Tuesday, November 22, 2016

Krishna radha

जब रंग-बिरंगी तितलियों से सजे बालकृष्ण पड़े उलझन में....

राम-श्याम (बलराम जी और श्रीकृष्ण) दोनों आकर द्वारके बाहर खड़े ही हुए थे कि एक तितली कहीं से उड़ती आयी और दाऊ की अलकों पर बैठ गयी।

कन्हाई यह कैसे सहन करले कि यह क्षुद्र प्राणी उसके अग्रज के सिर पर ही बैठे; किन्तु तितली को हटाने के लिए हाथ बढ़ाया तो वह अलकों से उड़कर कन्हाई के  दाहिने हाथ की नन्हीं मध्यमा अँगुली पर ही आ बैठी।

इतनी सुकुमार, इतनी अरुण अँगुली- तितली को बैठने के लिए इससे अधिक मृदुल, सुन्दर सुरभित कुसुम भला कहाँ मिलने वाला है।

अब श्याम उलझन में पड़ गया है, वह अपनी अँगुली पर बैठी छोटी पीली तितली का क्या करे?

बड़े भाई की और हाथ बढ़ाकर दिखलाता है कि दादा इसे भगा दे यहाँ से।

दाऊ का काम- इनका स्वभाव तो श्याम के समीप से प्राणियों को भगाना नहीं है, ये तो अपने छोटे भाई तक प्राणियों को पहुँचाने वाले हैं।

तितली को भगाना तो दूर रहा, अनुज की अँगुली पर बैठा यह नन्हा प्राणी उन्हें बहुत प्रिय लगा है, ये तो ताली बजाकर सिर हिलाकर हँसने लगे हैं।

कन्हाई को अभी अपनी अँगुली और अँगुली पर बैठी तितली की चिन्ता है, वह इसे किसी प्रकार हटाने की धुन में हैं।

दाऊ दादा नहीं हटाता तो भद्र हटा दे, वह (कन्हाई) भद्र के समीप वैसे ही हाथ फैलाये, उस पर तितली लिये जाता है; किन्तु भद्र भी ताली बजाकर प्रसन्न होता है, वह तो नाचने ही लगता है।

ये सब सखा एक से हैं, सब ऐसे ही नाचेंगे।

कन्हाई उलझन में है और कोई उसकी अँगुली पर से तितली को भगाता नहीं।
यह तितली तो अँगुली पर ऐसी जमी बैठी है कि तनिक पंख भी नहीं हिलाती।

वर्षा बीत चुकी है, धुला स्वच्छ गगन, स्वच्छ धरा और शरद के प्रारम्भ में जब सर्वत्र भूमि हरित शृंगार किये है, तृणों में भी नन्हें पुष्प मुस्कराने लगे हैं, तितलियों का तो यह महोत्सव पर्व है।

वे एक पुष्प से उड़ती हैं और दूसरे पुष्प पर जा बैठती हैं।
नीली-पीली-काली-लाल रंग-बिरंगी छोटी-बड़ी तितलियों का समूह उड़ता, नाचता फिर रहा है सब कहीं; किन्तु भाग्यवान है यह तितली, आज सम्भवतः इसके जीवन में महापुण्य का सूर्योदय हुआ है।

सबेरे-सबेरे नन्दद्वार की ओर उड़ती निकली और तभी नन्द-भवन से निकले ढेर-सारे बालक।

अतिशय सुकुमार, परम सुन्दर गोरे-साँवले, कुछ मोटे-कुछ पतले छोटे बालक- ये हँसते, खिल-खिलाते, ऐसे मनोरम पुष्प तितली को भला और कहाँ मिलने थे।

सब अभी कलेऊ करके निकले हैं, डेढ़ से तीन वर्ष की वय के बालक- कुछ दिगम्बर हैं, कुछ की कटि में कछनियाँ हैं रंग-बिरंगी।

सबके नेत्र अज्जन-रञ्जित हैं  सबकी अलकें तैल-सिञ्चित हैं।
सबके भाल पर कज्जल-बिन्दु है, सबके चरण, भुजाएँ, कण्ठ, कटि-नूपुर, कंकण, मुक्तामाल, किंकिणी से आभूषित हैं, अभी सबके शरीर स्वच्छ, सुचिक्कन हैं।

इतने खिले सचल पुष्प- तितली उड़ती आयी और दाऊ की अलकों पर बैठ गयी।

श्याम ने उसकी ओर हाथ बढ़ाया तो वह अलक से उड़कर उसकी अँगुली पर आ बैठी।

अलकों में सुरभि थी तो अँगुली में सुरभि-सुरंग दोनों हैं, वह जमकर बैठ गयी है अँगुली पर।

लेकिन कोई इतने उत्तम सिंहासन पर जमकर बैठे- वहाँ से हटने का नाम ही न ले तो उसके सजातीय जनों को, सहचरों को, सहधर्मियों को ईर्ष्या नहीं होगी?

दूसरी भी तो ढेरों तितलियाँ हैं, वही क्यों इधर उधर भटकती फिरें?

तितलियों का एक समुदाय ही उड़ता आ गया, छोटी-बड़ी, काली-पीली-श्वेत-नीली-लाल अनेक रंगों की तितलियाँ और वे उड़ती आयीं, लगभग एक साथ आयीं और बालकों की अलकों पर, स्कन्धों पर, भुजाओं पर अँगुलियों तक पर बैठ गयीं।

कन्हाई अब चौंका, बालक भी चौंके।

अभी तक श्याम की अँगुली पर ही एक तितली बैठी थी, अब तो उसकी अलकों पर, स्कन्ध पर, भुजाओं पर भी अनेक रंगों की तितलियाँ आ बैठी हैं।

उसके अंगों पर ये बैठी रहतीं तो भी एक बात है; किन्तु ये तो उसके दादा के अंगों पर, नन्हें तोक के अंगों पर, सब सखाओं के अंगों पर आकर बैठ गयी हैं।

श्याम को तो यह नहीं रुचा, किन्तु वह इन सबको यहाँ से कैसे भगावे।

बालक हाथ बढ़ाते हैं अपने या दूसरे के अंग पर से तितलियों को भगाने के लिए तो वे उड़कर इनके ही कर या कन्धे पर बैठ जाती हैं।

इन्हें जैसे तनिक भी भय नहीं है, इनको भय हो या न हो, नन्हें बालक इनसे संकुचित होने लगे हैं।

सबने अपना नाचना-कूदना बन्द कर दिया है और इस नवीन उलझन में पड़ गये हैं।

‘मैया! मैया री!’ कन्हाई ने पुकार की।

अब मैया ही आवे तो इन नन्हें प्राणियों को सबके अंगों परसे हटावे।

‘अरे क्या है?’

एक साथ मैया यशोदा, माँ रोहिणी और प्राय: वे सब गोपियाँ, दासियाँ जो नन्द-भवन में थीं, घबड़ाकर बाहर दौड़ आयीं, उनका नीलमणि ऐसे क्यों पुकारता है?

द्वार पर आकर तो मैया ठगी खड़ी रह गयी।

बालकों के अंगों पर बैठी ये ढेरों तितलियाँ-अद्भुत शोभा है यह, और कन्हाई मैया की ओर दौड़ते-दौड़ते ठिठककर खड़ा हो गया है।

यह अच्छी उलझन है- ये तितलियाँ तो इतनी ढीठ हैं कि उसकी मैया और माँ के सिरों, कन्धों पर भी जा चढ़ी हैं, वहाँ भी जमकर बैठने जा पहुँची हैं,  

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