Tuesday, May 8, 2018

धनतेरस का उद्गम धनवन्तरि जी से हुआ। स्वास्थ्य,आरोग्य के देवता हैं धनवन्तरि जी

धनतेरस का उद्गम धनवन्तरि जी से हुआ।
स्वास्थ्य,आरोग्य के देवता हैं धनवन्तरि जी
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दीपावली के पांच पर्वो में धनतेरस सबसे पहला और बहुत महत्वपूर्ण पर्व है। धनतेरस के दिन से ही घर में दीपमाला से सजावट शुरू हो जाती है। आज 17 अक्‍टूबर, 2017 को त्रयोदशी तिथि प्रातः 12 बजकर 26 मिनट पर प्रारम्भ हो रही है जो 18 अक्‍टूबर, 2017 को प्रातः 8 बजे समाप्‍त होगी।

शास्त्रीय मान्यता के अनुसार सूर्योदय के बाद प्रारम्भ होने वाले प्रदोषकाल के दौरान लक्ष्मी पूजा का विशेष महत्व होता है, इस दिन माता लक्ष्मी के साथ भगवान धनवंतरी की भी पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन नया सामान बर्तन आदि खरीदने से धन लक्ष्मी के शुभागमन का मार्ग प्रशस्त होता है और घर में धनसम्पत्ति की विशेष अभिवृद्धि होती है।

कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन ही देवताओं के वैद्य धन्वन्तरि जी का भी जन्म हुआ था इसलिए इस तिथि को धनतेरस के नाम से जाना जाता है। यह बहुत कम लोगों को जानकारी होगी कि धनतेरस में 'धन' शब्द स्वास्थ्य के देवता धनवंतरी का वाचक शब्द है। यह सत्य है कि देवी लक्ष्मी धन की देवी हैं उनकी पूजा का भी आज के दिन विशेष महत्त्व है। परन्तु लक्ष्मी जी की कृपा प्राप्त करने के लिए अच्छा स्वास्थ्य और दीर्घ आयु भी तो होनी चाहिए तभी वैभव लक्ष्मी का सदुपयोग किया जा सकता है। यही कारण है कि दीपावली से दो दिन पहले धन्वंतरि त्रयोदशी के दिन धनतेरस से प्रकाशोत्सव का पर्व मनाने की परम्परा शुरु हुई है।

पौराणिक मान्यता है कि इस दिन धन्वतरि वैद्य समुद्रमंथन के समय अमृत का कलश लेकर प्रकट हुए थे। इस प्रकार धनतेरस का उद्गम धनवन्तरि जी से हुआ है जो देवताओं के वैद्य माने जाते हैं और वैद्य से स्वास्थ्य का ही हितसाधन सम्पादित होता है। अच्छे स्वास्थ्य के अभाव में नाना प्रकार के सुख विषय भोग भी निरर्थक हैं। इसलिए कहावत है कि संसार के सब धनों में संतोष ही सबसे बड़ा धन है-

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  "गोधन गजधन बाजिधन,
   और रतन धन खान।
   जब आवै सन्‍तोष धन,
   सब धन धूरि समान॥"
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धनतेरस के दिन सोना-चाँदी खरीदना शुभ माना जाता है। नए बरतन भी खरीदे जाते हैं। ऐसी भी मान्यता है कि धनतेरस की रात्रि के समय यम के लिए आटे का दीपक जलाकर घर के द्वार पर रखने से अकाल मृत्यु से रक्षा होती है।

किन्तु चिंता की बात है कि बाजारीकरण और उपभोक्तावाद के दौर ने हमें मौद्रिक धन सम्पत्ति का अन्धभक्त बना दिया है और हम भीड़ का अंधानुकरण करते हुए धनतेरस के दिन इसी लालच के कारण चाँदी के खोटे सिक्के भी खरीद लेते हैं और त्यौहार के नाम पर धनलोलुप व्यापारियों द्वारा प्रायः ठगे जाते हैं। दूसरी और प्रकाशोत्सव के प्रति नकली मिठाइयों और प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों के प्रचलन ने भी इस त्यौहार को स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत संवेदनशील बना दिया है। यही कारण है कि कोर्ट को दीपावली के अवसर पर पटाखों की बिक्री पर रोक लगाने की जरूरत आ पड़ती है। आजकल दिवाली के मौके पर टीवी, गाडी, फर्नीचर आदि खरीदना भी बड़ा फैशन बन गया है जिसे इस त्यौहार पर बाजारवाद का प्रभाव ही माना जा सकता है। पर दीपावली के मौके पर हमें इतना ध्यान तो रखना ही चाहिए कि स्वास्थ्य और पर्यावरण की रक्षा के लिए नकली मिठाइयों और हानिकारक पटाखों से बचें।

धनतेरस का पर्व  मानव मात्र को यह सन्देश भी देता आया है कि इस संसार में जो स्वस्थ है वही सुखी भी है। सुखी भी वही है जिसके पास संतोष है।संतोषी व्यक्ति ही सबसे बड़ा धनवान है। वास्तव में भगवान धन्वन्तरी जी स्वास्थ्य,आरोग्य और  चिकित्सा के देवता हैं। यह भी सुपरीक्षित वैज्ञानिक तथ्य है कि निरोगी स्वास्थ्य के लिए संतोष सबसे बड़ा धन है। इसलिए हमें स्वास्थ्य रुपी धन को रुपये पैसे के मूल्य से नहीं तोलना चाहिए। एक प्रसिद्ध उक्ति है-
"चाह गई चिंता नशी, मनवा वेपरवाह
जिसको कछु ना चाहिए, सो ही शाहंशाह।"

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