Tuesday, May 8, 2018

वैदिक गणित अंकगणितीय गणना

वैदिक गणित अंकगणितीय गणना

मित्रों वेद काल में अनेक यज्ञयाग होते थे! यज्ञभूमी का क्षेत्र, यज्ञ कुंड की रचना और आकार के लिये गणीत विषय आवश्यक था! इसी कारण शल्ब सूत्र का उपयोग किया जाता था !

जगद्गुरू स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ द्वारा विरचित वैदिक गणित अंकगणितीय गणना की वैकल्पिक एवं संक्षिप्त विधियों का समूह है। इसमें १६ मूल सूत्र दिये गये हैं।

वैदिक गणित गणना की ऐसी पद्धति है, जिससे जटिल अंकगणितीय गणनाएं अत्यंत ही सरल, सहज व त्वरित संभव हैं।

स्वामीजी ने इसका प्रणयन बीसवीं शती के आरम्भिक दिनों में किया। स्वामीजी के कथन के अनुसार वे सूत्र, जिन पर ‘वैदिक गणित’ नामक उनकी कृति आधारित है, अथर्ववेद के परिशिष्ट में आते हैं। परंतु विद्वानों का कथन है कि ये सूत्र अभी तक के ज्ञात अथर्ववेद के किसी परिशिष्ट में नहीं मिलते।

हो सकता है कि स्वामीजी ने ये सूत्र जिस परिशिष्ट में देखे हों वह दुर्लभ हो तथा केवल स्वामीजी के ही सज्ञान में हो। वस्तुतः आज की स्थिति में स्वामीजी की ‘वैदिक गणित’ नामक कृति स्वयं में एक नवीन वैदिक परिशिष्ट बन गई है।

वैदिक गणित के सोलह सूत्र
स्वामीजी के एकमात्र उपलब्ध गणितीय ग्रंथ ‘वैदिक गणित' या 'वेदों के सोलह सरल गणितीय सूत्र’ के बिखरे हुए सन्दर्भों से छाँटकर डॉ॰ वासुदेव शरण अग्रवाल ने सूत्रों तथा उपसूत्रों की सूची ग्रंथ के आरंभ में इस प्रकार दी है—

1. एकाधिकेन पूर्वेण
2. निखिलं नवतश्चरमं दशतः
3. ऊर्ध्वतिर्यग्भ्याम्
4. परावर्त्य योजयेत्
5. शून्यं साम्यसमुच्चये
6. (आनुरूप्ये) शून्यमन्यत्
7. संकलनव्यवकलनाभ्याम्
8. पूरणापूरणाभ्याम्
9. चलनकलनाभ्याम्
10. यावदूनम्
11. व्यष्टिसमष्टिः
12. शेषाण्यंकेन चरमेण
13. सोपान्त्यद्वयमन्त्च्यम्
14. एकन्यूनेन पूर्वेण
15. गुणितसमुच्चयः
16. गुणकसमुच्चयः

उपसूत्र
आनुरूप्येण
शिष्यते शेषसंज्ञः
आधमाधेनान्त्यमन्त्येन
केवलैः सप्तकं गुण्यात्
वेष्टनम्
यावदूनं तावदूनं
यावदूनं तावदूनीकृत्य वर्गं च योजयेत्
अन्त्ययोर्द्दशकेऽपि
अन्त्ययोरेव
समुच्चयगुणितः
लोपनस्थापनाभ्यां
विलोकनं
गुणितसमुच्चयः समुच्चयगुणितः
ध्वजांक

वैदिक गणितीय सूत्रों की विशेषताएँ
(1) ये सूत्र सहज ही में समझ में आ जाते हैं। उनका अनुप्रयोग सरल है तथा सहज ही याद हो जाते हैं। सारी प्रक्रिया मौखिक हो जाती है।

(2) ये सूत्र गणित की सभी शाखाओं के सभी अध्यायों में सभी विभागों पर लागू होते हैं। शुद्ध अथवा प्रयुक्त गणित में ऐसा कोई भाग नहीं जिसमें उनका प्रयोग न हो। अंकगणित, बीजगणित, रेखागणित समतल तथा गोलीय त्रिकाणमितीय, समतल तथा घन ज्यामिति (वैश्लेषिक), ज्योतिर्विज्ञान, समाकल तथा अवकल कलन आदि सभी क्षेत्रों में वैदिक सूत्रों का अनुप्रयोग समान रूप से किया जा सकता है। वास्तव में स्वामीजी ने इन विषयों पर सोलह कृतियों की एक श्रृंखला का सृजन किया था, जिनमें वैदिक सूत्रों की विस्तृत व्याख्या थी। दुर्भाग्य से सोलह कृतियाँ प्रकाशित होने से पूर्व ही काल-कवलित हो गईं तथा स्वामीजी भी ब्रह्मलीन हो गए।

(3) कई पैड़ियों की प्रक्रियावाले जटिल गणितीय प्रश्नों को हल करने में प्रचलित विधियों की तुलना में वैदिक गणित विधियाँ काफी कम समय लेती हैं।

(4) छोटी उम्र के बच्चे भी सूत्रों की सहायता से प्रश्नों को मौखिक हल कर उत्तर बता सकते हैं।

(5) वैदिक गणित का संपूर्ण पाठ्यक्रम प्रचलित गणितीय पाठ्यक्रम की तुलना में काफी कम समय में पूर्ण किया जा सकता है।

ॐ ।। स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज द्वारा रचित वैदिक गणित का एक सूत्र

यावदूनं तावदूनीकृत्य से गुणा

*****************************************************************************************आधार 10,100,1000,10000......... आदि संख्याओं को आधार कहा जाता हे आब इनके आस पास की संख्याओं का गुणा करना सीखेगे ****************************************************************************************

नियम 1 . जिस संख्या को गुणा करना  हो उस संख्या का आधार चयन करेगे 

२. संख्या आधार से ज्यादा हो तो जितना ज्यादा हो उतना जोड्ना हे या संख्या आधार से कम हो तो जितना कम हो उतना कम ( घटाना ) हे । जो संख्या जुडे या घटेगी उसे ''विचलन'' कहते हे

३. इसके बाद ''विचलन'' का गुणा करके जोडने या घटाने के बाद जो संख्या प्राप्त होती हे उस के उपर रखदेगे

४.''विचलन'' का गुणा कितने स्थान तक आयेगा इसका निरधारन आधार की जीरो पर निर्भर करेगा । यदि आधार 10 तो ''विचलन'' का गुणा के अंक एक स्थान तक आयेगे यदि ''विचलन'' का गुणा के अंक दो अंकों मे आते हो तो इकाइ अंक को संख्या पर लिखकर दूसरा अंक हासिल का आगे वालि संख्या मे जुडेगा यदि  आधार 100 तो ''विचलन'' का गुणा के अंक दो स्थान तक आयेगे                                                                                                    

12 *13  आधार 10
                                                                                                      12 +2    12 आधार 10. से 2 ज्यादा तो +2
                                                                                                                                                                          13 +3    13 आधार 10. से 3 ज्यादा तो +3
                                                                                     अब तिरचा जोडेगे 13 को +2 करेगे या 12 को +3 दोनो का योग 15 होगा कोइ सा भी लेके (दोनो मे से एक लेना हे) उत्तर वाले स्थान पर् लिखेगे ये आधा उत्तर हो गया  इसके बाद  दोनो विचलन ( +2 ,+3 ) को आपस मे गुणा करेगे (+6) को 15 के उपर रख् देगे 15 (+6)  आधार 10 हे आखिरि गुणा वालि संख्या (+6) एक स्थान पर आयेगी अत: 156 उत्तर         
                                                        
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