Sunday, August 13, 2023

(Mandukya upanishad) शंकराचार्य जी ने इस पर भाष्य लिखा है और गौड पादाचार्य जी ने कारिकाऐं लिखी हैं

 

(Mandukya upanishad)

शंकराचार्य जी ने इस पर भाष्य लिखा है और गौड पादाचार्य जी ने कारिकाऐं लिखी हैं

आत्मा चतुष्पाद है अर्थात् उसकी अभिव्यक्ति की चार अवस्थाएँ हैं जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति और तुरीय।

1. जाग्रत अवस्था की आत्मा को वैश्वानर कहते हैं, इसलिये कि इस रूप में सब नर एक योनि से दूसरी में जाते रहते हैं। इस अवस्था का जीवात्मा बहिर्मुखी होकर "सप्तांगों" तथा इंद्रियादि 19 मुखों से स्थूल अर्थात् इंद्रियग्राह्य विषयों का रस लेता है। अत: वह बहिष्प्रज्ञ है।

2. दूसरी तेजस नामक स्वप्नावस्था है जिसमें जीव अंत:प्रज्ञ होकर सप्तांगों और 19 मुर्खी से जाग्रत अवस्था की अनुभूतियों का मन के स्फुरण द्वारा बुद्धि पर पड़े हुए विभिन्न संस्कारों का शरीर के भीतर भोग करता है।

3. तीसरी अवस्था सुषुप्ति अर्थात् प्रगाढ़ निद्रा का लय हो जाता है और जीवात्मा क स्थिति आनंदमय ज्ञान स्वरूप हो जाती है। इस कारण अवस्थिति में वह सर्वेश्वर, सर्वज्ञ और अंतर्यामी एवं समस्त प्राणियों की उत्पत्ति और लय का कारण है।

4. परंतु इन तीनों अवस्थाओं के परे आत्मा का चतुर्थ पाद अर्थात् तुरीय अवस्था ही उसक सच्चा और अंतिम स्वरूप है जिसमें वह ने अंत: प्रज्ञ है, न बहिष्प्रज्ञ और न इन दोनों क संघात है, न प्रज्ञानघन है, न प्रज्ञ और न अप्रज्ञ, वरन अदृष्ट, अव्यवहार्य, अग्राह्य, अलक्षण, अचिंत्य, अव्यपदेश्य, एकात्मप्रत्ययसार, शांत, शिव और अद्वैत है जहाँ जगत्, जीव और ब्रह्म के भेद रूपी प्रपंच का अस्तित्व नहीं है (मंत्र 7)

 

यह उपनिषद अथर्ववेद के ब्रह्म भाग से संबंधित है। इस उपनिषद में ओंकार की व्याख्या तथा उसकी उपासना के फल का वर्णन किया गया है। मांडूक्य उपनिषद दस उपनिषदों में सबसे छोटा है। इस उपनिषद में कुल 12 मंत्र है। यह उपनिषद अवांतर गद्यात्मक  (संवादात्मक) भ।षा शैली में है।

मुख्य विषय-  चेतना की चार अवस्थाएं, इनका ओंकार से क्या सम्बन्ध है

मांडूक्य उपनिषद में परमात्मा के 'साकार' 'निराकार' दोनों रूपों की उपासना का वर्णन है। ब्रह्मा व आत्मा को 4 चरणों वाला बताया गया है- स्थूल, सूक्ष्म, कारण व अवयक्त। ईश्वर को 'वैश्वानर' कहा गया है। शरीर व ब्रह्मा में समानता बताई है।
ओमकार की मात्राएँ- ऊ = अ + उ + म मत्राएँ हैं।
चेतना की अवस्थाएं- चेतना की चार अवस्थाएँ हैं:
1.
जागृत     2. स्वप्न     3. सुषुप्ति    4. तुरीय

1. जागृत अवस्था- इसकी मात्रा '' से है। यह शरीर वैश्वनार' होता है। इसमें चेतना बर्हिप्रज्ञ होती है।शरीर के 7 अंग है व 19 मुख होते हैं। इसमें स्थूल 'मुक' कहलाता है।
2.
स्वप्न अवस्था- इसकी मात्रा '' होती है। इसमें शरीर तेज स्वरूप होता है। इसमें चेतना 'अन्तः प्रज्ञ' होती है। इसमें भी शरीर के 7 अंग व 19 मुख होते हैं। इस अवस्था में 'प्रतिविवान मुक' होता है।


3.
सुषुप्ति अवस्था- इसकी मात्रा '' होती है। इसमें शरीर 'प्राज्ञ' होता है। इसमें चेतना प्रज्ञ' होता है। इसमें 'चेतो मुक' होता है।
4.
तुरीय अवस्था- अदृश्य, अव्यवहार व अनित्य है। उपरोक्त तीनों का अभाव रहता है।
ओउम् से संबंध-

ओउम = '', '', '' । आकार, उकार तथा मकार से मिलकर बना है
आकार- जागृत (स्थूल विषय)
उकार - स्वप्न (सुक्ष्म विषय)
मकार - सुषुप्ति (जहां जागृत तथा स्वपन मिलते है)
अमात्रा - तुरीय (परमानंद अवस्था)

 

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