल अर्थ
पाण्डुलिपि का मूल अर्थ है हाथ से लिखी गई किसी रचना का शुरुआती प्रारूप। यानी पाण्डुलिपि दरअसल हस्तलेख ही है। हस्तलेख यानी हाथ से लिखा हुआ प्रारूप। पाण्डुलिपि हिन्दी की तत्सम शब्दावली का हिस्सा है। संस्कृत के पाण्डु और लिपि से मिल कर बना है पाण्डुलिपि। पाण्डु का अर्थ होता है पीला या सफ़ेद अथवा पीली आभा वाली सफ़ेदी। वैसे पाण्डुलिपि में किसी सतह को सफ़ेदी से पोत कर लिखने का भाव है।[1]
इतिहास से
प्राचीनकाल में ऋषि-मुनि जब विचार-मीमांसा करते थे तो उनके भाष्य को किसी ज़माने में भूमि को गोबर से पोत कर उस पर खड़िया मिट्टी से लिपिबद्ध किया जाता था। कालान्तर में यह काम दीवारों पर होने लगा। उसके बाद लकड़ी की पाटियों का चलन हुआ। मिट्टी से पुते काष्ठ-फलक पर लिखा जाने लगा। उसके बाद ताड़पत्र पर लिखने का चलन हुआ और तब भी पुस्तकाकार प्रारूप का नाम पाण्डुलिपि रहा और फिर जब काग़ज़ का दौर आया, तब भी हस्तलिखित मसौदा ही पाण्डुलिपि कहलाता रहा।[1]
पाण्डुलिपि अथवा पाण्डुलेख
पाण्डुलिपि शब्द बहुत प्राचीन नहीं है जबकि पुराने युग में इसके लिए पाण्डुलेख शब्द का प्रयोग होता था। वैसे भी किसी हस्तलिखि दस्तावेज या प्रारूप को पाण्डुलिपि कहना सही नहीं है। पाण्डुलेख ही सही शब्द है। पाण्डुलिपि शब्द से ऐसा आभास होता है मानो किसी लिपि का नाम पाण्डु है। लिपि शब्द का प्रचलित अर्थ वही है जो अंग्रेज़ी में स्क्रिप्ट का है यानी अक्षर, लेख, वर्णमाला, उत्कीर्णन, चित्रण आदि। प्राचीन काल में ज़मीन और दीवारों पर कुछ न कुछ चित्र उकेर कर ही मनुष्य ने अपने मनोभावों के दस्तावेजीकरण का काम शुरू किया था। इसके बाद ही भाषा के सन्दर्भ में चिह्नों पर मनुष्य का ध्यान गया। उसके द्वारा व्यक्त विविध चित्र-संकेत ही प्रारम्भिक भाषाओं के लिपि-चिह्न बने। लिपि बना है संस्कृत की लिप् धातु से जिसमें लेपना, पोतना, चुपड़ना, प्रज्वलित करना या आच्छादन करना जैसे भाव हैं। गौरतलब है कि वैदिक सभ्यता में हवन यज्ञादि से पूर्व भूमिपूजन के लिए ज़मीन को लीपा जाता था। उस पर माँगलिक चिह्न बनाए जाते थे। हिन्दी में लीपना, लेपन, आलेपन जैसी क्रियाएँ इससे ही बनी हैं। लिप् से ही बना है लिप्त शब्द जिसका अर्थ है किसी गीले पदार्थ से सना हुआ, लिपा हुआ, पुता हुआ। लिप्त का परवर्ती विकास किसी के असर में होना, लीन रहना, प्रभाव में होना जैसे आशयों से प्रकट होता है। कुछ और शब्द भी इसी कड़ी में हैं जैसे संलिप्त यानी संलग्न रहना और निर्लिप्त यानी अलग रहना, उदासीन रहना, जुड़ाव न होना। पाण्डुलिपि के लिए पहले हस्तलेख या हस्तलिपि शब्द भी प्रचलित था। हस्तलेख मे हाथ से की गई चित्रकारी, लेखन से आशय है। बाद में इसका आशय दस्तावेज, परिपत्र या प्रारूप हो गया। बाद में इसे पाण्डुलिपि के अर्थ में लिया जाने लगा।[1]
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