अर्जुन ने हिडिम्ब को मारने के लिये अपना धनुष उठा लिया, किन्तु भीम ने उन्हें बाण छोड़ने से मना करते हुये कहा, 'भैया! आप बाण मत छोड़िये, यह मेरा शिकार है और मेरे ही हाथों मरेगा।' इतना कहकर भीम ने हिडिम्ब को दोनों हाथों से पकड़ कर उठा लिया और उसे हवा में अनेकों बार घुमा कर इतनी तीव्रता के साथ भूमि पर पटका कि उसके प्राण-पखेरू उड़ गये।
घटोत्कच का जन्म
हिडिम्ब के मरने पर वे लोग वहाँ से प्रस्थान की तैयारी करने लगे, इस पर हिडिम्बा ने कुन्ती के चरणों में गिरकर प्रार्थना करने लगी, 'हे माता! मैंने आपके पुत्र भीम को अपने पति के रूप में स्वीकार कर लिया है। आप लोग मुझे कृपा करके स्वीकार कर लीजिये। यदि आप लोगों ने मझे स्वीकार नहीं किया तो मैं इसी क्षण अपने प्राणों का त्याग कर दूँगी।' हिडिम्बा के हृदय में भीम के प्रति प्रबल प्रेम की भावना देखकर युधिष्ठिर बोले, 'हिडिम्बे! मैं तुम्हें अपने भाई को सौंपता हूँ, किन्तु यह केवल दिन में तुम्हारे साथ रहा करेगा और रात्रि को हम लोगों के साथ रहा करेगा।' हिडिम्बा इसके लिये तैयार हो गई और भीमसेन के साथ आनन्दपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगी। एक वर्ष व्यतीत होने पर हिडिम्बा का पुत्र उत्पन्न हुआ। उत्पन्न होते समय उसके सिर पर केश (उत्कच) न होने के कारण उसका नाम घटोत्कच रखा गया। वह अत्यन्त मायावी निकला और जन्म लेते ही बड़ा हो गया।
पाण्डवों को समर्पित
हिडिम्बा ने अपने पुत्र को पाण्डवों के पास ले जाकर कहा, 'यह आपके भाई की सन्तान है, अतः यह आप लोगों की सेवा में रहेगा।' इतना कहकर हिडिम्बा वहाँ से चली गई। घटोत्कच श्रद्धा से पाण्डवों तथा माता कुन्ती के चरणों में प्रणाम करके बोला, 'अब मुझे मेरे योग्य सेवा बतायें।? उसकी बात सुनकर कुन्ती बोली, 'तू मेरे वंश का सबसे बड़ा पौत्र है। समय आने पर तुम्हारी सेवा अवश्य ली जायेगी।' इस पर घटोत्कच ने कहा, 'आप लोग जब भी मुझे स्मरण करेगे मै उपस्थित हो जाऊंगा ,यह कह कर वह उत्तराखंड की ओर चला गया ।
Fine Thanks
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