माँ गंगा के पौराणिक इतिहास एवं महत्ता
माँ गंगा जयंती :
पौराणिक कथा के अनुसार राजा सगर ने #तपस्या करके साठ हजार पुत्रों की प्राप्ति की। एक दिन राजा #सगर ने देवलोक पर विजय प्राप्त करने के लिये एक #यज्ञ किया। यज्ञ के लिये #घोड़ा आवश्यक था जो #ईर्ष्यालु इंद्र ने चुरा लिया था।
सगर ने अपने सारे पुत्रों को घोड़े की खोज में भेज दिया अंत में उन्हें घोड़ा #पाताल लोक में मिला जो एक #ऋषि के समीप बँधा था। सगर के पुत्रों ने यह सोच कर कि ऋषि ही घोड़े के #गायब होने की वजह हैं उन्होंने ऋषि का अपमान किया। तपस्या में #लीन ऋषि ने हजारों वर्ष बाद अपनी आँखें खोली और उनके क्रोध से सगर के सभी साठ हजार पुत्र जल कर वहीं #भस्म हो गये।
सगर के पुत्रों की #आत्माएँ भूत बनकर विचरने लगीं क्योंकि उनका #अंतिम संस्कार नहीं किया गया था। सगर के पुत्र #अंशुमान ने आत्माओं की मुक्ति का #असफल प्रयास किया और बाद में अंशुमान के पुत्र #दिलीप ने भी।
भगीरथ राजा दिलीप की #दूसरी पत्नी के पुत्र थे। उन्होंने अपने #पूर्वजों का अंतिम संस्कार किया। उन्होंने गंगा को पृथ्वी पर लाने का प्रण किया जिससे उनके #अंतिम संस्कार कर, राख को गंगाजल में #प्रवाहित किया जा सके और भटकती आत्माएं #स्वर्ग में जा सकें। भगीरथ राजा ने ब्रह्मा की घोर तपस्या की ताकि गंगा को #पृथ्वी पर लाया जा सके। ब्रह्मा प्रसन्न हुये और गंगा को पृथ्वी पर भेजने के लिये तैयार हुये और गंगा को पृथ्वी पर और उसके बाद #पाताल में जाने का आदेश दिया ताकि सगर के पुत्रों की आत्माओं की मुक्ति संभव हो सके।
तब गंगा ने कहा कि मैं इतनी ऊँचाई से जब पृथ्वी पर #गिरूँगी, तो पृथ्वी इतना #वेग कैसे सह पाएगी? तब भगीरथ ने भगवान ₹शिव से निवेदन किया और उन्होंने अपनी खुली #जटाओं में गंगा के वेग को रोक कर, एक लट खोल दी, जिससे गंगा की अविरल धारा पृथ्वी पर प्रवाहित हुई। वह धारा भगीरथ के पीछे-पीछे गंगा सागर #संगम तक गई, जहाँ सगर-पुत्रों का #उद्धार हुआ। शिव के स्पर्श से गंगा और भी पावन हो गयी और पृथ्वी #वासियों के लिये बहुत ही श्रद्धा का केन्द्र बन गयीं।
भारत की सबसे #महत्वपूर्ण नदी गंगा जो भारत और बांग्लादेश में मिलाकर 2,510 किमी की दूरी तय करती हुई #उत्तराखंड में हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ी के #सुंदरवन तक विशाल भू भाग को सींचती है, देश की प्राकृतिक संपदा ही नही, जन जन की #भावनात्मक आस्था का आधार भी है। 2,071 कि.मी तक भारत तथा उसके बाद बांग्लादेश में अपनी लंबी यात्रा करते हुए यह सहायक नदियों के साथ दस लाख वर्ग किलोमीटर #क्षेत्रफल के अति विशाल उपजाऊ मैदान की रचना करती है। सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से #अत्यंत महत्वपूर्ण गंगा का यह मैदान अपनी घनी जनसंख्या के कारण भी जाना जाता है। 100 फीट (31 मी) की अधिकतम गहराई वाली यह नदी भारत में #पवित्र मानी जाती है तथा इसकी #उपासना माँ और देवी के रूप में की जाती है। #भारतीय पुराण और साहित्य में अपने #सौंदर्य और महत्व के कारण बार-बार आदर के साथ #वंदित गंगा नदी के प्रति विदेशी साहित्य में भी #
प्रशंसा और भावुकतापूर्ण वर्णन किए गए हैं।
गंगा नदी पर बने पुल, बाँध और नदी #परियोजनाएँ भारत की बिजली, पानी और कृषि से संबन्धित जरुरतों को पूरा करती हैं।
भागीरथी नदी गंगोत्री में
गंगा नदी की #प्रधान शाखा भागीरथी है जो #कुमायूँ में हिमालय के गोमुख नामक स्थान पर #गंगोत्री हिमनद से निकलती है। गंगा के इस उद्गम स्थल की #ऊँचाई 3140 मीटर है। यहाँ गंगा जी को समर्पित एक #मंदिर भी है।
गंगोत्री तीर्थ, शहर से 19 कि.मी. उत्तर की ओर 3892 मी.(12,770 फी.) की ऊँचाई पर इस #हिमनद का मुख है। यह हिमनद 25 कि.मी. लंबा व 4 कि.मी. चौड़ा और लगभग 40 मी. ऊँचा है। इसी #ग्लेशियर से भागीरथी एक छोटे से #गुफानुमा मुख पर अवतरित होती है। इसका जल #स्रोत 5000 मी. ऊँचाई पर स्थित एक बेसिन है। इस #बेसिन का मूल पश्चिमी ढलान की संतोपंथ की चोटियों में है। गौमुख के रास्ते में 3600 मी. ऊँचे चिरबासा ग्राम से विशाल #गोमुख हिमनद के दर्शन होते हैं। इस हिमनद में नंदा देवी, कामत पर्वत एवं त्रिशूल पर्वत का हिम #पिघल कर आता है। यद्यपि गंगा के आकार लेने में अनेक छोटी #धाराओं का योगदान है लेकिन 6 बड़ी और उनकी सहायक 5 छोटी धाराओं का भौगोलिक और सांस्कृतिक महत्व अधिक है।
अलकनंदा की सहायक नदी धौली, विष्णु गंगा तथा मंदाकिनी है। धौली गंगा का अलकनंदा से #विष्णु प्रयाग में संगम होता है। यह 1372 मी. की ऊँचाई पर स्थित है। फिर 2805 मी. ऊँचे नंद प्रयाग में #अलकनन्दा का #नंदाकिनी नदी से संगम होता है। इसके बाद कर्ण प्रयाग में अलकनन्दा का कर्ण गंगा या पिंडर नदी से #संगम होता है।
फिर #ऋषिकेश से 139 कि.मी. दूर स्थित रुद्र प्रयाग में अलकनंदा मंदाकिनी से मिलती है। इसके बाद भागीरथी व अलकनन्दा 1500 फीट पर स्थित #देव प्रयाग में संगम करती हैं यहाँ से यह सम्मलित जल-धारा गंगा नदी के नाम से आगे प्रवाहित होती है। इन पांच प्रयागों को सम्मलित रूप से #पंच प्रयाग कहा जाता है।इस प्रकार 200 कि.मी. का #संकरा पहाड़ी रास्ता तय करके गंगा नदी ऋषिकेश होते हुए प्रथम बार मैदानों का #स्पर्श हरिद्वार में करती है।
त्रिवेणी-संगम, प्रयाग
हरिद्वार से लगभग 800 कि.मी. #मैदानी यात्रा करते हुए गढ़मुक्तेश्वर, सोरों, फर्रुखाबाद, कन्नौज, बिठूर, कानपुर होते हुए गंगा #इलाहाबाद (प्रयाग) पहुँचती है। यहाँ इसका संगम #यमुना नदी से होता है। यह संगम स्थल हिन्दुओं का एक महत्वपूर्ण तीर्थ है। इसे तीर्थराज प्रयाग कहा जाता है। इसके बाद हिन्दू धर्म की प्रमुख #मोक्षदायिनी नगरी काशी (वाराणसी) में गंगा एक वक्र लेती है, जिससे यह यहाँ #उत्तरवाहिनी कहलाती है। यहाँ से मीरजापुर, पटना, भागलपुर होते हुए पाकुर पहुँचती है। इस बीच इसमें बहुत-सी सहायक #नदियाँ, जैसे सोन, गंडक, घाघरा, कोसी आदि मिल जाती हैं। भागलपुर में #राजमहल की पहाड़ियों से यह दक्षिणवर्ती होती है। पश्चिम बंगाल के #मुर्शिदाबाद जिले के गिरिया स्थान के पास गंगा नदी दो शाखाओं में #विभाजित हो जाती है-भागीरथी और पद्मा। भागीरथी नदी गिरिया से दक्षिण की ओर बहने लगती है जबकि पद्मा नदी दक्षिण-पूर्व की ओर बहती #फरक्का बैराज (1974 निर्मित) से छनते हुई बंगला देश में प्रवेश करती है। यहाँ से गंगा का #डेल्टाई भाग शुरू हो जाता है। मुर्शिदाबाद शहर से #हुगली शहर तक गंगा का नाम भागीरथी नदी तथा हुगली शहर से मुहाने तक गंगा का नाम #हुगली नदी है। गंगा का यह मैदान मूलत: एक भू-अभिनति गर्त है जिसका निर्माण मुख्य रूप से हिमालय #पर्वतमाला निर्माण प्रक्रिया के तीसरे चरण में लगभग 3-4 #करोड़ वर्ष पहले हुआ था। तब से इसे #हिमालय और प्रायद्वीप से निकलने वाली नदियाँ अपने साथ लाये हुए अवसादों से पाट रही हैं। इन मैदानों में #जलोढ़ की औसत गहराई 1000 से 2000 मीटर है। इस मैदान में नदी की #प्रौढ़ावस्था में बनने वाली अपरदनी और निक्षेपण स्थलाकॄतियाँ, जैसे- बालू-रोधका, विसर्प, गोखुर झीलें और गुंफित नदियाँ पाई जाती हैं।
गंगा की इस #घाटी में एक ऐसी सभ्यता का उद्भव और विकास हुआ जिसका #प्राचीन इतिहास अत्यन्त गौरवमयी और #वैभवशाली है। जहाँ ज्ञान, धर्म, अध्यात्म व सभ्यता-संस्कृति की ऐसी किरण प्रस्फुटित हुई जिससे न केवल भारत बल्कि समस्त #संसार आलोकित हुआ।
पाषाण या #प्रस्तर युग का जन्म और विकास यहाँ होने के अनेक #साक्ष्य मिले हैं। इसी घाटी में #रामायण और महाभारत कालीन युग का उद्भव और विलय हुआ। शतपथ ब्राह्मण, पंचविश ब्राह्मण, गौपथ ब्राह्मण, ऐतरेय आरण्यक, कौशितकी आरण्यक, सांख्यायन आरण्यक, वाजसनेयी संहिता और #महाभारत इत्यादि में वर्णित घटनाओं से #उत्तर वैदिककालीन गंगा घाटी की जानकारी मिलती है। प्राचीन मगध महाजनपद का उद्भव गंगा घाटी में ही हुआ जहाँ से #गणराज्यों की परंपरा विश्व में पहली बार प्रारंभ हुई। यहीं भारत का वह स्वर्ण युग विकसित हुआ जब मौर्य और गुप्त वंशीय राजाओं ने यहाँ #शासन किया।
सुंदरवन-विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा-गंगा का #मुहाना-बंगाल की खाड़ी में है ।
हुगली नदी कोलकाता, हावड़ा होते हुए #सुंदरवन के भारतीय भाग में सागर से #संगम करती है। #पद्मा में ब्रह्मपुत्र से निकली शाखा नदी जमुना नदी एवं मेघना नदी मिलती हैं। अंततः ये 350 कि.मी. चौड़े सुंदरवन डेल्टा में जाकर #बंगाल की खाड़ी में सागर-संगम करती है। यह #डेल्टा गंगा एवं उसकी सहायक नदियों द्वारा लाई गई नवीन #जलोढ़ से 1,000 वर्षों में निर्मित समतल एवं निम्न मैदान है। यहाँ #गंगा और बंगाल की खाड़ी के संगम पर एक प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ है जिसे #गंगा-सागर-संगम कहते हैं।
गोमुख पर शुद्ध गंगा
गंगा नदी विश्व भर में अपनी #शुद्धीकरण क्षमता के कारण जानी जाती है। लंबे समय से प्रचलित इसकी शुद्धीकरण की मान्यता का #वैज्ञानिक आधार भी है। वैज्ञानिक मानते हैं कि इस नदी के जल में #बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं, जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं। नदी के जल में #प्राणवायु (ऑक्सीजन) की मात्रा को बनाए रखने की #असाधारण क्षमता है। किंतु इसका कारण अभी तक अज्ञात है। एक राष्ट्रीय सार्वजनिक #रेडियो कार्यक्रम के अनुसार इस कारण हैजा और पेचिश जैसी #बीमारियाँ होने का खतरा बहुत ही कम हो जाता है, जिससे #महामारियाँ होने की संभावना बड़े स्तर पर टल जाती है।
लेकिन गंगा के तट पर घने बसे #औद्योगिक नगरों के #नालों की गंदगी सीधे गंगा नदी में मिलने से गंगा का प्रदूषण पिछले कई सालों से #चिंता का विषय बना हुआ है। औद्योगिक कचरे के साथ-साथ #प्लास्टिक कचरे की #बहुतायत ने गंगा जल को भी बेहद प्रदूषित किया है।
वैज्ञानिक जांच के अनुसार गंगा का #बायोलाजिकल ऑक्सीजन स्तर 3 डिग्री (सामान्य) से बढ़कर 6 डिग्री हो चुका है।
गंगा में 2 करोड़ 90 लाख लीटर प्रदूषित कचरा #प्रतिदिन गिर रहा है। यह घोर #चिन्तनीय है कि कब गंगा-जल की सफाई पूर्ण होगी । गंगा नदी की सफाई के लिए कई बार पहल की गयी लेकिन कोई भी #संतोषजनक स्थिति तक नहीं पहुँच पाया।
वाराणसी घाट
भारत की अनेक #धार्मिक अवधारणाओं में गंगा नदी को देवी के रूप में निरुपित किया गया है। बहुत से पवित्र #तीर्थस्थल गंगा नदी के किनारे पर बसे हुये हैं । जिनमें वाराणसी और #हरिद्वार सबसे प्रमुख हैं। गंगा नदी को भारत की पवित्र नदियों में सबसे पवित्र माना जाता है एवं गंगा में स्नान करने से मनुष्य के सारे #पापों का नाश हो जाता है । गंगाजल को पवित्र समझा जाता है तथा समस्त #संस्कारों में उसका होना आवश्यक है। पंचामृत में भी गंगाजल को एक #अमृत माना गया है।
महाभारत के अनुसार मात्र प्रयाग में माघ मास में #गंगा-यमुना के संगम पर तीन करोड़ दस हजार तीर्थों का संगम होता है। ये तीर्थ स्थल सम्पूर्ण भारत में #सांस्कृतिक एकता स्थापित करते हैं।
माँ गंगा की अपार महिमा
भारत की राष्ट्र-नदी गंगा जल ही नहीं, अपितु भारत और #हिंदी साहित्य की #मानवीय चेतना को भी प्रवाहित करती है। ऋग्वेद, महाभारत, रामायण एवं अनेक पुराणों में #गंगा को पुण्य सलिला, पाप-नाशिनी, मोक्ष प्रदायिनी, सरित्श्रेष्ठा एवं महानदी कहा गया है।
जैसे मंत्रों में #ॐकार, स्त्रियों में #गौरीदेवी, तत्वों में #गुरुतत्व और विद्याओं में #आत्मविद्या उत्तम है, उसी प्रकार सम्पूर्ण तीर्थों में #गंगातीर्थ विशेष माना गया है । गंगाजी की वंदना करते हुए कहा गया है :
संसारविषनाशिन्यै जीवनायै नमोऽस्तु ते । तापत्रितयसंहन्त्र्यै प्राणेश्यै ते नमो नमः ।।
‘देवी गंगे ! आप संसाररूपी विष का नाश करनेवाली हैं । आप जीवनरूपा हैं । आप आधिभौतिक,आधिदैविक और आध्यात्मिक तीनों प्रकार के तापों का संहार करनेवाली तथा प्राणों की स्वामिनी हैं । आपको बार-बार नमस्कार है ।’
(स्कंद पुराण, काशी खं. पू. : 27.160)
जिस दिन #गंगाजी की उत्पत्ति हुई वह दिन ‘गंगा जयंती’ (वैशाख शुक्ल सप्तमी - 2 मई) और जिस दिन गंगाजी पृथ्वी पर #अवतरित हुईं वह दिन ‘गंगा दशहरा’ (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी - 4 जून) के नाम से जाना जाता है । इन दिनों में गंगाजी में #गोता मारने से विशेष #सात्विकता, प्रसन्नता और पुण्यलाभ होता है । वैशाख, कार्तिक और माघ मास की पूर्णिमा, माघ मास की #अमावस्या तथा #कृष्णपक्षीय अष्टमी तिथि को गंगास्नान करने से भी विशेष #पुण्यलाभ होता है ।
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