Sunday, August 13, 2023

उपनिषदों के स्त्रोत और उनकी संख्या‘मुक्तिकोपनिषद’ में,(श्लोक संख्या ३० से ३९ तक) १०८ उपनिषदों की सूची दी गयी है। इन १०८ उपनिषदों में से—

 

 

उपनिषदों के स्त्रोत और उनकी संख्या


प्रायः उपनिषद वेदों के मन्त्र भाग, ब्राह्मण ग्रन्थ, आरण्यक ग्रन्थ आदि से सम्बन्धित हैं। कतिपय उत्तर वैदिककाल के ॠषियों द्वारा अस्तित्व में आये हैं, जिनका स्वतन्त्र अस्तित्व है।

मुक्तिकोपनिषद’ में,(श्लोक संख्या ३० से ३९ तक) १०८ उपनिषदों की सूची दी गयी है। इन १०८ उपनिषदों में से—

ॠग्वेद’ के १० उपनिषद है।
शुक्ल यजुर्वेद‘ के १९ उपनिषद हैं।
कृष्ण यजुर्वेद’ के ३२ उपनिषद हैं।
सामवेद’ के १६ उपनिषद हैं।
अथर्ववेद’ के ३१ उपनिषद हैं।


ॠग्वेदके १० उपनिषद:- ऐतरेयोपनिषद, आत्मबोधोपनिषद, कौषीतकि ब्राह्मणोपनिषद, निर्वाणोपनिषद, नादबिन्दूपनिषद, राधोपनिषद, बहवृचोपनिषद, आदि।

शुक्ल यजुर्वेद‘ के १९ उपनिषद हैं:- बृहदारण्यकोपनिषद, अध्यात्मोपनिषद, भिक्षुकोपनिषद, हंसोपनिषद, मन्त्रिकोपनिषद, जाबालोपनिषद, निरालम्बोपनिषद, परमहंसोपनिषद, पैंगलोपनिषद, त्रिशिखिब्राह्मणोपनिषद, अद्वयतारकोपनिषद (शाम्भवी महामुद्रा), तुरीयातीतोपनिषद,

कृष्ण यजुर्वेद’ के ३२ उपनिषद हैं:-
दक्षिणामूर्ति उपनिषद, कठोपनिषद, ध्यानबिन्दु उपनिषद, ब्रह्म उपनिषद, कठरुद्रोपनिषद, क्षुरिकोपनिषद, श्वेताश्वतरोपनिषद, शारीरिकोपनिषद, नारायणोपनिषद, रुद्रहृदयोपनिषद, भृगुवल्ली, चाक्षुषोनिषद, तैत्तिरीयोपनिषद, कलिसन्तरणोपनिषद, कैवल्योपनिषद, आदि।

सामवेदके १६ उपनिषद हैं:-
आरूणिकोपनिषद, केनोपनिषद, छान्दोग्य उपनिषद, रुद्राक्षजाबालोपनिषद, सावित्र्युपनिषद, वज्रसूचिकोपनिषद, कुण्डिकोपनिषद, जाबाल्युपनिषद, महोपनिषद, योगचूडामण्युपनिषद, आदि।

अथर्ववेदके ३१ उपनिषद हैं:-
गणपति उपनिषद, अथर्वशिर उपनिषद, मैत्रेय्युग्पनिषद, गोपालपूर्वतापनीयोपनिषद,
कृष्ण उपनिषद, माण्डूक्योपनिषद, महावाक्योपनिषद, नारदपरिव्राजकोपनिषद,
नृसिंहोत्तरतापनीयोपनिषद, परब्रह्मोपनिषद, प्रश्नोपनिषद, परमहंस परिव्राजक उपनिषद,
श्रीरामपूर्वतापनीयोपनिषद, सूर्योपनिषद शाण्डिल्योपनिषद, शरभ उपनिषद, सीता उपनिषद, आदि।

मुक्तिकोपनिषद’ में चारों वेदों की शाखाओं की संख्या भी दी है और प्रत्येक शाखा का एक-एक उपनिषद होना बताया है। इस प्रकार चारों वेदों की अनेक शाखाएं है और उन शाखाओं की उपनिषदें भी अनेक हैं।
विद्वानों ने ॠग्वेद की इक्कीस शाखाएं,
यजुर्वेद की एक सौ नौ शाखाएं,
सामवेद की एक हज़ार शाखाएं तथा
अथर्ववेद की पचास हज़ार शाखाओं का उल्लेख किया हैं।
इस दृष्टि से तो सभी वेदों की शाखाओं के अनुसार १,१८० उपनिषदें होनी चाहिए, परन्तु प्रायः १०८ उपनिषदों का उल्लेख प्राप्त होता है। इनमें भी कुछ उपनिषद तो अत्यन्त लघु हैं।
इनमें से प्रायः १३ उपनिषदों को मुख्य उपनिषद् कहा जाता है।
मुख्य उपनिषद, वे उपनिषद हैं जो प्राचीनतम हैं और जिनका पठन-पाठन अधिक हुआ है।

केवल दस उपनिषदों को मुख्य उपनिषद की श्रेणी में रखते थे, किन्तु अब अधिकांश विद्वान १३ उपनिषदों को मुख्य उपनिषद मानते हैं-

(
१) ईशावास्योपनिषद्,
(
२) केनोपनिषद्
(
३) कठोपनिषद्
(
४) प्रश्नोपनिषद्
(
५) मुण्डकोपनिषद्
(
६) माण्डूक्योपनिषद्
(
७) तैत्तरीयोपनिषद्
(
८) ऐतरेयोपनिषद्
(
९) छान्दोग्योपनिषद्
(
१०) बृहदारण्यकोपनिषद्
(
११) श्वेताश्वतरोपनिषद्
(
१२) कौशितकी उपनिषद्
(
१३) मैत्रायणी उपनिषद्
आदि शंकराचार्य ने इनमें से १० उपनिषदों पर टीका लिखी थी। इनमें माण्डूक्योपनिषद सबसे छोटा है (१२ श्लोक) और बृहदारण्यक सबसे बड़ा।

जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने १० पर अपना भाष्य दिया है-
(
१) ईश, (२) ऐतरेय (३) कठ (४) केन (५) छान्दोग्य (६) प्रश्न (७) तैत्तिरीय (८) बृहदारण्यक (९) मांडूक्य और (१०) मुण्डक।

उन्होने निम्न तीन को प्रमाण कोटि में रखा है-
(
१) श्वेताश्वतर (२) कौषीतकि तथा (३) मैत्रायणी।

अन्य उपनिषद् तत्तद् देवता विषयक होने के कारण 'तांत्रिक' माने जाते हैं। ऐसे उपनिषदों में शैव, शाक्त, वैष्णव तथा योग विषयक उपनिषदों की प्रधान गणना है।
उपनिषदों का विभाजन प्रतिपाद्य विषय की दृष्टि से इस प्रकार किया है:

१. गद्यात्मक उपनिषद्
१. ऐतरेय, २. केन, ३. छान्दोग्य, ४. तैत्तिरीय, ५. बृहदारण्यक तथा ६. कौषीतकि;
इनका गद्य ब्राह्मणों के गद्य के समान सरल, लघुकाय तथा प्राचीन है।

२.पद्यात्मक उपनिषद्
१.ईश, २.कठ, ३. श्वेताश्वतर तथा नारायण
इनका पद्य वैदिक मंत्रों के अनुरूप सरल, प्राचीन तथा सुबोध है।

३.अवान्तर गद्योपनिषद्
१.प्रश्न, २.मैत्री (मैत्रायणी) तथा ३.माण्डूक्य
४.आथर्वण (अर्थात् कर्मकाण्डी) उपनिषद्
अन्य अवांतरकालीन उपनिषदों की गणना इस श्रेणी में की जाती है।

भाषा तथा उपनिषदों के विकासक्रम के आधार पर
भाषा तथा उपनिषदों के विकास क्रम की दृष्टि से डॉ॰ डासन ने उनका विभाजन इन स्तरों में किया है:

प्राचीनतम उपनिषद
१. ईश, २. ऐतरेय, ३. छान्दोग्य, ४. प्रश्न, ५. तैत्तिरीय, ६. बृहदारण्यक, ७. माण्डूक्य और ८. मुण्डक।

प्राचीन
१. कठ, २. केन

अवान्तरकालीन
१. कौषीतकि, २. मैत्री (मैत्राणयी) तथा ३. श्वेताश्वतर।

उपनिषदों के प्रतिपाद्य विषय

उपनिषदों के रचियता ॠषि-मुनियों ने अपनी अनुभुतियों के सत्य से जन-कल्याण की भावना को सर्वोपरि महत्त्व दिया है। उनका रचना-कौशल अत्यन्त सहज और सरल है। यह देखकर आश्चर्य होता है कि इन ॠषियों ने कैसे इतने गूढ़ विषय को, इसके विविधापूर्ण तथ्यों को, अत्यन्त थोड़े शब्दों में तथा एक अत्यन्त सहज और सशक्त भाषा में अभिव्यक्त किया है।

 

~भारतीय दर्शन की ऐसी कोई धारा नहीं है, जिसका सार तत्त्व इन उपनिषदों में विद्यमान न हो।
~
सत्य की खोज अथवा ब्रह्म की पहचान इन उपनिषदों का प्रतिपाद्य विषय है।
~
जन्म और मृत्यु से पहले और बाद में हम कहां थे और कहां जायेंगे, इस सम्पूर्ण सृष्टि का नियन्ता कौन है?
~
यह चराचर जगत किसकी इच्छा से परिचालित हो रहा है तथा हमारा उसके साथ क्या सम्बन्ध है।
इन सभी जिज्ञासाओं का शमन उपनिषदों के द्वारा ही सम्भव हो सका है।

 

१०८ उपिनषद सूची
(
१०८ उपिनषदों की यह सूची मुक्तिक उपनिषद में १:३०-३९ में दी गयी है )

ईश = शुक्ल यजुर्वेद, मुख्य उपिनषद्

केन (उपनिषद्)= सामवेद, मुख्य उपिनषद्

कठ उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, मुख्य उपिनषद्

प्रश्न = अथर्व वेद, मुख्य उपिनषद्

मुण्डक = अथर्व वेद, मुख्य उपिनषद्

माण्डुक्य = अथर्व वेद, मुख्य उपिनषद्

तैतरीय = कृष्ण यजुर्वेद, मुख्य उपिनषद्

ऐतरेय = ऋग् वेद, मुख्य उपिनषद्

छान्दोग्य = साम वेद, मुख्य उपिनषद्

बृहदारण्यक उपनिषद (१०) = शुक्ल यजुर्वेद, मुख्य उपिनषद्

ब्रह्म = कृष्ण यजुर्वेद, संन्यास उपिनषद्

कैवल्य = कृष्ण यजुर्वेद, शैव उपिनषद्

जाबाल (यजुर्वेद) = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपिनषद्

श्वेताश्वतर = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपिनषद्

हंस = शुक्ल यजुर्वेद, योग उपिनषद्

आरुणेय = साम वेद, संन्यास उपिनषद्

गर्भ = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपिनषद्

नारायण = कृष्ण यजुर्वेद, वैष्णव उपिनषद्

परमहंस = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपिनषद्

अमृत-बिन्दु (२०) = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपिनषद्

अमृत-नाद = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपिनषद्

अथर्व-शिर = अथर्व वेद, शैव उपिनषद्

अथर्व-शिख = अथर्व वेद, शैव उपिनषद्

मैत्रायिण = साम वेद, सामान्य उपिनषद्

कौषीिताक = ऋग् वेद, सामान्य उपिनषद्

बृहज्जाबाल = अथर्व वेद, शैव उपिनषद्

नृसिंहतापनी = अथर्व वेद, वैष्णव उपिनषद्

कालाग्निरुद्र = कृष्ण यजुर्वेद, शैव उपिनषद्

मैत्रेय = साम वेद, संन्यास उपिनषद्

सुबाल (३०) = शुक्ल यजुर्वेद, सामान्य उपिनषद्

क्षुरिक = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपिनषद्

मान्त्रिक = शुक्ल यजुर्वेद, सामान्य उपिनषद्

सर्व-सार = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपिनषद्

निरालम्ब = शुक्ल यजुर्वेद, सामान्य उपिनषद्

शुक-रहस्य = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपिनषद्

वज्र-सिूच = साम वेद, सामान्य उपिनषद्

तेजो-बिन्दु = कृष्ण यजुर्वेद, संन्यास उपिनषद्

नाद-बिन्दु = ऋग् वेद, योग उपिनषद्

ध्यानिबन्दु = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपिनषद्

ब्रह्मिवद्या (४०) = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपिनषद्

योगतत्त्व = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपिनषद्

आत्मबोध = ऋग् वेद, सामान्य उपिनषद्

परिव्रात् (नारदपरिव्राजक) = अथर्व वेद, संन्यास उपिनषद्

त्रि-िषिख = शुक्ल यजुर्वेद, योग उपिनषद्

सीता = अथर्व वेद, शाक्त उपिनषद्

योगचूडामिण = साम वेद, योग उपिनषद्

निर्वाण = ऋग् वेद, संन्यास उपिनषद्

मण्डलब्राह्मण = शुक्ल यजुर्वेद, उपिनषद्

दकि्षणामूर्ति = कृष्ण यजुर्वेद, शैव उपिनषद्

शरभ (५०) = अथर्व वेद, शैव उपिनषद्

स्कन्द (त्िरपाड्िवभूिट) = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपिनषद्

महानारायण = अथर्व वेद, वैष्णव उपिनषद्

अद्वयतारक = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपिनषद्

रामरहस्य = अथर्व वेद, वैष्णव उपिनषद्

रामतापिण = अथर्व वेद, वैष्णव उपिनषद्

वासुदेव = साम वेद, वैष्णव उपिनषद्

मुद्गल = ऋग् वेद, सामान्य उपिनषद्

शाणि्डल्य = अथर्व वेद, योग उपिनषद्

पैंगल = शुक्ल यजुर्वेद, सामान्य उपिनषद्

भिक्षुक (६०) = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपिनषद्

महत् = साम वेद, सामान्य उपिनषद्

शारीरक = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपिनषद्

योगिशखा = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपिनषद्

तुरीयातीत = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपिनषद्

संन्यास = साम वेद, संन्यास उपिनषद्

परमहंस-परिव्राजक = अथर्व वेद, संन्यास उपिनषद्

अक्षमालिक = ऋग् वेद, शैव उपिनषद्

अव्यक्त = साम वेद, वैष्णव उपिनषद्

एकाक्षर = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपिनषद्

अन्नपूर्ण (७०) = अथर्व वेद, शाक्त उपिनषद्

सूर्य = अथर्व वेद, सामान्य उपिनषद्

अक्षि = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपिनषद्

अध्यात्मा = शुक्ल यजुर्वेद, सामान्य उपिनषद्

कुण्डिक = साम वेद, संन्यास उपिनषद्

सावित्री = साम वेद, सामान्य उपिनषद्

आत्मा = अथर्व वेद, सामान्य उपिनषद्

पाशुपत = अथर्व वेद, योग उपिनषद्

परब्रह्म = अथर्व वेद, संन्यास उपिनषद्

अवधूत = कृष्ण यजुर्वेद, संन्यास उपिनषद्

त्रिपुरातपिन (८०) = अथर्व वेद, शाक्त उपिनषद्

देवि = अथर्व वेद, शाक्त उपिनषद्

त्रिपुर = ऋग् वेद, शाक्त उपिनषद्

कठरुद्र = कृष्ण यजुर्वेद, संन्यास उपिनषद्

भावन = अथर्व वेद, शाक्त उपिनषद्

रुद्र-हृदय = कृष्ण यजुर्वेद, शैव उपिनषद्

योग-कुण्डिलिन = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपिनषद्

भस्म = अथर्व वेद, शैव उपिनषद्

रुद्राक्ष = साम वेद, शैव उपिनषद्

गणपित = अथर्व वेद, शैव उपिनषद्

दर्शन (९०) = साम वेद, योग उपिनषद्

तारसार = शुक्ल यजुर्वेद, वैष्णव उपिनषद्

महावाक्य = अथर्व वेद, योग उपिनषद्

पंच-ब्रह्म = कृष्ण यजुर्वेद, शैव उपिनषद्

प्राणाग्नि-होत्र = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपिनषद्

गोपाल-तपिण = अथर्व वेद, वैष्णव उपिनषद्

कृष्ण = अथर्व वेद, वैष्णव उपिनषद्

याज्ञवल्क्य = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपिनषद्

वराह = कृष्ण यजुर्वेद, संन्यास उपिनषद्

शात्यायिन = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्

हयग्रीव (१००) = अथर्व वेद, वैष्णव उपिनषद्

दत्तात्रेय = अथर्व वेद, वैष्णव उपिनषद्

गारुड = अथर्व वेद, वैष्णव उपिनषद्

किल-सण्टारण = कृष्ण यजुर्वेद, वैष्णव उपिनषद्

जाबाल (सामवेद) = साम वेद, शैव उपिनषद्

सौभाग्य = ऋग् वेद, शाक्त उपिनषद्

सरस्वती-रहस्य = कृष्ण यजुर्वेद, शाक्त उपिनषद्

बह्वृच = ऋग् वेद, शाक्त उपिनषद्

मुक्तिक (१०८) = शुक्ल यजुर्वेद, सामान्य उपिनषद्।

उपरोक्त १०८ उपनिषदों में से

 

१९ उपिनषद् शुक्ल यजुर्वेद से हैं और उनका शान्तिपाठ पूर्णमदः से आरम्भ होता है |

३२ उपिनषद कृष्ण यजुर्वेद से हैं और उनका शान्तिपाठ सहनाववतु से आरम्भ होता है |

१६ उपिनषद् सामवेद से हैं और उनका शान्तिपाठ आप्यायन्तु से आरम्भ होता है |

३१ उपिनषद् अथर्ववेद से हैं और उनका शान्तिपाठ भद्रं कर्णेभिः से आरम्भ होता है |

१० उपिनषद् ऋग्वेद से हैं और उनका शान्तिपाठ वण्मे मनिस से आरम्भ होता है |


 

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