Tuesday, May 8, 2018

वैदिक काल की गणतांत्रिक शासन प्रणालियां'साम्राज्य','भौज्य','स्वाराज्य','वैराज्य', इत्यादि'प्राचीन भारत में लोकतंत्र'

वैदिक काल की गणतांत्रिक शासन प्रणालियां'साम्राज्य','भौज्य','स्वाराज्य','वैराज्य', इत्यादि'प्राचीन भारत में लोकतंत्र'-5सुप्रभात मित्रो! मैंने इस लेखमाला के पिछले लेखों में बताया है कि वैदिक कालीन शासन प्रणाली किस प्रकार विशुद्ध रूप से गणतांत्रिक थी, हालांकि उत्तर वैदिक काल में 'शासन प्रणाली की मुख्य धारा 'राजतंत्र' की ओर अग्रसर होने लगी थी किन्तु देशके अनेक भागों में गणतंत्रीय अथवा संघीय शासन प्रणालियों का दौर भी जारी रहा था जिसका चरम विकसित रूप हम बौद्ध काल में देखते हैं।राजनैतिक विचारों के विकास की दृष्टि से 'ऐतरेय ब्राह्मण' में राजा और राज्य की उत्पत्ति के सिद्धान्त का भी आविर्भाव होचुका था। उत्तर वैदिक काल में राजा का अधिकार ऋग्वेद के काल की अपेक्षा कुछ अधिक विस्तृत और पारिभाषिक स्वरूप धारण कर चुका था। परिणामतः इस काल में चक्रवर्ती राज्य एवं राज्याभिषेक को राजनैतिक दृष्टि से विशेष महत्त्व दिया जाने लगा था।उत्तरवर्ती वैदिक काल में राजा को बड़ी-बड़ी उपाधियों से महामंडित किया जाने लगा, जैसे- 'अधिराज', 'राजाधिराज', 'सम्राट','एकराट्' इत्यादि। हालांकि यह प्रक्रिया संहिताओं के काल से ही प्रारम्भ हो चुकी थी। 'ऐतरेय ब्राह्मण' में उत्तर वैदिक कालीन लोकतांत्रिक शासन प्रणालियों का यह रोचक वर्णन मिलता है कि समूचे भारत की शासन प्रणालियां उस समय किस प्रकार अलग अलग राजनैतिक आस्थाओं में विभाजित हो चुकी थीं। 'ऐतरेय ब्राह्मण' के अनुसार प्राच्य (पूर्व) के शासक 'सम्राट' की उपाधि धारण करते थे, पश्चिम के 'स्वराट', उत्तर के 'विराट्', दक्षिण के 'भोज' तथा मध्यदेश के 'राजा' कहलाते थे। ऐतरेय ब्राह्मण (8.4.18) में ही वैदिक काल की विविध शासन प्रणालियों का वर्णन मिलता है,जैसे साम्राज्य, भौज्य, स्वाराज्य, वैराज्य, पारमेष्ठ्य, राज्य, माहाराज्य,आधिपत्य इत्यादि-"साम्राज्याय,भौज्याय,स्वाराज्याय, वैराज्याय,पारमेष्ठ्याय,राज्याय,माहाराज्या, आधिपत्याय,श्वावश्याय,आतिष्ठाय अभिषिञ्चति।"-ऐत.ब्रा.8.4.18वैदिक काल की शासन प्रणालियां1.साम्राज्य- इस प्रणाली का शासक ‘सम्राट्’ कहलाता था जो कि राष्ट्र का एकछत्र अधिकारी होता था। यह प्रणाली मगध, कलिंग आदि में प्रचलित थी।2.भौज्य- इस प्रणाली में शासक ‘भोज’ कहलाता था। यह प्रणाली दक्षिण दिशा के राज्यों में प्रचलित थी। इस प्रणाली में प्रजा कल्याण की भावना को सर्वाधिक महत्त्व दिए जाने के कारण इसे काफी लोकप्रियता प्राप्त थी।3.स्वाराज्य- यह स्वशासित प्रणाली है। इसके शासक को ‘स्वराट्’ कहते थे। इसमें राजा स्वतंत्र रूप से शासन करने का अधिकार रखता था।यह प्रणाली सौराष्ट्र, कच्छ, सौवीर आदि राज्यों में प्रचलित थी।4.वैराज्य- यह शासन प्रणाली संघीय शासन प्रणाली है इसमें प्रशासन का उत्तरदायित्व व्यक्ति पर न होकर समूह या गण पर होता था। इसमें शासक को ‘विराट्’ कहते थे। वैदिक काल में हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों 'उत्तरकुरु' और 'उत्तरमद्र' में खासकर कुमाऊं और नेपाल के हिमवत प्रदेशों में,'वैराज्य' की शासन प्रणाली से राज काज चलाने की परम्परा रही थी- "हिमवंत जनपदा उत्तरकुरव उत्तरमद्रा इति वै वैराज्यायेव ते$भिषिच्यन्ते"-ऐत.ब्रा. 8.145.पारमेष्ठ्य- इसमें शासक को ‘परमेष्ठी’ कहते थे। यह गणतन्त्रात्मक पद्धति थी। इसका मुख्य उद्देश्य प्रजा में शांति-व्यवस्था की स्थापना था।6.राज्य- इसका शासक ‘राजा’ होता था,जिसकी सहायता के लिए 'मंत्रि-परिषद्'का भी गठन किया जाता था।अधिकांश प्रजाहितसे जुड़े फैसले राजा 'मंत्रि-परिषद्'की सहायता से ही करता था।7.माहाराज्य- इसका शासक ‘महाराज’ कहलाता था। यह राज्य पद्धति का उच्चतर रूप है।8.आधिपत्य- इसका शासक ‘अधिपति’ होता था। छान्दोग्योपनिषद् (5.6) में इसका उल्लेख मिलता है।9.सार्वभौम- इसमें शासक को ‘एकराट्’ कहते थे। इसमें राजा सम्पूर्ण भूमि का स्वामी होता है।10. जानराज्य- इसमें शासक ‘जनराजा’ कहा जाता था। ऋग्वेद (1.53.9) में राजा सुदास के साथ दस जनराजाओं के युद्ध का वर्णन आया है।11. आधिराज्य- इसमें शासक ‘अधिराज’ कहा जाता था। इसमें शासक निरंकुश होता था।12. विप्रराज्य- ऋग्वेद और अथर्ववेद में इसका वर्णन है-"शवो यज्ञेषु विप्रराज्ये।"-ऋग्वेद 8.3.413. समर्यराज्य- यह धनाढ्य वर्ग का राज्य प्रतीत होता है। वर्त्तमान सन्दर्भ में इसे पूंजीपति शासन प्रणाली भी कह सकते हैं। इसमें व्यापारिक गतिविधियों को विशेष महत्त्व दिया जाता था।'समर्य' का अर्थ है-'श्रेष्ठ वैश्य'। ऋग्वेद में इस 'समर्यराज्य' का उल्लेख मिलता है-"अनु हि त्वा सुतं सोम मदामसि महे समर्यराज्ये।"-ऋग्वेद 9.110.214.राष्ट्रराज्य- वैदिक साहित्य में राज्य अथवा प्रदेश के अर्थ में 'राष्ट्र' शब्द का प्रयोग बहुतायत से हुआ है। अथर्ववेद (19.30.3) के एक मंत्र -"त्वं राष्ट्राणि रक्षसि" में 'राष्ट्र' शब्द का बहुवचन में प्रयोग यह बताता है कि उस समय अनेक राष्ट्रराज्यों का अस्तित्व बना हुआ था जिन्हें हम आधुनिक 'राष्ट्र राज्य' के रूप में भी परिभाषित कर सकते हैं।अथर्ववेद में 'राष्ट्रराज्य' के स्वरूप की विशेष चर्चा आई है जिसकी चर्चा हम आगामी लेखों में करेंगे।आगामी लेख में पढ़ें-

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