Wednesday, November 16, 2016

कैसे होगी मौत बतायेगी ये पाण्डुलिपि…..

कैसे होगी मौत बतायेगी ये पाण्डुलिपि…..


मृत्यु वह कटु सत्य हैंजिसे एक दिन सभी को स्वीकार करना पडता हैं। इस संसार में जो भी जन्म् लेता हैंउसकी मृत्यु तय है। जन्म के साथ ही व्यक्ति का अंत भी निश्चित हो जाता है। उसकी मौत कैसेकब और कहां होगी इन प्रश्नो का मिलना बहुत ही मुश्किल हैं। मृत्यु के बाद क्या होता हैंमनुष्य के मस्तिष्क में हमेशा से ही इस प्रकार के प्रश्न उठते रहते हैं। लेकिन एक पांडुलिपि ऐसी हैं जिसमे इन सभी प्रश्नो का जवाब आपको मिल सकता हैं। मृत्यु के रहस्यों को खोलने वाली इस पाण्डुलिपि का नाम हैं मृत्यु विचार। महर्षि पुण्डरीक इस पाण्डुलिपि के रचनाकार हैं।
महर्षि पुण्डरीक ने इस पाण्डुलिपि की रचना मृत्यु जैसे जटिल विषय के प्रति फैले अज्ञान व विभिन्न प्रकार की भ्रांतियों को मिटाने के लिये की थी। यह पांडुलिपि मौत के विभिन्न पहलुओं के राज खोलती हैं-

क्या मौत का कोई स्वाद होता है ?
क्या मौत का कोई रंग होता है ?
क्या कोई मौत का अनुभव जानता है ?
क्या मौत का दिन जाना जा सकता है ?
क्या मौत को टाला जा सकता है ?

इस पांडुलिपि का शोध मृत्यु के कई रहस्यों को उजागर कर सकता हैंपरंतु इस पाण्डुलिपि के साथ हमेशा से एक दुर्भाग्य जुडा रहा है कि यह पाण्डुलिपि जहां भी रही हैं वहाँ कुछ न कुछ आकस्मिक घटनाओं या मृत्यु ने दस्तक दी हैं।
अभी हाल ही में यह पाण्डुलिपि हिमाचल प्रदेश से प्राप्त हुई। एक वृद्ध व्यक्ति की मौत के बाद उनके घर से प्राप्त हुई यह पांडुलिपि। ये दुर्लभ पाण्डुलिपि कई तांत्रिको के पास से हो कर गुजरी…..लेकिन दुर्भाग्य ये रहा की ये पाण्डुलिपि जहाँ जहाँ गयी…..वहां वहां उन लोगो की बीमारी अथवा दुर्घटना के कारण मौत होती रही….तो किसी के परिवार ही उजड़ गए….इस कारण पाण्डुलिपि बदनाम हो गयी । बंजार क्षेत्र में जिस बुजुर्ग के पास से यह मिली थी वे निसंतान थे उनकी बीबी काफी समय पहले ही स्वर्गवासी हो गयी थी ।


…….
माना जाता है की ब्रिटिश काल में कुल्लू क्षेत्र में लोग बहुत कम पढ़े लिखे थे…..लेकिन कुछ एक ब्राह्मण और ठाकुर ही थोडा बहुत अक्षर ज्ञान रखते थे…..सन 1835में इस अनोखी पाण्डुलिपि की प्रतियां बनायीं गई थी….लेकिन वो भी वैसी ही निकली….

No comments:

Post a Comment

Bharat mein Sanskrit Gurukul kaafi mahatvapurn

Bharat mein Sanskrit Gurukul kaafi mahatvapurn hain, kyunki yeh paramparik Sanskrit shikshan aur Hindu dharmik sanskriti ko sambhalne aur a...