भाति मे भारतम्. - ( संस्कृतकाव्यम्)
निर्जरैर्योगिभिर्भोगिभिश्चार्थितं भूतले भाति मेनारतं भारतम् ॥ मानव, दानव, सज्जन, दुर्जन, धनवान्, निर्धन, बलवान्. निर्बल, देवता, योगी तथा भोगी - सभी जिसे चाहते ऐसा मेरा भारत भूमण्डल मे अनवरत सुशोभित हो रहा है। anagerनोपासनापद्धति- कोडनानीवसंस्कारवत्यादिषु ।
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