Thursday, February 1, 2024

सनातन धर्म में आचरण के नियम

 

सनातन धर्म में आचरण के नियम

 

सनातन धर्म में आचरण के नियम जिनका प्रतिदिन जीवन में पालन करना चाहिए। इसमें यम और नियम हैं। यह सनातन धर्म का अनुशासन है। इसका पालन करने वाला जीवन में हमेशा सुखी और शक्तिशाली बना रहता है।

       यम-

1.अहिंसा- किसी भी जीवित प्राणी को मन, वचन या कर्म से दुख या हानि नहीं पहुंचाना। जैसे हम स्वयं से प्रेम करते हैं, वैसे ही हमें दूसरों को भी प्रेम और आदर देना चाहिए।

लाभ- किसी के भी प्रति अहिंसा का भाव रखने से सकारात्मक का भाव हमारे अन्दर बनता है, यदि प्रत्येक व्यक्ति ऐसे अहिंसा का भाव सबके प्रति रखेंगे तो सबका कल्याण होगा।

2.सत्य- मन, वचन और कर्म से सत्यनिष्ठ रहना,हमेशा सत्य का पालन करना।

लाभ- सदा सत्य बोलने से व्यक्ति की प्रतिष्ठा बनी रहती है। सत्य बोलने से व्यक्ति का आत्म विश्वास बढ़ता है। और वो किसी भी प्रकार की समस्या में नहीं उलझता हैं ।

 

3.अस्तेय- चोरी नहीं करना। किसी भी विचार और वस्तु की चोरी नहीं करना ही अस्तेय है। किसी के समान या वस्तु की चोरी किसी भी किमत पर नहीं करनी चाहिए  । गलत तरीकों से स्वयं का लाभ न करें।

लाभ- आप और आपका स्वभाव सिर्फ आपका है। व्यक्ति जितना परिश्रमी बनेगा उतना ही उसका व्यक्तित्व अच्छा और शुद्ध बनेगा।

4.ब्रह्मचर्य- ब्रह्मचर्य के दो अर्थ है- ईश्वर का ध्यान और यौन ऊर्जा का संरक्षण। ब्रह्मचर्य में रहकर व्यक्ति को विवाह से पहले अपनी पूरी शक्ति अध्ययन एवं प्रशिक्षण में लगाना चाहिए।  ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए अनेक बातों का ध्यान रखा जाता है- जैसे अभद्र वार्ता एवं मजाक, अश्लील चित्र एवं चलचित्र के देखने पर प्रतिबंध। स्त्री और पुरुष को आपस में बातचीत करते समय मर्यादित ढंग से रहना चाहिए। इसी से ब्रह्मचर्य बना रहता है।

लाभ- यौन शक्ति ही शरीर की उर्जा होती है। इस शक्ति का जितना संचय (संरक्षण) होता है व्यक्ति उतना शारीरिक ,मानसिक और अध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली और ऊर्जावान हो जाता है। 

5.क्षमा- हम दूसरों के प्रति धैर्य एवं करुणा रखे एवं उन्हें समझने की कोशिश करें। सबके प्रति सहनशील रहें, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति परिस्‍थिति के समस्या के कारण व्यवहार करता है।

लाभ- परिवार, समाज में आपका सम्मान बढ़ेगा। लोगों को आप समझने का समय देंगे तो लोग भी आपको समझने लगेंगे।

 

6.धृति - स्थिरता, चरित्र की दृढ़ता एवं ताकत। जीवन में जो भी क्षेत्र हम चुनते हैं, उसमें उन्नति एवं विकास के लिए यह जरूरी है कि निरंतर कोशिश करते रहें एवं स्थिर रहें। जीवन में लक्ष्य होना जरूरी है तभी स्थिरता आती है। जिसके पास लक्ष्य नहीं वो व्यक्ति जीवन समाप्त कर देता है।

लाभ- चरित्र की दृढ़ता से शरीर और मन में स्थि‍रता आती है। कोई भी दृढ़ व्यक्ति लक्ष्य को भेदने में सक्षम रहता है। इस स्थिरता से जीवन के सभी संकटों से मुक्त हुआ जा सकता हैं.   

7.दया- इसे करुणा भी कहते है। जो लोग यह कहते हैं कि दया ही दुख का कारण है वे दया के अर्थ और महत्व को नहीं समझते। जीवन में आध्यात्मिक विकास के लिए ये अति आवश्यक गुण है। 

लाभ- जिस व्यक्ति में सभी प्राणियों के प्रति दया भाव है वह स्वयं के प्रति भी दया से भरा हुआ है। इसी गुण से भगवान प्रसन्न होते हैं।  

8.आर्जव- सरलता - दूसरों को  धोखा (छलना) नहीं देना ही सरलता है। अपने प्रति एवं दूसरों के प्रति ईमानदार बनके रहना चाहिए।

लाभ- छल और धोके से प्राप्त धन, पद या प्रतिष्ठा कुछ समय तक ही रहती है।

9.मिताहार- भोजन का संयम अर्थात सही रूप से लेना ही मिताहार है। हम जीने के लिए खाएं न कि खाने के लिए जिएं। सभी तरह का व्यसन त्यागकर एक स्वच्छ भोजन का चयन कर उचित समय पर खाना खाएं। स्वस्थ रहकर लंबी उम्र पाना चाहते हैं तो मिताहार को अपनाएं।

लाभ- अच्छा आहार हमारे शरीर को स्वस्थ बनाकर ऊर्जा और स्फूति प्रदान करता है। अन्न ही अमृत है।

10.शौच- आंतरिक एवं बाहरी पवित्रता और स्वच्छता। हम अपने शरीर एवं उसके वातावरण को पूर्ण रूप से स्वच्छ रखें।

लाभ- वातावरण, शरीर और मन की स्वच्छता एवं व्यवस्था का हमारे अंतर्मन पर सात्विक प्रभाव पड़ता है। इससे स्वच्छता सकारात्मक और दिव्यता आती है। 

 

नियम

1.ह्री- पश्चात्ताप, अपने बुरे कर्मों के प्रति पश्चाताप होना जरूरी है। यदि आप में पश्चाताप की भावना नहीं है तो आप अपनी बुराइयों को बढ़ा रहे हैं। विनम्र रहना एवं अपने द्वारा की गई गलती और भूल अव्यवहार के प्रति पश्चाताप करना जरूरी है,

लाभ- पश्चाताप हमें अवसाद और तनाव से बचाता है तथा हमें फिर से सही बल प्रदान करता है। जिसका नुकसान किया है उसके सामने और मंदिर, माता-पिता या स्वयं के समक्ष खड़े होकर भूल को स्वीकारने से मन और शरीर हल्का हो जाता है।

 

2.संतोष- संतोष रखना और कृतज्ञता से जीवन जीना ही संतोष है। जो आपके पास है उसका सदुपयोग और जो अपके पास नहीं है, उसका शोक नहीं करना ही संतोष है। अर्थात जो है उसी से संतुष्ट और सुखी रहकर उसका आनंद लेना।

लाभ- यदि आप दूसरों के पास जो है उसे देखर और उसके पाने की लालसा में रहेंगे तो सदा दुखी ही रहेगें बल्कि होना यह चाहिए कि हमारे पास जो है उसके होने का आनंद कैसे मनाएं या उसका सदुपयोग कैसे करें।

4.दान- आपके पास जो भी है वह ईश्वर की देन है। यदि आप यह समझते हैं कि यह तो मेरे प्रयासों से हुआ है तो आप में घमंड का संचार होगा। ईश्वर की देन और परिश्रम के फल के हिस्से को व्यर्थ न जाने दें। इसे आप मंदिर, धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्थाओं में दान कर सकते हैं

लाभ- दान किसे करें और दान का महत्व क्या है यह जरूर जानें। दान पुण्य करने से मन में संतोष, सुख और संतुलन का संचार होता है।

4.आस्तिकता- वेदों में आस्था रखने वाले को आस्तिक कहते हैं। माता-पिता, गुरु और ईश्वर में निष्ठा एवं विश्वास रखना भी आस्तिकता है।

लाभ- आस्तिकता से मन और मस्तिष्क में जहां समारात्मकता बढ़ती हैं वहीं हमारी हर तरह की मांग की पूर्ति भी होती है। अस्तित्व या ईश्वर से जो भी मांगा जाता है वह तुरंत ही मिलता है।

5.ईश्वर प्रार्थना- बहुत से लोग पूजा-पाठ करते हैं, लेकिन सनातन धर्म में ईश्वर या देवी-देवता के लिए संध्यावंदन करने का निर्देश है। संध्यावंदन में प्रार्थना, स्तुति या ध्यान किया जाता है।

लाभ- आंख बंद कर ईश्वर या देवी देवता का ध्यान करने से व्यक्ति उस शक्ति से जुड़ जाता है।

6.सिद्धांत श्रवण- निरंतर वेद, उपनिषद या गीता का श्रवण करना। वेद का सार उपनिषद और उपनिषद का सार गीता है। मन एवं बुद्धि को पवित्र तथा समारात्मक बनाने के लिए साधु-संतों एवं ज्ञानीजनों की संगत में वेदों का अध्ययन एक शक्तिशाली माध्यम है।

 

लाभ- जिस तरह शरीर के लिए पौ‍ष्टिक आहार की जरूरत होती है उसी तरह दिमाग के लिए समारात्मक बात, किताब और दृष्य की आवश्यकता होती है। आध्यात्मिक वातावरण से हमें यह सब प्राप्त होता है। 

7.मति- हमारे धर्मग्रंथ और धर्म गुरुओं द्वारा सिखाई गई नित्य साधना का पालन करना। एक प्रामाणिक गुरु के मार्गदर्शन से पुरुषार्थ करके अपनी इच्छा शक्ति एवं बुद्धि को आध्यात्मिक बनाना।

लाभ- संसार में रहें या संन्यास में निरंतर अच्छी बातों का अनुसरण करना जरूरी है

8.व्रत- अतिभोजन, मांस एवं नशीली पदार्थों का सेवन नहीं करना, अवैध यौन संबंध, जुए आदि से बचकर रहना। इसका गंभीरता से पालन करना चाहिए अन्यथा एक दिन सारी आध्यात्मिक या सांसारिक कमाई समाप्त हो जाएगी । 

लाभ- व्रत से नैतिक बल मिलता है तो आत्मविश्वास तथा दृढ़ता बढ़ती है। जीवन में सफलता अर्जित करने के लिए व्रतवान बनना जरूरी है। व्रत से शरीर स्वस्थ रहता है, मन और बुद्धि भी शक्तिशाली बने रहते हैं।

9.जप- जब दिमाग या मन में असंख्य विचारों की भरमार होने लगती है तब जप से इसको दूर किया जा सकता है। इष्ट का नाम या प्रभु स्मरण करना ही जप है। अर्थात प्रार्थना करना या ध्यान करना भी जप है।

लाभ- मंत्र ही निरंतर जपने से हजारों विचार धीरे-धीरे लुप्त हो जाते हैं। जप से मन  शुद्ध हो जाता है। 

10.तप- कष्टों को सहना तप है। सही कार्यों को करते हुए जो समस्या आये उसको सह कर आगे बढ़ते रहना ही तप है। व्रत जब कठीन बन जाता है तो तप का रूप धारण कर लेता है। निरंतर किसी कार्य के पीछे पड़े रहना भी तप है। निरंतर अभ्यास करना भी तप है। त्याग करना भी तप है। सभी इंद्रियों को कंट्रोल में रखकर अपने अनुसार चलापा भी तप है।

लाभ- जीवन में कैसी भी परिस्थिति आपके सामने हो, तब आप संतुलन नहीं खोते, तप  से सभी तरह की परिस्थिति पर विजय प्रा‍प्त किया जा सकता हैं।

 

जो व्यक्ति यम और नियम का पालन करता है वह जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है। इसलिए सभी को इनका पालन करना चाहिए ।

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