प्रमा
भारतीय दर्शन में प्रमाण उसे कहते हैं जो सत्य का ज्ञान कराने में सहायता करे। अर्थात् वह बात जिससे किसी दूसरी बात का यथार्थ ज्ञान हो। प्रमाण न्याय दर्शन का मुख्य विषय है।
‘यथार्थ अनुभव’ को ‘प्रमा’ कहते हैं। ‘स्मृति’ तथा ‘संशय’ / doubt आदि को ‘प्रमा’ नहीं मानते। अतएव अज्ञात तत्त्व के अर्थ ज्ञान को ‘प्रमा’ कहा है। इस अनधिगत अर्थ के ज्ञान को उत्पन्न करने वाला कारण ‘प्रमाण’ है। इसी को शास्त्रदीपिका में कहा है —
कारणदोषबाधकज्ञानरहितम् अगृहीतग्राहि ज्ञानं प्रमाणम् ।
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