Tuesday, May 8, 2018

उत्तररामचरितम्

प्रतनुविरलैः प्रान्तोन्मीलन्मनोहरकुन्तलैदशनकुसुमैर्मुग्धालोकं शिशुर्दधती मुखम्।
ललितललितैर्ज्योत्स्नाप्रायैरकृत्रिमविभ्रमरकृत मधुरैरम्बानां मे कुतूहलमङ्गकैः।।

प्रतनुविरलैः, प्रान्तोन्मीलन्मनोहरकुन्तलैः, दशन-कुसुमैः,मुग्धालोकं, मुखं,दधति इयं,शिशुः,ललितलतैः ज्योत्स्ना प्रायैः,अकृत्रिमविभ्रमैः,मधुरःअङ्गकैः,मे,अम्बानां,च ,
कुतूहलम्,अकृत।।

छोटे-छोटेऔर छीदे-छीदे कुसुम-कलिकाओं के समान कमनीय दाँतों तथा कपोलों पर सुशोभित होती हुई मनोहर काली-काली, घुंघराले अलकों से रमणीय एवं भोले-भाले मुख को धारण करती हुई थोड़ी सी अवस्था वाली अत्यंत सुंदर, चंद्रिका के समान गौरव पूर्ण,स्वाभाविक हाव-भावों से युक्त अपने अंगों से मेरा तथा माताओं का कौतूहल बढ़ाया करती थी।

उत्तररामचरितम्

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