Friday, May 25, 2018

यजुर्वेद का सामान्य परिचय

यजुर्वेद का सामान्य परिचय 

यजुर्वेद यज्ञ कर्म के लिए उपयोगी ग्रन्थ है । गद्यात्मक भाग के "यजुः" कहा जाता है । यजुुस् की प्रधानता के कारण इसे "यजुर्वेद" कहा जाता है ।
यजुष् के अन्य अर्थः---
(१.) यजुर्यजतेः (निरुक्त--७.१२)
(यज्ञ से सम्बद्ध मन्त्रों को यजुष् कहते हैं ।)
(२.) इज्यते अनेनेति यजुः ।
(जिन मन्त्रों से यज्ञ किया जाता हैं, उन्हें यजुष् कहते हैं ।)
(३.) अनियताक्षरावसानो यजुः ।
(जिन मन्त्रों में पद्यों के तुल्य अक्षर-संख्या निर्धारित नहीं होती है, वे यजुष् हैं ।)
(४.) शेषे यजुःशब्दः । (पूर्वमीमांसा--२.१.३७)
(पद्यबन्ध और गीति से रहित मन्त्रात्मक रचना को यजुष् कहते हैं ।)
(५.) एकप्रयोजनं साकांक्षं पदजातमेकं यजुः ।
(एक उद्देश्य से कहे हुए साकांक्ष एक पद-समूह को यजुः कहेंगे ।)
इस वेद की दो परम्पराएँ हैं :--- कृष्ण और शुक्ल ।
शुक्ल यजुर्वेद में शुद्ध रूप में मन्त्र मात्र संकलित है, किन्तु कृष्ण यजुर्वेद में मन्त्रों के साथ ब्राह्मण मिश्रित है ।
शाखाएँ :---
=======
महर्षि पतञ्जलि ने महाभाष्य में यजुर्वेद की १०१ शाखाएँ बताई है, किन्तु उपलब्धता कम है ।
(१) शुक्ल यजुर्वेद :---
=============
इसकी कुल १६ शाखाएँ बताईं जाती हैं , किन्तु सम्प्रति २ ही शाखाएँ उपलब्ध हैं---
(१.) माध्यन्दिन (वाजसनेयी ) शाखा,
(२.)  काण्व शाखा ।
माध्यन्दिन-शाखा के मुख्य ऋषि याज्ञवल्क्य हैं । ये मिथिला के निवासी थे । इनके पिता वाजसनि थे, अतः याज्ञवल्क्य वाजसनेय कहलाए । उनके नाम पर इस यजुर्वेद को वाजसनेयी शाखा भी कहते हैं ।
याज्ञवल्क्य ऋषि ने आदित्य ऋषि से इसे दिन के मध्य भाग में प्राप्त किया था, अतः इसे माध्यन्दिन शाखा कहा गया । इस शाखा का सर्वाधिक प्रचार उत्तर भारत में है ।
काण्व ऋषि के पिता बोधायन थे । काण्व के गुरु याज्ञवल्क्य ही थे । काण्व-शाखा का सर्वाधिक प्रचार महाराष्ट्र में हैं ।
(२) कृष्ण यजुर्वेद :----
============
इसकी कुल ८५ शाखाएँ बताईं जाती हैं किन्तु सम्प्रति ४ शाखाएँ ही उपलब्ध हैं---
(१.) तैत्तिरीय-संहिता,
(२.) मैत्रायणी -संहिता,
(३.) कठ-संहिता,
(४.) कपिष्ठल-संहिता,
शुक्ल और कृष्ण यजुर्वेद में अन्तर :---
=====================
(१.) शुक्लयजुर्वेद
===========
(१.) यह आदित्य सम्प्रदाय का प्रतिनिधि ग्रन्थ है ।
(२.) इसमें यज्ञ में प्रयोग किए जाने वाले मन्त्र है ।
(३.) यह विशुद्ध है, अर्थात् केवल मन्त्र है, कोई मिश्रण नहीं है ।
(४.) इस ग्रन्थ की प्राप्ति आदित्य से हुई है । आदित्य शुक्ल होता है, अतः इसका नाम शुक्ल-यदुर्वेद रखा गया । शुद्धता के कारण भी इसे शुक्ल कहा गया है ।
(५.) इसमें व्याख्या, विवरण और विनियोगात्मक भाग नहीं है, अर्थात् विशुद्ध है ।
(२.) कृष्णयजुर्वेद
==========
(१.) यह ब्रह्म-सम्प्रदाय का प्रतिनिधि ग्रन्थ है ।
(२.) इसमें मन्त्रों के साथ-साथ ब्राह्मण भी मिश्रित है, अतः मिश्रण के कारण कृष्ण कहा गया ।
(३.) आदित्य के प्रकाश के विपरीत होने से भी इसे कृष्ण कहा गया ।
(४.) यह अव्यवस्थित है ।
(५.) इसमें व्याख्या, विवरण और विनियोगात्मक भाग है, अर्थात् विशुद्ध नहीं है, अस्वच्छ है, मिश्रित है ।
मन्त्र :---
=====
(१.) शुक्लयजुर्वेदः---
=============
शुक्लयजुर्वेद की वाजसनेयी-शाखा में कुल---
४० अध्याय हैं,
१९७५ मन्त्र हैं ।
वाजयनेयी संहिता में कुल अक्षर २,८८,००० (दो लाख, अट्ठासी हजार)  हैं ।
काण्व-शाखा में भी ४० ही अध्याय हैं, किन्तु मन्त्र २०८६ हैं ।
अनुवाक---३२८ हैं ।
(२.) कृष्णयजुर्वेदः--
==========
तैत्तिरीय-शाखा में कुल ७ काण्ड हैं,
४४ प्रपाठक हैं,
६३१ अनुवाक हैं ।
मैत्रायणी-शाखा में कुल ४ काण्ड हैं,
५४ प्रपाठक हैं,
३१४४ मन्त्र हैं ।
काठक (कठ) संहिता में कुल ५ खण्ड हैं,
स्थानक ४० हैं,
वचन १३ हैं,
५३ उपखण्ड हैं,
८४३ अनुवाक हैं,
३०२८ मन्त्र हैं ।
कपिष्ठल अपूर्ण रूप में उपलब्ध है ।
इसमें ६ अष्टक ही उपलब्ध है ,
४८ अध्याय पर समाप्ति है ।
ब्राह्मण :---
=========
शुक्लयजुर्वेद ------ शतपथ ब्राह्मण
कृष्णयजुर्वेद ---- तैत्तिरीय ब्राह्मण , मैत्रायणी, कठ और कपिष्ठल
इन चारों संहिताओं में जो ब्राह्मण भाग हैं, वही कृष्णयजुर्वेद के ब्राह्मण है ।
आरण्यक :---
==========
शुक्लयजुर्वेद---- बृहदारण्यक
कृष्णयजुर्वेद---- तैत्तिरीय आरण्यक
उपनिषद् :---
========
शुक्लयजुर्वेद ---- ईशोपनिषद् , बृहदारण्यकोपनिषद् , प्रश्नोपनिषद् ।
कृष्णयजुर्वेद---- तैत्तिरीय उपनिषद् , महानारायण, मैत्रायणीय, कठोपनिषद्, श्वेताश्वरोपनिषद् ।
श्रौतसूत्र :---
=========
शुक्लयजुर्वेद---कात्यायन (पारस्कर)
कृष्णयजुर्वेद----आपस्तम्ब, बोधायन, हिरण्यकेशी (सत्याषाढ), भारद्वाज, वैखानस, वाधुल, मानव, मैत्रायणी, वाराह ।
गृह्यसूत्र :---
=======
शुक्लयजुर्वेद---कात्यायन (पारस्कर)
कृष्णयजुर्वेद----आपस्तम्ब, बोधायन, सत्याषाढ, वैखानस, कठ ।
धर्मसूत्र :---
========
शुक्लयजुर्वेद---कोई नहीं ।
कृष्णयजुर्वेद----वसिष्ठ-सूत्र ।
शुल्वसूत्र :---
=============
शुक्लयजुर्वेद---कात्यायन ।
कृष्णयजुर्वेद---बोधायन, आपस्तम्ब, मानव, मैत्रायणी, वाराह और वाधुल ।

1 comment:

इन हिंदी कहावतों के स्थान पर संस्कृत की सूक्ति बोलें।

 इन हिंदी कहावतों के स्थान पर संस्कृत की सूक्ति बोलें। 1. अपनी डफली अपना राग - मुण्डे मुण्डे मतिर्भिन्ना । 2. का बरखा जब कृषि सुखाने - पयो ग...