पं. श्रद्घाराम फिल्लौरी ने हिन्दी, संस्कृत, पंजाबी आदि भाषाओं में कई पुस्तकें लिखी है। भाग्यवती नामक
इन्होंने ओम जय जगदीश हरे आरती की रचना 1870 ई. में की थी। इनकी यह रचना उन दिनों भी उतनी ही लोकप्रिय थी जितनी आज है।
पं. श्रद्घाराम फिल्लौरी ने हिन्दी, संस्कृत, पंजाबी आदि भाषाओं में कई पुस्तकें लिखी है। भाग्यवती नामक इनकी पुस्तक को हिन्दी का पहला उपन्यास माना जाता
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हिंदुओं की धार्मिक अनुष्ठानों में अकसर ये आरती सुनाई पड़ती है.
ओम जय जगदीश हरे...ये आरती उत्तर भारत में वर्षों से करोड़ों हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को स्वर देती रही है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसके रचयिता पर ब्रितानी सरकार के खिलाफ प्रचार करने के आरोप भी लगे थे?
पंजाब के छोटे से शहर फिल्लौर के रहने वाले श्रद्धा राम फिल्लौरी ने इस आरती को शब्द दिए थे. 30 सितंबर को उनकी 175वीं वर्षगांठ है.
आरती में शामिल पंक्ति - 'श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा' में श्रद्धा शब्द जहां धार्मिक श्रद्धा बढ़ाने को कहता है, वहीं ये संभवतः इसके रचयिता की तरफ भी इशारा करता है.
फिल्लौरी का हिंदी साहित्य में भी अहम योगदान रहा है. कुछ विद्वान 1888 में आए उनके उपन्यास 'भाग्यवती' को हिंदी का पहला उपन्यास मानते हैं.
मूर्ति
Image caption30 सितंबर को श्रद्धा राम फिल्लौरी की 175वीं वर्षगांठ है.
फिल्लौरी के शहर और आसपास के अधिकतर लोग उनके नाम से परिचित हैं. शहर के बस अड्डे पर उनकी मूर्ति लगाई गई है. दरअसल यहां के लोगों में भी कुछ साल पहले ही उन्हें लेकर जागरुकता बढ़ी है.
श्रद्धा राम ट्रस्ट चलाने वाले अजय शर्मा कहते हैं, ''लगभग 20 साल तक ये मूर्ति नगर परिषद के दफ्तर में पड़ी रही. फिर साल 1995 में बेअंत सिंह सरकार ने इसे बाहर निकाला और इसे लगाया गया.''
वे बताते हैं, ''हर साल उनके जन्म दिवस पर यहां एक कार्यक्रम आयोजित किया जाता है जिसमें श्रद्धा राम को श्रद्धांजलि दी जाती है और उनके बारे में जानकारी साझा की जाती है. इस बार 175वीं वर्षगांठ पर कार्यक्रम कुछ बड़ा आयोजन होगा.''
शहर निकाला
श्रद्धा राम फिल्लौरी का जन्म 1837 में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके शहर के लोग बताते हैं कि जब वे महाभारत की कथा सुनाते थे तो सुनने के लिए काफी लोग जुटा करते थे.
उन पर 1865 में ब्रितानी हुकूमत के खिलाफ प्रचार करने के आरोप लगे और उन्हें शहर से निकाल दिया गया था.
उन्होंने कुछ समय तक शहर से बाहर जा कर काम किया और फिर वापस अपने घर आ गए. 43 वर्ष की उम्र में उनका देहांत हो गया.
यहां के लोग श्रद्धा राम को 'पंडित जी' कह कर याद करते हैं. वे बताते हैं कि श्रद्धा राम ने अपने ज़माने में भ्रूण हत्या जैसी सामाजिक बुराईयों के खिलाफ अभियान चलाया था.
शर्मा कहते हैं कि अब उनके बारे में जानकारी बढ़ने लगी है और कुछ लोग उन पर अध्ययन भी करना चाहते हैं.
भारत और विदेशों में गाई जाती है. ये हरफ़नमौला रमल भी खेलते थे. फिल्म ‘पूरब और पश्चिम’ ने इस आरती को सिनेमा का ग्लैमर दिया लेकिन इस आरतीकी पंक्तियाँ- ‘….तेरा तुझ को अर्पण क्या लागे मेरा’मूल आरती में नहीं है. जहाँ तक दृष्टि जाती है इस फिल्म के बाद इस आरती के स्वरूप को तेज़ी से बदलते देखा है. स्वामी शिवानंद जैसे अग्रणी वेदांती के साथ कब इस आरती को जोड़ दिया गया पता ही नहीं चला लेकिन यह अज्ञान से उपजा प्रक्षिप्त अंश है.
ख़ैर !कभी-कभी कोई भजन इतना लोकप्रिय हो जाता है कि विद्वानों की लापरवाही और जन-कीर्तन की बेपरवाही का शिकार हो जाता है. आप इसे जैसे पहले गाते रहे हैं उसे गाते रहिए. इस आरती का शुद्ध रूप केवल
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