Thursday, April 27, 2023

।। प्रातः स्मरण मंत्र- प्रतिदिन पढने वाले श्लोक ।।D

 

    ।। प्रातः स्मरण मंत्र- प्रतिदिन पढने वाले श्लोक ।।

 

                 प्रात: हाथ(कर)- दर्शनम्

          कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती।

          करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम्॥

अर्थ- हाथ के अग्र भाग में लक्ष्मी, मध्य में सरस्वती तथा मूल में गोविन्द (परमात्मा ) का वास होता है। प्रातः काल में हाथों का दर्शन करें ।

 

                            पृथ्वी क्षमा प्रार्थना

समुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मंडिते।

विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं पाद स्पर्शं क्षमश्वमेव॥

 

 

अर्थ- समुद्ररूपी वस्त्रोवाली, जिसने पर्वतों को धारण किया हुआ है और विष्णु भगवान की पत्नी हे पृथ्वी देवी ! तुम्हे नमस्कार करता हूँ ! तुम्हे मेरे पैरों का स्पर्श होता है इसलिए क्षमायाचना करता हूँ।

 

      त्रिदेवों के साथ नवग्रह स्मरण

ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानु: शशी भूमिसुतो बुधश्च।

गुरुश्च शुक्र: शनिराहुकेतव: कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥

 

अर्थ- है ब्रह्मा, विष्णु, शिव (त्रिपुरासुर का अंत करने वाला, श्री शिव), सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु सभी देवता मेरे दिन को मंगलमय करें।

 

                               स्नान मन्त्र

गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।

नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु॥

 

अर्थ- हे गंगा, यमुना,गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु, कावेरी नदियों ! (मेरे स्नानकरने के) इस जल में (आप सभी) पधारिये ।

 

                           सूर्यनमस्कार

ॐ सूर्य आत्मा जगतस्तस्युषश्च

आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने।

दीर्घमायुर्बलं वीर्यं व्याधि शोक विनाशनम्

सूर्य पादोदकं तीर्थ जठरे धारयाम्यहम्॥

 

ॐ मित्राय नम:

ॐ रवये नम:

ॐ सूर्याय नम:

ॐ भानवे नम:

ॐ खगाय नम:

ॐ पूष्णे नम:

ॐ हिरण्यगर्भाय नम:

ॐ मरीचये नम:

ॐ आदित्याय नम:

ॐ सवित्रे नम:

ॐ अर्काय नम:

ॐ भास्कराय नम:

ॐ श्री सवितृ सूर्यनारायणाय नम:

 

आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीदमम् भास्कर।

दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते॥

 

                          

 

 

  दीप दर्शन

शुभं करोति कल्याणं आरोग्यं धनसम्पदः।

शत्रु-बुद्धि-विनाशाय दीपज्योतिर्नमोस्तुते ॥

अर्थ- शुभ एवं कल्याणकारी, स्वास्थ्य एवं धनसंपदा प्रदान करनेवाली तथा शत्रुबुद्धि का नाश करनेवाली, हे दीपज्योति, मैं तुम्हें नमस्कार करता हूं ।

 

दीपज्योतिः परब्रह्म दीपज्योतिर्जनार्दनः ।

दीपो हरतु मे पापं दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते ॥

अर्थ- दीप का प्रकाश परब्रह्म स्वरूप है । दीप की ज्योति जगत् का दुख दूर करनेवाला परमेश्वर है । दीप मेरे पाप दूर करे । हे दीपज्योति, आपको नमस्कार करता हूं ।

 

                           गणपति ध्यान

विघ्नेश्वराय वरदाय शुभप्रियाय।

लम्बोदराय विकटाय गजाननाय॥

नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय।

गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥

 

            सरस्वतीवंदना

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।

या वींणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपदमासना॥

या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।

सा माम पातु सरस्वती भगवती

निःशेषजाड्याऽपहा॥

 

शिवस्तुति

कर्पूर गौरम करुणावतारं,

संसार सारं भुजगेन्द्र हारं।

सदा वसंतं हृदयार विन्दे,

भवं भवानी सहितं नमामि॥

देवी ध्यान

सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।

शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥

 

अर्थ- हे नारायणी! तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगल मयी हो। कल्याण दायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थो को सिद्ध करने वाली, शरणागत वत्सला, तीन नेत्रों वाली एवं गौरी हो। तुम्हें नमस्कार है।

 

श्रीराम वंदना

लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।

कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये॥

 

विष्णुस्तुति

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं

विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम्।

लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्

वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥

 

                           श्रीकृष्णस्तुति

कस्तुरी तिलकम ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम।

नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले, वेणु करे कंकणम॥

सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम, कंठे च मुक्तावलि।

गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूडामणी॥

                   

एक श्लोकी रामायण

आदौ रामतपोवनादि गमनं हत्वा मृगं कांचनम्।

वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीवसम्भाषणम्॥

बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनम्।

पश्चाद्रावण कुम्भकर्णहननं एतद्घि श्री रामायणम्॥

 

                              हनुमान वंदना

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम्‌।

दनुजवनकृषानुम् ज्ञानिनांग्रगणयम्‌।

सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम्‌।

रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥

 

मनोजवं मारुततुल्यवेगम जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।

वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणम् प्रपद्ये॥

 

                              स्वस्तिवाचन

 

ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवाः

स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।

स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्ट्टनेमिः

स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥

 

                                   शांतिपाठ

ऊँ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्‌ पूर्णमुदच्यते।

पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥

 

ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष (गुँ) शान्ति:,

पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।

वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,

सर्व (गुँ) शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥

 

॥ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥

 

 

No comments:

Post a Comment

इन हिंदी कहावतों के स्थान पर संस्कृत की सूक्ति बोलें।

 इन हिंदी कहावतों के स्थान पर संस्कृत की सूक्ति बोलें। 1. अपनी डफली अपना राग - मुण्डे मुण्डे मतिर्भिन्ना । 2. का बरखा जब कृषि सुखाने - पयो ग...